'PM मोदी से मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार हैं राहुल गांधी'

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Mar, 2018 12:23 PM

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पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के किसी बड़े नेता के प्रभावी ढंग से हिन्दी नहीं बोलने को विफलता का एक कारण बताते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस महाधिवेशन में राहुल गांधी के हिन्दी में धाराप्रवाह भाषण की ओर ध्यान दिलाया और दावा किया वह अब...

नई दिल्ली: पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के किसी बड़े नेता के प्रभावी ढंग से हिन्दी नहीं बोलने को विफलता का एक कारण बताते हुए पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस महाधिवेशन में राहुल गांधी के हिन्दी में धाराप्रवाह भाषण की ओर ध्यान दिलाया और दावा किया वह अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले के लिए पूरी तरह तैयार हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में अपनी यह बेबाक राय रखी। महाधिवेशन में राहुल द्वारा कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के बीच दीवार गिराने की जो बात कही गयी, उसके बारे में चव्हाण का मानना है कि इस बात की पार्टी के भीतर और बाहर लोग अलग-अलग तरह से व्याख्या कर रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या राहुल प्रधानमंत्री मोदी का सामना करने के लिए तैयार हैं, चव्हाण ने कहा, ‘‘अब वह चाहें या न चाहें, उन्हें मोदी का सामना तो करना ही पड़ेगा। हमारे पास कोई और चेहरा नहीं है। उनके (महाधिवेशन में दिए गए) भाषण से यह संदेश गया है कि वह अब अधिक तैयार हैं। जिस तरह से उन्होंने हमला किया..जिस तरह से उन्होंने प्रभावी रूप से हिन्दी बोली।’’ 

चव्हाण ने कहा, ‘‘ अंतत: यही वह बात है जहां पिछले चुनाव में हम विफल हुए थे। हम लोग (पार्टी के बहुत से वरिष्ठ नेता) अंग्रेजी की ओर काफी झुके हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी, सोनिया जी या पी चिदंबरम हों, हम सब अंग्रेजी में सोचकर हिन्दी में बोलते हैं। वह (राहुल) सीधे दिल से बोल रहे थे और लोगों से जुड़ रहे थे, जो बहुत बड़ी बात है।’ महाधिवेशन से क्या बडा फायदा हुआ, इस सवाल पर कांग्रेस पार्टी के पूर्व महासचिव ने कहा कि सबसे बड़ी बात तो यह थी कि यह महाधिवेशन दस साल के बाद हुआ। यह प्रक्रिया एक प्रकार से थम सी गयी थी। पिछला महाधिवेशन 2010 में बुराड़ी (दिल्ली) में हुआ था। दूसरी बात कि राहुल गांधी नवनिर्वाचित अध्यक्ष थे जिनके चुनाव में संविधान के सारे नियमों का पालन किया गया। नेतृत्व में सहज ढंग से बदलाव हुआ।

उन्होंने कहा कि महाधिवेशन की पूरी रूपरेखा का ‘‘कारपोरेटाइजेशन’’ हुआ जिसे बहुत हद तक लोगों ने पसंद किया। इसका स्वरूप अधिक लोकतांत्रिक भी था। पहले मंच पर नेता बैठते थे और यह बात होती थी कि ऊपर कौन बैठा और कौन नहीं बैठा।  महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस महाधिवेशन से यह राजनीतिक संदेश निकला कि राहुल गांधी ने कमान संभाल ली है। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी ने पंचमढ़ी और शिमला सम्मेलनों के प्रस्तावों के बारे में चर्चा की। एक प्रस्ताव में पार्टी ने अन्य दलों के साथ गठबंधन नहीं करने की बात कही थी और दूसरे में गठबंधन करने की बात की थी। चव्हाण ने कहा कि इसका साफ संदेश था कि जो काम शिमला सम्मेलन के बाद हो सकता है, वह 2019 में भी हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हालांकि मुझे थोड़ी चिंता यही है कि राजीव गांधी ने जैसे 1985 में लोगों की आकांक्षाओं को बढ़ा दिया था, वैसे ही राहुल गांधी ने इस बार दीवार तोडऩे की बात कर लोगों की उम्मीदों को बढ़ाया है। इस बात के कई तरह से मायने निकाले जा सकते हैं। हर व्यक्ति दीवार तोडऩे की बात की अपनी तरह से व्याख्या करेगा।’’  

चव्हाण ने कहा कि राहुल गांधी के बयान का अर्थ तब स्पष्ट होगा, जब पार्टी की कार्यसमिति, चुनाव के लिए स्क्रीङ्क्षनग समितियों आदि का गठन, चुनाव देखने वाले कितने सचिव और महासचिव होंगे, क्या मुख्यमंत्री उम्मीदवार की घोषणा पहले की जाएगी, वह गठबंधन को कैसे स्वरूप देंगे क्योंकि हर राज्य की परिस्थिति अलग है, गठबंधन के लिए टीमों में कौन होगा? हर पार्टी के साथ समन्वय करने की किसी न किसी को जिम्मेदारी दी जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर देखना होगा कि क्या तस्वीर उभरती है? संप्रग का अध्यक्ष कौन होगा? अन्य पाॢटयों की क्या प्रतिक्रिया होगी? चव्हाण ने कहा कि सोनिया गांधी के मुंबई के इस बयान से कुछ विवाद हुआ था कि हमें मुस्लिमों की पार्टी समझा जाता है। 

उन्होंने कहा ‘‘इस मामले में बोलना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि उसका किसी भी तरह अर्थ निकाल लिया जाता है। आप जो भी कहो, सामने वाला पक्ष हम पर आरोप लगाता ही है। राहुल ने कहा वह मंदिर जाते हैं। यदि इस बात को बढ़ा चढ़ाकर कहा जाता तो भी अल्पसंख्यकों में गलत संदेश जाता। यह सब बहुत ही संवेदनशील बातें होती हैं।’’ यह पूछे जाने पर कि राहुल गांधी ने उदीयमान कांग्रेस बनाने की बात की है, उसमें उनकी (चव्हाण) की क्या भूमिका होगी और क्या वह केन्द्रीय स्तर पर जिम्मेदारी संभालने को तैयार हैं, उन्होंने कहा कि यह फैसला पूरी तरह से नेतृत्व का होगा।     

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