Edited By ,Updated: 24 Aug, 2016 02:17 AM
संघर्षों की तपिश से जूझकर निकला इंसान अपनी जिंदगी में नई इबारत लिखता है और इस बात को सच कर दिखाया है ...
नई दिल्ली: संघर्षों की तपिश से जूझकर निकला इंसान अपनी जिंदगी में नई इबारत लिखता है और इस बात को सच कर दिखाया है अरुणिमा सिन्हा ने, जिन्होंने एक दुर्घटना में पैर गंवाने के बाद कृत्रिम पैर के सहारे दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को भी अपने कदमों में झुका दिया।
मंगलवार को राजधानी में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं 28 वर्षीय अरूणिमा ने पैर कटने के बाद माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराने तक की हौसलों से भरी अपनी प्रेरणास्पद कहानी बयां की। पांच वर्ष पहले 2011 के अप्रैल महीने में लखनऊ से दिल्ली जा रहीं राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबाल खिलाड़ी अरुणिमा के साथ वीभत्स घटना घटित हुई।
ट्रेन में लूटपाट के इरादे से चढ़े कुछ अज्ञात बदमाशों ने छीना-झपटी के बीच उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया जिससे वह दूसरी पटरी पर जा रही ट्रेन की चपेट में आ गईं और बायां पैर कट गया। अरूणिमा पूरी रात लगभग सात घंटों तक बेहोशी की हालत में तड़पती रहीं। सुबह टहलने निकले कुछ लोगों ने जब पटरी के किनारे अरुणिमा को बेहोशी की हालत में पाया तो तुरंत अस्पताल पहुंचाया। जब मीडिया सक्रिय हुआ तो अरुणिमा को दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया। एम्स में इलाज के दौरान उनका बायां पैर काट दिया गया। तब लगा वॉलीबॉल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी अरुणिमा अब जीवन में कुछ नहीं कर पायेंगी। लेकिन उन्होंने जिन्दगी से हार नहीं मानी।
उन्होंने आंखों से निकले आंसुओं को ताकत बनाया और देखते ही देखते अरुणिमा ने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्ट पर चढऩे की ठान ली। अरुणिमा ने ट्रेन पकड़ी और सीधे जमशेदपुर पहुंच गईं। वहां उन्होंने एवरेस्ट फतह कर चुकी बछेंद्री पाल से मुलाकात की। फिर तो मानो उन्हें पर से लग गये। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 31 मार्च वर्ष 2013 को उनका मिशन एवरेस्ट शुरु हुआ और पांव कटने की घटना के दो वर्ष बाद ही वह एवरेस्ट पर अपना परचम लहरा आईं।