निर्दलीय प्रत्याशियों की बाढ़ से कांग्रेस परेशान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Dec, 2017 11:17 AM

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इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में 792 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं।  इसमें कांग्रेस के समर्थन से लड़ रहे जिग्नेश मेवाणी भी शामिल हैं। कांग्रेस को डर सता रहा है कि निर्दलीय उसके वोटों को काट लेंगे। कांगे्रस को लग रहा है कि इतने अधिक तादाद में...

नई दिल्ली: इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में 792 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं।  इसमें कांग्रेस के समर्थन से लड़ रहे जिग्नेश मेवाणी भी शामिल हैं। कांग्रेस को डर सता रहा है कि निर्दलीय उसके वोटों को काट लेंगे। कांगे्रस को लग रहा है कि इतने अधिक तादाद में निर्दलीय प्रत्याशियों के मैदान में आने के पीछे भाजपा का हाथ है। इनमें से कई को भाजपा ने कांगे्रस के मतों को विभाजित करने की रणनीति के तहत मैदान में उतारा है। 2012 के चुनाव से निर्दलियों की तादाद में बड़ा इजाफा देखने को मिल रहा है। उस बार 668 प्रत्याशी थे, जिनमें से 662 की जमानत जब्त हो गई थी। सिर्फ एक केतन इनामदार सावली सीट से जीते थे। उनमें से 27 तीसरे स्थान पर रहे, जिसका अर्थ है कि इन सीटों पर उनके पक्ष में पड़े वोटों से परिणाम पर प्रभाव पड़ा। हालांकि इनकी वजह से दोनों बड़े दलों को बराबर नुकसान हुआ। इन 27 सीटों में से 14 पर कांगे्रस और 13 पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोषी ने कहा कि इतने निर्दलीय उम्मीदवारों के होने का एक ही मकसद है कि भाजपा चाहती है कि हमारा वोट कट जाए। वे मानते हैं कि 2012 में 42 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने हमारा 12 प्रतिशत वोट काट लिया। इनमें से अधिकतर सीटें भाजपा के खाते में गईं, जिनपर उसे 5 हजार या उससे कम मतों से फैसला हुआ। 

वे जमालपुर खदिया सीट की मिसाल देते हैं, जहां अल्पसंख्यक वोटर अच्छी तादाद में हैं। 2012 में यहां से जीते भाजपा के भूषण भट्ट को 48 हजार वोट मिले, जिन्होंने कांग्रेस के समीर खान को 6 हजार वोटों से हराया। इस सीट पर निर्दलीय साबिर खेड़ावाला 30 हजार वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। भाजपा के प्रवक्ता भरत पंडया कांगे्रस की बात को बचकाना बताते हुए कहते हैं कि हमारी पार्टी को तो निर्दलीय उम्मीदवारों से कोई खतरा नहीं है, बल्कि वे उनको भाजपा के लिए फायदेमंद मानते हैं। वे कहते हैं कि भाजपा के वोटर स्थायी हैं, लेकिन जातीय आधार पर चुनाव लड़ रहे निर्दलीय कांग्रेस के मतों में सेंध लगा देते हैं। ऐसे ढेर सारे उदाहरण मिल जाएंगे, जहां राजनीतिक दल निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव से हट जाने की मिन्नतें करते दिखते हैं। मिसाल के तौर पर सुरेंद्र नगर की वधवान सीट को ही लीजिए, जहां जैन समुदाय के पांच लोगों ने निर्दलीय पर्चा दाखिल किया था। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उनसे यहां चुनाव न लडऩे का आग्रह किया, क्योंकि वहां से भाजपा के धनजीभाई पटेल प्रत्याशी हैं। इस सीट पर 2.69 वोटरों में से 27 हजार जैन वोटर हैं। 2012 में भाजपा की वर्षाबेन दोषी ने 17,558 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी।

इसी तरह सोमनाथ सीट की बात करें तो यहां विमल चुड़ासमा निर्दलीय लड़ रहे हैं, जिनके सामने रुपाणी सरकार में मंत्री जाशा बराड हैं। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोषी ने बताया कि हम क्षेत्र के अहीर व कोली नेताओं से निर्दलीय न लडऩे की अपील कर रहे हैं। इससे हमारे वोट को नुकसान हो सकता है। हालांकि बराड 2012 में कांगे्रस उम्मीदवार के रूप में जीते थे।  बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए थे। 2014 में उपचुनाव में फिर से चुने गए। इस सीट पर कोली समुदाय के 48 हजार मतदाता हैं। मुस्लिम वोट 40 हजार, खरवास के 30 हजार और अहीर के 20 हजार हैं। इसका दूसरा पहलू ये है कि गुजरात में लोगों के सामने कोई तीसरा विश्वसनीय राजनीतिक विकल्प नहीं है। ऐसे में निर्दलीय उम्मीदवार उनलोगों के लिए विकल्प बन सकते हैं जो कांगे्रस और भाजपा में से किसी को पसंद न करते हों। निर्दलीय प्रत्याशियों में दलित चेहरा मेवाणी के अलावा गुजरात में आम आदमी पार्टी के कानू कलसारिया महुवा से और भाजपा के पूर्व विधायक कामा राठौर सानंद से प्रमुख हैं। पहले चरण के मतदान में 442 निर्दलीय प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है, जबकि 14 दिसंबर को दूसरे चरण में मतदाता 350 के भाग्य का फैसला करेंगे।

जहां अब भी मोदी हैं सीएम
सा लगता है कि गुजरात के कुछ आदिवासी इलाकों में समय ठहरा हुआ है। नरेद्र मोदी के देश का प्रधानमंत्री बने तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं। लेकिन, यहां के लोगों के लिए मोदी ही अब भी राज्य के मुख्यमंत्री हैं। छोटा उदयपुर जिले के भीतरी हिस्सों में राठवा जैसी अनुसूचित जनजति के सदस्यों की खासी संख्या है। यहां मतदाताओं का कहना है कि वे राजनीति में तीन ही चीजें जानते हैं- मोदी, मोदी की पार्टी और कांग्रेस। कुछ ही लोगों ने भाजपा का नाम लिया और इसे मोदी की पार्टी बताया। जब उनसे कांग्रेस के बारे में पूछा गया तो वे सिर्फ इंदिरा गांधी को ही याद कर सके। 50 वर्षीय रामसिंह राठवा ने कहा, ‘मेरे पूर्वज हमेशा कांग्रेस को वोट देते थे लेकिन अब आसपास के लोग मोदी साहब की पार्टी के उम्मीदवार को भी वोट देते हैं।’  रामसिंह अपने गांव कांडा के तीन लोगों के साथ छोटा उदयपुर में थे और उन्होंने कमल को मोदी की पार्टी का चुनाव चिह्न बताया लेकिन वह भाजपा से अवगत नहीं थे।  चार अन्य किसानों ने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र से कोई भी उम्मीदवार जीते, ‘मोदी एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री बनेंगे।’  छोटा उदयपुर क्षेत्र के ही एक अन्य गांव जोगपुरा के मतदाता दिलीप राठवा ने कहा कि मुकाबला कांग्रेस और मोदी के बीच है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर ग्रामीण एक ही उम्मीदवार को वोट देते हैं और मोदी लोकप्रिय हैं लेकिन स्थानीय कांग्रेस नेता शादी जैसी मौकों पर आते हैं। छोटा उदयपुर जिले की तीन सुरक्षित सीटों पर आदिवासी-मुस्लिम गठबंधन से कांग्रेस को फायदा हो सकता है।  लेकिन, स्थानीय भाजपा नेताओं का मानना है कि मोदी के व्यक्तित्व से हमेशा पार्टी को जीतने में मदद मिली है। पावी जेतपुर में एक स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता रमेश पटेल इस बात से सहमत थे कि मुकाबला स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवारों और मोदी की लोकप्रियता के बीच है।

वडनगर स्टेशन तैयार  लेकिन पटरियां नहीं
धानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचपन में अपने पिता के साथ वडनगर के जिस रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की बात कही जाती है वहां मरम्मत और पुनॢनर्माण का काम बहुत तेजी से पूरा हुआ है, लेकिन ट्रेनों की आवाजाही के लिए पटरियों की कमी अब भी है। वडनगर स्टेशन के पुनॢनर्माण कार्य से जुड़े सिविल इंजीनियर अरविंद कुमार के अनुसार स्टेशन पर मरम्मत का काम चार महीने के अंदर पूरा कर लिया गया। उन्होंने बताया ‘हमने जून में काम शुरू किया था और सितंबर तक काम लगभग समाप्त हो गया था। हमने रात में दो बजे तक काम किया। लेकिन, मुझे यह सोचकर हैरानी होती है कि वहां पटरियां बिछाने का कोई संकेत नहीं है। यहां तक कि प्लेटफॉर्म बनाने के काम में भी कोई जल्दी नहीं दिख रही जिसे एक अन्य ठेकेदार संभाल रहे हैं।’ स्टेशन को महल का स्वरूप देने की कोशिश की गई है जहां गोल खंभे बनाए गए हैं। दोपहिया वाहनों और कारों के लिए दो पार्किं ग बनाए हैं। स्टेशन के भीतर लंबे-चौड़े प्रतीक्षा कक्ष हैं, जिनमें कुछ महिला यात्रियों के लिए हैं। एक प्रदर्शनी कक्ष भी तैयार किया गया है। यहां एक छोटा सा बोर्ड यात्रियों को गुजराती भाषा में बताता है कि बाल नरेंद्र यहां चाय बेचते थे। इसके अलावा 14 दिसंबर को आखिरी चरण के मतदान से पहले कवरेज कर रहे टीवी चैनलों की टीमों की भी ये लोग मदद कर रहे हैं। कुमार ने बताया कि स्टेशन पर ब्रॉड गेज लाइन आएगी और यह काम मेहसाणा-तरांगा हिल मीटर गेज लाइन के अमान परिवर्तन के तहत होगा। वडनगर की दूसरी चीजों को लेकर स्थानीय लोग शिकायत करते हैं। वे सड़कों पर पड़े कचरे व खुली नालियों के साथ ही रोजगार की कमी पर चिंता जताते हैं। सरदार पटेल समूह के स्थानीय प्रमुख उत्तम भाई पटेल के अनुसार, आपने कॉम्पलेक्स देखे हैं, ज्यादातर के शटर बंद हैं। चुनाव से पहले हड़बड़ी में मेडिकल कॉलेज तो खोल दिया गया, लेकिन उसमें सुविधाएं नहीं हैं।
 

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