श्रीमद्भगवद्गीता: ‘ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ती भी नहीं हिलती’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Dec, 2017 01:00 PM

srimadbhagwadgita without a gods will even a leaf does not shake

प्रत्येक को स्वतंत्रता  श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद  अध्याय 7: भगवद्ज्ञान  यो यो यां यां तनुं भक्त: श्रद्धयार्चितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।21।। अनुवाद एवं तात्पर्य : मैं प्रत्येक जीव के...

प्रत्येक को स्वतंत्रता 


श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 
अध्याय 7: भगवद्ज्ञान 


यो यो यां यां तनुं भक्त: श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।21।।


अनुवाद एवं तात्पर्य : मैं प्रत्येक जीव के हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित हूं। जैसे ही कोई किसी देवता की पूजा करने की इच्छा करता है, मैं उसकी श्रद्धा को स्थिर करता हूं, जिससे वह उसी विशेष देवता की भक्ति कर सके। ईश्वर ने हर एक को स्वतंत्रता प्रदान की है, अत: यदि कोई पुरुष भौतिक भोग करने का इच्छुक है और इसके लिए देवताओं से सुविधाएं चाहता है, तो प्रत्येक हृदय में परमात्मा स्वरूप स्थित भगवान उसके मनोभावों को जानकर ऐसी सुविधाएं प्रदान करते हैं। समस्त जीवों के परम पिता के रूप में वे उनकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करते, अपितु उन्हें सुविधाएं प्रदान करते हैं, जिससे वे अपनी भौतिक इच्छाएं पूरी कर सकें।


कुछ लोग यह प्रश्र कर सकते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर जीवों को ऐसी सुविधाएं प्रदान करके उन्हें माया के पाश में गिरने ही क्यों देते हैं? इसका उत्तर यह है कि यदि परमेश्वर उन्हें ऐसी सुविधाएं प्रदान न करें, तो फिर स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। अत: वे सभी को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करते हैं-चाहे कोई कुछ करे-किन्तु उनका अंतिम उपदेश हमें भगवद् गीता में प्राप्त होता है-मनुष्य को चाहिए कि अन्य सारे कार्यों को त्याग कर उनकी शरण में आए। इससे मनुष्य सुखी रहेगा।


जीवात्मा तथा देवता दोनों ही परमेश्वर की इच्छा के अधीन हैं, अत: जीवात्मा न तो स्वेच्छा से किसी देवता की पूजा कर सकता है, न ही देवता परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध कोई वर दे सकते हैं। जैसी कि कहावत है-‘ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ती भी नहीं हिलती।’


सामान्यत: जो लोग इस संसार में पीड़ित हैं, वे देवताओं के पास जाते हैं, क्योंकि वेदों में ऐसा करने का उपदेश है कि अमुक-अमुक इच्छाओं वाले को अमुक-अमुक देवताओं की शरण में जाना चाहिए। उदाहरणार्थ, एक रोगी को सूर्यदेव की पूजा करने का आदेश है। इसी प्रकार विद्या का इच्छुक सरस्वती की पूजा कर सकता है और सुंदर पत्नी चाहने वाला व्यक्ति शिव जी की पत्नी देवी उमा की पूजा कर सकता है।


इस प्रकार शास्त्रों में विभिन्न देवताओं के पूजन की विधियां बताई गई हैं। चूंकि प्रत्येक जीव विशेष सुविधा चाहता है, अत: भगवान उसे विशेष देवता से उस वर को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा के लिए प्रेरणा देते हैं और उसे वर प्राप्त हो जाता है। किसी विशेष देवता के पूजन की विधि भी भगवान द्वारा ही नियोजित की जाती है। देवता जीवों में वह प्रेरणा नहीं दे सकते किन्तु भगवान परमात्मा हैं, जो समस्त जीवों के हृदयों में उपस्थित रहते हैं, अत: कृष्ण मनुष्य को किसी देवता के पूजन की प्रेरणा प्रदान करते हैं।


सारे देवता परमेश्वर के विराट शरीर के विभिन्न अंग स्वरूप हैं, अत: वे स्वतंत्र नहीं होते। वैदिक साहित्य में कथन है, ‘‘परमात्मा रूप में भगवान देवता के हृदय में भी स्थित रहते हैं, अत: वे देवता के माध्यम से जीव की इच्छा को पूरा करने की व्यवस्था करते हैं। किन्तु जीव तथा देवता दोनों ही परमात्मा की इच्छा पर आश्रित हैं। वे स्वतंत्र नहीं हैं।’’    

(क्रमश:)

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