Edited By Yaspal,Updated: 02 Aug, 2018 12:01 AM
उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ इस बात पर विचार करेगी कि सरकारी नौकरी में पदोन्न्तियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर मुद्दे को लेकर उसके 12 वर्ष पुराने फैसले की क्या सात...
नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ इस बात पर विचार करेगी कि सरकारी नौकरी में पदोन्न्तियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर मुद्दे को लेकर उसके 12 वर्ष पुराने फैसले की क्या सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा फिर से समीक्षा करने की जरूरत है?
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा की पीठ मुद्दे पर तीन अगस्त को फिर से सुनवायी करेगी। उच्चतम न्यायालय ने गत 11 जुलाई को 2006 के अपने फैसले के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि पांच न्यायाधीशों की एक पीठ पहले यह देखेगी कि क्या इसकी सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा फिर से विचार करने की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वह मामले पर केवल अंतरिम राहत के उद्देश्य से सुनवायी नहीं कर सकती क्योंकि इस संबंध में उल्लेख पहले ही संविधान पीठ को किया जा चुका है।
2006 के एम नागराज फैसले में कहा गया था कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए पदोन्नति में क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू नहीं की जा सकती जैसा कि पहले के दो मामलों ....1992 के इंदिरा साहनी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया तथा 2005 के ई वी चिन्नैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश में फैसले दिये गये थे। ये दोनों फैसले अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में क्रीमी लेयर से जुड़े थे।