बजट 2018: क्या बदलेगी किसानों और कृषि की तस्वीर?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Jan, 2018 12:04 PM

picture of farmers and agriculture will change in budget

मोदी सरकार एक फरवरी को वित्त वर्ष 2018-19 का बजट पेश करेगी और इस बार इसमें कृषि को ख़ास प्राथमिकता दिए जाने की बात की जा रही है। 1 फरवरी को जब वित्त मंत्री अरुण जेटली अपना बजट भाषण पढ़ रहे होंगे, तब सबकी निगाहें इस बात पर लगी होंगी कि कृषि क्षेत्र...

नई दिल्लीः मोदी सरकार एक फरवरी को वित्त वर्ष 2018-19 का बजट पेश करेगी और इस बार इसमें कृषि को ख़ास प्राथमिकता दिए जाने की बात की जा रही है। 1 फरवरी को जब वित्त मंत्री अरुण जेटली अपना बजट भाषण पढ़ रहे होंगे, तब सबकी निगाहें इस बात पर लगी होंगी कि कृषि क्षेत्र में व्याप्त असंतोष को दूर करने के लिए कि वे किन-किन उपायों की घोषणा करते हैं।

हर बार किए जाते हैं कई प्रयास
ताजा आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2017 में खरीफ उपजों को राज्य निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर न बेच पाने के कारण किसानों को 36000 करोड़ का नगद नुकसान हुआ है। कृषि की हालात सुधारने, उसे अधिक उत्पादक बनाने के लिए हर बजट में उपाय किए जाते हैं। कृषि कर्जों का लक्ष्य हर साल बढ़ा दिया जाता है। सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की जाती हैं। प्रधानमंत्री किसान फसल बीमा योजना में आवंटन बढ़ता है, उसका दायरा भी बढ़ाया जाता है। इन तमाम प्रयासों के बावजूद किसानों की आमदनी पिछले चार सालों से स्थिर बनी हुई हैं, ऐसे में मोदी सरकार 2022 तक किसानों की वास्तविक आय कैसे दोगुनी करेगी, इस पर लगातार संशय गहरा रहा है।

कृषि बजट बढ़ा, पर कृषि विकास गिरा
2015-16 में कृषि बजट तकरीबन 15 हजार करोड़ रुपए का था, जो 2016-17 में दोगुने से भी अधिक बढ़कर तकरीबन 36 हजार करोड़ रुपए हो गया। 2017-18 में यह बढ़ कर 41 हजार करोड़ रुपए हो गया। पर मोदी राज में कृषि विकास दर औसत 2.1 फीसदी रह जाने का अनुमान है जो 1991 के बाद सबसे कम है। हर सरकार को लगता है कि कृषि का बजट बढ़ा देने से कृषि का विकास हो जाएगा।

आमदनी कम, खर्च ज्यादा
राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण के अनुसार किसान परिवारों की आय औसत 6426 रुपए मासिक है। इसमें खेती, पशुपालन, गैर कृषि आय और मजदूरी आदि सब शामिल है पर उनका उपभोग व्यय 6223 रुपए महीना है। मतलब साफ है कि उनकी कमाई का अधिकांश हिस्सा खाने-पीने, कपड़ों और इलाज आदि पर ही खर्च हो जाता है, नतीजतन खेती के खर्चों के लिए उनके पास पूंजी नहीं बचती है। खेती खर्च के लिए मजबूरन उन्हें कर्जों पर निर्भर रहना पड़ता है।

किसानों को चाहिए वाजिब दाम
मोदी सरकार ने 2014 में वायदा किया था कि किसानों को उनकी उपज का 50 फीसदी अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा, लेकिन मोदी सरकार अपना वायदा भूल गई है। प्रधानमंत्री मोदी आगामी बजट में किसानों को उनकी उपज के वाजिब दाम दिला दें, उन्हें फिर किसी सरकारी सहायता की जरूरत नहीं रह जाएगी, जैसा कि सीमांत और छोटे किसानों ने अपने दम पर सिंचाई के मामले में दिखाया है। इन किसानों ने बिना किसी सरकारी सहायता से लगभग दो करोड़ कुओं, टयूबवेलों का निर्माण कर 5 करोड़ हेक्टेयर खेतों को सिंचित क्षेत्र में ला खड़ा किया है।

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