Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Dec, 2017 06:58 PM
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह यरुशलम को इस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देंगे। उन्होंने वादा किया था कि वह अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम शिफ्ट करेंगे...
वॉशिंगटनः फिलीस्तीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विरोध के बीच अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यरुशलम को इस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने का ऐतिहासिक ऐलान करने वाले हैं। ट्रंप के इस कदम का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध के साथ-साथ अमरीका में भी विरोध हो रहा है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह यरुशलम को इस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देंगे। उन्होंने वादा किया था कि वह अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम शिफ्ट करेंगे।
क्या है यरुशलम विवाद
भूमध्य और मृत सागर से घिरे यरुशलम को यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों ही धर्म के लोग पवित्र मानते हैं। यहां स्थित टपंल माउंट जहां यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है, वहीं अल-अक्सा मस्जिद को मुसलमान बेहद पाक मानते हैं। मुस्लिमों की मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद ही वह जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। इसके अलावा कुछ ईसाइयों की मान्यता है कि यरुशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां स्थित सपुखर चर्च को ईसाई बहुत ही पवित्र मानते हैं।
एक तरफ जहां इस्राइल यरुशलम को अपनी राजधानी बताता है, वहीं दूसरी तरफ फिलिस्तीनी भी इस्राइल को अपने भविष्य के राष्ट्र की राजधानी बताते हैं। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के ज्यादातर देश पूरे यरुशलम पर इस्राइल के दावे को मान्यता नहीं देते। 1948 में इस्राइल ने आजादी की घोषणा की थी और एक साल बाद यरुशलम का बंटवारा हुआ था। बाद में 1967 में इइस्राइल ने 6 दिनों तक चले युद्ध के बाद पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया।
तेल अवीव स्थित दूतावास को यरुशलम शिफ्ट किए जाने की ट्रंप की योजना से फिलिस्तीनियों में नाराजगी है। वे पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी मानते हैं। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने अमरीका को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वह ऐसा करता है तो इससे क्षेत्रीय शांति खतरे में पड़ जाएगी। कई देशों ने भी ट्रंप से अपील की है कि वह इस तरह का ऐलान न करें।