Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Feb, 2018 11:05 AM
नीरव मोदी प्रकरण में बैंक ऑफ बोर्ड ब्यूरो पर उंगली उठी है, क्योंकि गत वर्ष जुलाई में उनके पास नीरव मोदी से संबंधित शिकायत की गई लेकिन इस पर संज्ञान नहीं लिया गया। बल्कि उन्हें क्लीन चिट भी दी गई, जिसके बाद आरोप चेयरमैन विनोद राय पर भी लगने लगे। इस...
नई दिल्ली(संजीव यादव): नीरव मोदी प्रकरण में बैंक ऑफ बोर्ड ब्यूरो पर उंगली उठी है, क्योंकि गत वर्ष जुलाई में उनके पास नीरव मोदी से संबंधित शिकायत की गई लेकिन इस पर संज्ञान नहीं लिया गया। बल्कि उन्हें क्लीन चिट भी दी गई, जिसके बाद आरोप चेयरमैन विनोद राय पर भी लगने लगे। इस पर तत्काल बैठक की गई। बैठक में निर्देश दिए गए कि फरवरी 2016 से 28 फरवरी 2018 तक बैंकों के डिफॉल्टर केस के संबंध में जितनी भी शिकायतें हैं उनकी स्कूटनी की जाए। इसी स्कूटनी में पाया गया है कि देश में 732 ऐसे देनदार हैं जिन्होंने बैंकों से करीब 1000 करोड़ से अधिक का लोन लिया हुआ है और उसे कई सालों से चुकता नहीं किया है। इनमें 50 से अधिक ऐसे डिफॉल्टर हैं जिन्होंने भले ही एलओयू का इस्तेमाल नहीं करवाया, लेकिन पैसा अपने विदेशी खातों में जमा कराया है। ये भी बता दें कि सभी डिफॉल्टर केस राष्ट्रीयकृत बैंक के पाए गए हैं। जानकारी ये भी आई है कि इन डिफॉल्टर में कई ऐसे भी ‘मोदी’ पाए गए जिन्होंने सिर्फ एक ही बैंक से लोन नहीं लिया बल्कि दो से ज्यादा बैंकों को चूना लगाया। उसके बाद भी बैंकों ने इसकी शिकायत न तो बोर्ड से की और न ही आरबीआई को बताया।
सीवीसी ने कहा, बैंक की कार्यशैली समझ नहीं आ रही
पीएनबी मेंं हुए 11500 करोड़ के घोटाले में अधिकारियों की पूछताछ के बाद जो रिपोर्ट आई है उससे वे हैरान है कि बैंक मैनेजर या अधिकारी किस अधिकार से आम आदमी का पैसा किसी को भी दे देते हैं। सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में ’लालच’ शब्द का इस्तेमाल किया है और कहा कि पीएनबी में जो घोटाला हुआ है उसकी जानकारी कहीं न कहीं शीर्ष लोगों को थी। लेकिन, लालच ने उनका मुंह बंद किया हुआ था। एक अधिकारी के मुताबिक पीएनबी में नीरव मोदी का खाता 2007 से खुला हुआ था। उसने पहली बार लोन 2009 में लिया और उसे एक माह में चुकता कर दिया, जिसके बाद वह लगातार बैंक से 2013 तक लोन लेता रहा और समय पर देता भी रहा, लेकिन जब नीरव ने पहली बार 327 करोड़ की राशि को विदेश में ट्रांसफर किया, तभी अधिकारियों को आपत्ति उठानी चाहिए थी। चूंकि राशि एलओयू पर जारी की गई थी, इसलिए इसमें बैंक को ब्याज दर अन्य की तुलना में ज्यादा मिल रहा था तो उन्होंने इंकार नहीं किया और नियम भी तोड़े। बस यहीं से नियम टूटते गए और नीरव लगातार लालच देकर बैंक को लूटता रहा।