विश्व में सबसे सस्ता चुनाव होता है भारत में : पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त

Edited By shukdev,Updated: 31 Jan, 2020 08:55 PM

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भारत में विश्व का सबसे सस्ता चुनाव होता है और एक वोट पर एक डॉलर की लागत आती है जबकि राजनीतिक प्रचार में हमारा देश दुनिया के सबसे खर्चीले देशों में से एक शुमार होता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने शुक्रवार शाम एक संगोष्ठी में कहा कि भारत...

नई दिल्ली: भारत में विश्व का सबसे सस्ता चुनाव होता है और एक वोट पर एक डॉलर की लागत आती है जबकि राजनीतिक प्रचार में हमारा देश दुनिया के सबसे खर्चीले देशों में से एक शुमार होता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने शुक्रवार शाम एक संगोष्ठी में कहा कि भारत में चुनाव कराने का खर्च करीब एक डॉलर प्रति वोट है जो दुनिया में सबसे कम है। इसमें वीवीपीएटी का खर्च भी शामिल किया गया है। 

उन्होंने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग में करीब 350 अधिकारियों एवं कर्मचारियों की टीम है और चुनाव के समय करीब डेढ़ करोड़ कर्मचारी केन्द्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों से लेती है और लगभग 91 करोड़ मतदाताओं को मताधिकार के उपयोग की सुविधा मुहैया कराती है। उन्होंने बताया कि भूटान जैसे छोटे से देश में तीन लाख मतदाताओं के लिए 1700 कर्मचारियों का चुनाव आयोग है जो एक बार चुनाव के बाद पांच साल तक बिना काम के बैठा रहता है। उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा कि एक पड़ोसी देश में जहां एक पूर्व क्रिकेट कप्तान प्रधानमंत्री बने हैं, वहां प्रति वोट चुनाव का खर्च 1.6 डॉलर का रहा है। अफ्रीका के एक देश में 25 डॉलर प्रति वोट का खर्च आता है।               

रावत ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के प्रचार में खर्च होने वाली राशि के मामले में भारत दुनिया के सर्वाधिक खर्चीले देशों में से एक है लेकिन यह कतई अस्वाभाविक नहीं है। उन्होंने कहा कि यूरोप हो या अमेरिका, वहां निर्वाचित प्रतिनिधि 20 हजार से 30 हजार मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं जबकि भारत में सांसद 15 से 20 लाख की आबादी का प्रतिनिधि होता है। इतने बड़े तबके तक पहुंचने के लिए खर्च भी ज़्यादा होगा।

एक सवाल के जवाब में रावत ने माना कि चुनाव की स्टेट फंडिग यानी शासन से धन मुहैया कराना संभव है लेकिन इसके लिए राजनीतिक दलों को एक राय कायम करके कानून में सुधार करना होगा। यह पूछे जाने पर कि क्या एक देश एक चुनाव का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विचार व्यवहारिक रूप से संभव है, उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल संभव है और इसके लिए लॉजिस्टिक्स की कोई समस्या नहीं है। ऐसा करने से आयोग को अधिक कर्मचारियों को लेना पड़ेगा। इससे चुनाव का खर्च एक डॉलर से काफी कम हो जाएगा। लेकिन असल मुद्दा संविधान संशोधन एवंं जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव करना पड़ेगा। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।               

उन्होंने बताया कि 1967 से पहले देश में तीन चुनाव एक साथ ही हुए थे। 1967 में बहुदलीय व्यवस्था आने से चुनाव भी अलग अलग समय पर होने लगे और अब हमेशा चुनाव ही चलते रहते हैं। उन्होंने यह भी संकेत किया कि 1967 तक जब तक एक साथ चुनाव होते रहे, देश में विकास की गति भी बहुत तेज़ थी।

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