PHD स्टूडैंट्स को शोध के लिए PGI नहीं देता ग्रांट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Nov, 2017 08:18 AM

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पी.जी.आई. अपने पी.एच.डी. स्टूडैंट्स को शोध के लिए ग्रांट ही नहीं देता। पी.जी.आई. के विभिन्न विभागों में 250 के करीब स्टूडैंट्स पी.एचडी कर रहे हैं।

चंडीगढ़(अर्चना) : पी.जी.आई. अपने पी.एच.डी. स्टूडैंट्स को शोध के लिए ग्रांट ही नहीं देता। पी.जी.आई. के विभिन्न विभागों में 250 के करीब स्टूडैंट्स पी.एचडी कर रहे हैं। 

 

रिसर्च के लिए इक्वीपमैंट्स, कैमिकल और किट्स इत्यादि के लिए स्टूडैंट्स को तरसना पड़ता है जबकि संस्थान में एम.डी. / एम.एस. / एम.सी.एच./डी.एम./एम.डी.एस. करने वालों को बड़ी आसानी से शोध के लिए वित्तीय सहायता मिल जाती है, बेशक एम.डी./एम.एस. करने वाले डाक्टर्स बड़ी आसानी से पेशैंट्स के अल्ट्रासाऊंड, ब्लड टैस्ट और अन्य डायग्नोसिस के आधार पर अपने रिसर्च वर्क पूरे कर सकते हैं। 

 

सिर्फ इतना ही नहीं एम.डी./एम.एस. करने वाले डाक्टर्स का वेतन भी पी.एचडी करने वालों के मुकाबले दोगुना होता है। एक तरफ पी.एच.डी. वालों का वेतन एम.डी./एम.एस. के मुकाबले आधा होता है दूसरा उन्हें रिसर्च ग्रांट से भी महरूम रखा जाता है। 

 

पी.एच.डी. स्टूडैंट्स को रिसर्च ग्रांट न दिए जाने के विरोध में बीते साल पीजीआई फैकल्टी आवाका उठा रही है। सूत्रों की मानें तो हाल ही में पीजीआई प्रबंधन और फैकल्टी की एक बैठक में भी पी.एचडी. को रिसर्च ग्रांट दिए जाने का मुद्दा उठा था। उधर, एक फैकल्टी ने नाम न लिखे जाने की शर्त पर कहा कि पी.जी.आई. को रिसर्च प्रोजैक्ट्स के जितनी भी ग्रांट मिलती हैं, उनमें से अधिकतर ग्रांट का श्रेय पी.एचडी. स्टूडैंट्स के प्रोजैक्ट की वजह से ही मिलता है। 

 

पी.जी.आई. को रिसर्च के लिए जितनी भी ग्रांट मिलती है उस ग्रांट में से तीन प्रतिशत हिस्सा पी.जी.आई. अपने पास रख लेता है और बाकि की ग्रांट डिपार्टमैंट को दे देता है और उसमें से रिसर्च ग्रांट का इस्तेमाल एम.डी./एम.एस. करने वाले डाक्टर्स को मिल जाता है। फैकल्टी का कहना है कि तीन प्रतिशत हिस्सा जो पी.जी.आई. हर रिसर्च ग्रांट में से काटता है, वो पी.एचडी. स्टूडैंट को मिलनी चाहिए क्योंकि एम.डी./एम.एस. डाक्टर तो पेशैंट्स की डायग्नोस्टिक रिपोर्ट्स के आधार पर भी रिसर्च कर सकते हैं। 

 

कुछ साल पहले मिलती थी ग्रांट :
पी.जी.आई. फैकल्टी प्रो. अमरजीत सिंह ने कहा कि पी.एचडी. स्टूडैंट्स को कुछ साल पहले ग्रांट मिल जाती थी परंतु तीन साल से पीएच.डी. स्टूडैंट्स को रिसर्च के लिए ग्रांट नहीं मिल रही है। कम्युनिटी मैडीसन के पीएच.डी. स्टूडैंट्स को तो फील्ड में सर्वे के लिए जाना होता है इसलिए उन्हें सिर्फ 10,000 से 15,000 रुपए की ग्रांट की ही जरूरत होती है परंतु दूसरे डिपार्टमैंट्स के स्टूडैंट्स को कैमिकल, रिएजेंट्स और इक्वीपमैंट्स आदि की खरीददारी करनी होती है ऐसे में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। 

 

कैसे खरीदें स्टूडैंट इक्वीपमैंट्स और कैमिकल? 
एसोसिएशन ऑफ बेसिक मैडीकल साइंस के प्रधान करनवीर कौशल ने कहा कि हर डिपार्टमैंट में पी.एचडी. करने वाले स्टूडैंट्स होते हैं। प्रोफैसर से लेकर असिस्टैंट प्रोफैसर के दिशा-निर्देश में पीएच.डी. करने वाले स्टूडैंट्स को रिसर्च के लिए कैमिकल खरीदने को तरसना पड़ता है। 

 

पी.जी.आई. बेशक ऑटोनोमस इंस्टीच्यूट है परंतु यह किसी भी कंपनी को एडवांस में कैमिकल, किट्स या इक्वीपमैंट्स के लिए पैसा नहीं देती है। ऐसे भी केस सामने आ चुके हैं जब मल्टीनैशनल कंपनी ने पी.जी.आई. के रिसर्च स्टूडैंट्स को नकद राशि लिए बिना किट्स तक देने से इंकार कर दिया है। किट्स या इक्वीपमैंट्स नहीं मिलेंगे तो वो क्या रिसर्च करेगा और क्या खोज हो सकेगी? 

 

पी.जी.आई. में 250 के करीब पीएच.डी. स्टूडैंट्स और 300 रिसर्च स्कॉलर्स हैं। रिसर्च प्रोजैक्ट के लिए मिलने वाली ग्रांट का 3 प्रतिशत हिस्सा पी.जी.आई. पहले ही काट लेता है और बची राशि प्रोजैक्ट को दी जाती है। 3 प्रतिशत राशि फैलोशिप में प्रयोग होती है पर पीएचडी. करने वालों के बारे में सोचा ही नहीं जाता। 

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