PGI के इतिहास में पहली बार तीन ग्रीन कोरिडोर्स बनाकर शेयर किये ऑर्गन, दिल्ली में बची 3 की जान

Edited By ,Updated: 07 Apr, 2017 08:11 AM

first time in the history of pgi  three green corridors were created

अपनी रातों की नींद खोकर किसी दूसरे को नई जिंदगी देना हर किसी के बस की बात नहीं, लेकिन पी.जी.आई. के डाक्टर इन दिनों ओर्गन ट्रांसप्लांट कर न सिर्फ मरीजों को एक नई जिंदगी दे रहे हैं बल्कि उनके परिजनों को चैन की नींद भी दे रहे हैं।

चंडीगढ़ (रवि): अपनी रातों की नींद खोकर किसी दूसरे को नई जिंदगी देना हर किसी के बस की बात नहीं, लेकिन पी.जी.आई. के डाक्टर इन दिनों ओर्गन ट्रांसप्लांट कर न सिर्फ मरीजों को एक नई जिंदगी दे रहे हैं बल्कि उनके परिजनों को चैन की नींद भी दे रहे हैं। ओगर्न ट्रांसप्लांट के मामले में पी.जी.आई. देश के दूसरे अस्पतालों के लिए एक मिसाल कायम कर रहा है। 72 घंटे लगातार जागकर पी.जी.आई. के डाक्टरों ने संस्थान में न सिर्फ ओर्गन ट्रांसप्लांट किए बल्कि दूसरे अस्पतालों से ओर्गन शेयर भी किए। 

 

पी.जी.आई. ट्रांसप्लांट सर्जरी विभाग के एच.ओ.डी. डाक्टर आशीष शर्मा की मानें तो हरेक ट्रांसप्लांट में डाक्टरों की एक बड़ी टीम बिना रुके बिना थके काम करती है। उनकी 72 घंटों की मेहनत से आज 11 लोगों को एक नई जिंदगी मिल पाई है उन्हें खुशी है कि पी.जी.आई. ने इस वर्ष का अपना 17वां ओर्गन ट्रांसप्लांट करने में सफलता हासिल की है। पी.जी.आई. के इतिहास में वीरवार को पहली बार तीन ग्रीन कोरिडोर्स बनाकर दूसरे अस्पतालों से अंग शेयर किए गए। जिसमें एक हार्ट एम्स दिल्ली में सुबह (6.38 बजे) दूसरा हार्ट फोर्टिस अस्पताल,नोएडा सुबह (11.22 बजे) व लीवर दिल्ली के जीवन पंत अस्पताल को सुबह (8.30 बजे) बाय एयर भेजा गया। 

 

पी.जी.आई. ओर्गन ट्रांसप्लांट विभाग के नोडल ऑफिसर डाक्टर विपिन कौशन की मानें तो पहली बार एक दिन में पांच घंटे के भीतर तीन बार ग्रीन कोरिडोर्स बनाए गए जिसके लिए अस्पताल स्टाफ व चंडीगढ़ पुलिस व यू.टी. प्रशासन ने काफी अहम रोल निभाया है। हार्ट व लीवर ट्रांसप्लांट में वक्त काफी मायने रखता है, क्योंकि एक बार हार्ट बॉडी से निकाल लेने पर 4 घंटे के अंदर व लीवर को 6 घंटे के अंदर ट्रांसप्लांट करना होता है लेकिन दूसरे अस्पतालों से काफी अच्छा सहयोग रहा जिसकी वजह से वक्त पर अंगों को पी.जी.आई. से एयरपोर्ट व वहां से दूसरे अस्पतालों तक पहुंचा दिया गया। 


 

दो मरीजों ने 8 लोगों को दी नई जिंदगी 
सिरमौर के गांव मलौटी के रहने वाले 45 वर्षीय जगत सिंह 2 अप्रैल को गिरने की वजह से घायल हो गए थे। उसी दिन गंभीर हालत में उन्हें पी.जी.आई. एडमिट करवाया गया था, लेकिन उचित देख-रेख के बाद भी डाक्टरों ने उन्हें 5 अप्रैल को ब्रेन डैड घोषित कर दिया था। वहीं दूसरे केस में पांवटा साहिब की रहने वाली 32 वर्षीय नैंसी हार्ट अटैक के कारण इस दुनिया को अलविदा कह गई, हालांकि 24 घंटों तक नैंसी वैंटीलेटर में रही पर डाक्टरों ने उसे 5 अप्रैल को ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इन दोनों ब्रेन डेड मरीजों के परिजनों ने इन्होंने अपनी रजामंदी दे दी। 


 

किसी और के सिर से न उठे मां का साया
मेरे बेटे को जिस उम्र में उसकी मां की सबसे ज्यादा जरूरत थी वह उसे छोड़कर चली गई। नैंसी के पति अनुदीप शर्मा की मानें तो किसी और के बच्चे के सिर से मां का साया न उठे यही सोचकर मैंने अपनी पत्नी की अंगदान का फैसला लिया था। वहीं जगत सिंह की पत्नी जसवंती देवी ने कहा कि उनके पति की बदौलत आज कई लोगों के घर में रौनक आई है। जिसकी शांति उनके साथ-साथ उनके पति की आत्मा को भी होगी। 


 

नहीं मिला दिल का मैचिंग रिसीपियंट 
परिजनों की रजामंदी के बाद पी.जी.आई. डाक्टरों ने चार लोगों को जहां किडनी ट्रांसप्लांट की, वहीं चार लोगों को ही कोर्नियां ट्रांसप्लांट कर नई जिंदगी भी दी, लेकिन पी.जी.आई. में दिल और लीवर का मैचिंग रिसीपियंट न मिल पाने की स्थिति में (रोटो) ओर्गन टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन ने नोटो (नैशनल ओर्गन टिश्यू ट्रांसप्लॉट आर्गेनाइजेशन) दिल्ली से   संपर्क कर किया जिसके बाद दिल व लीवर के मैचिंग रिसीपियंट एम्स, फोर्टिस व जीवन पंत अस्पताल में मिलने की सूचना आई। ग्रीन कोरिडोर्स बनाकर अगों को इन अस्पतालों में पहुंचाया गया। 


 

ब्रेन डैड घोषित करना मुश्किल काम 
ओर्गन ट्रांसप्लांट करने में एक टीम में काफी लोगों को सहयोग रहता है लेकिन सबसे मुश्किल काम मरीज को ब्रेन डेड घोषित करना है। न्यूरोलॉजिस्ट डा. मनीष मोदी की मानें तो मरीज को ब्रेन डैड घोषित करने के लिए डाक्टर को कई बार चैक करना पड़ता है। ब्रेन डैड घोषित करने के लिए कुछ प्रोटोकॉल्स तय हैं। 100 प्रतिशत चैक करने के बाद ही मरीज को ब्रेन डैड घोषित किया जाता है।  


 

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