भाजपा का वोट शेयर बढ़ा, पर सीटें घटीं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Dec, 2017 10:53 AM

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गुजरात विधासभा चुनाव नतीजों के मामले में भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए बेहद दिलचस्प रहा है। दोनों ही पार्टियां इसे अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हुए इसे अपनी जीत बता रही है। वहीं अगर चुनावी नतीजों से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो वह भी बेहद रोचक...

नई दिल्ली: गुजरात विधासभा चुनाव नतीजों के मामले में भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए बेहद दिलचस्प रहा है। दोनों ही पार्टियां इसे अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हुए इसे अपनी जीत बता रही है। वहीं अगर चुनावी नतीजों से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो वह भी बेहद रोचक है। बात चाहे शहरी, ग्रामीण, आरक्षित और अनारक्षित सीटों के हिसाब से करें या फिर क्षेत्रवार, सभी जगहों पर दोनों पाॢटयों का वोट शेयर और सीटों का आंकड़ा एक अलग ही तस्वीर पेश कर रहा है। आमतौर पर चुनावों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है। 

गुजरात में सरकार बनाने जा रही भाजपा का वोट शेयर अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से काफी ज्यादा रहा, लेकिन फिर भी उसकी सीटें कम हो गई हैं।पूरे राज्य की बात करें तो भाजपा को 49.1 प्रतिशत वोट मिले जो वर्ष 2012 में मिले 47.9 प्रतिशत वोट से ज्यादा है और इसकी तुलना अगर 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले 59.1 प्रतिशत वोट शेयर से की जाए तो पार्टी को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। कांग्रेस ने भी पिछले चुनाव के मुकाबले अपना वोट शेयर बढ़ाया है। पांच साल पहले पार्टी को 38.9 प्रतिशत वोट मिले थे, जो इस चुनाव में बढ़कर 41.4 प्रतिशत हो गए। लेकिन, हैरान करने वाली बात यह है कि उन इलाकों में भी भाजपा का वोट शेयर कांग्रेस से कुछ ज्यादा रहा, जहां कांग्रेस ने ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की है।

 मसलन ग्रामीण इलाकों की बात करें तो कांग्रेस का प्रदर्शन सीटों के हिसाब से तो अच्छा रहा, लेकिन वोट शेयर के मामले में भाजपा ने ही बाजी मारी। ऐसे में अहम सवाल यह है कि हर क्षेत्र में वोट शेयर कांग्रेस से बेहतर होने के बावजूद भाजपा को बड़ी जीत क्यों नहीं हासिल हो सकी? भाजपा बहुमत के आंकड़े से केवल सात सीटें ही ज्यादा जुटा सकी है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि पार्टी ने शहरी क्षेत्रों की कई सीटों पर बड़े अंतर से जीत हासिल की। 33 शहरी सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जीत का औसत माॢजन करीब 47,400 रहा। इसी तरह ग्रामीण इलाकों में भी भाजपा उम्मीदवार औसतन 26,000 वोटों से जीते। 

ऐसे में पार्टी को वोट तो खूब मिले, लेकिन उससे सीटें बढऩा संभव नहीं हो सका।दूसरी तरफ कांग्रेस उम्मीदवार जीते तो जरूर, लेकिन उनकी जीत का अंतर अधिक नहीं रहा। यही वजह है कि कांग्रेस उन इलाकों में भी भाजपा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही जहां उसका वोट शेयर भाजपा से कम रहा। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है सौराष्ट्र, जहां भाजपा को कांग्रेस की 30 सीटों के मुकाबले 23 सीटें मिलीं, जबकि उसका वोट शेयर (45.9 प्रतिशत) कांग्रेस के वोट शेयर (45.5 प्रतिशत) से कुछ ही ज्यादा रहा। इसी प्रकार का ट्रेंड उत्तरी गुजरात में भी देखने को मिला। 

यहां भाजपा का वोट शेयर 45.1 प्रतिशत रहा जबकि कांग्रेस ने 44.9 प्रतिशत वोट हासिल किए। फिर भी भाजपा को 14 सीटें मिलीं और कांग्रेस को 17 सीटें। हालांकि चुनावी विश्लेषक पटेलों की कथित नाराजगी को चुनाव में बड़ा मुद्दा बता रहे थे, लेकिन भाजपा ने पाटीदारों की बहुलता वाली 28 सीटों पर जीत हासिल कर उन्हें गलत साबित कर दिया। वहीं क्षेत्रवार बात करें तो इनमें से केवल नौ सीटें सौराष्ट्र-कच्छ से आती हैं, जबकि कांग्रेस ने 23 ऐसी सीटों पर जीत दर्ज की जहां पटेल बड़ी संख्या में हैं और ये सभी सीटें सौराष्ट्र-कच्छ की हैं।
 

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