कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां लगभग शून्य, मुख्यधारा की सोच को हो रहा है नुकसान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Mar, 2018 11:50 AM

political vaccum in kashmir

कश्मीर घाटी में जुलाई 2016 में शीर्ष आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से राजनीतिक गतिविधियां लगभग शून्य होने की वजह से मुख्यधारा की सोच को बेहद नुकसान पहुंचा हैं।

श्रीनगर : कश्मीर घाटी में जुलाई 2016 में शीर्ष आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से राजनीतिक गतिविधियां लगभग शून्य होने की वजह से मुख्यधारा की सोच को बेहद नुकसान पहुंचा हैं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले दो सालों से घाटी खास तौर पर दक्षिण कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियों के मोर्चे पर सन्नाटा पसरा हुआ है। अगर प्रदेश के वरिष्ठ मुख्यधारा नेताओं की बात की जाए तो पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्षी नैशनल कांफ्रैंस (नैकां) के कार्यकारी अध्यक्ष उमर अब्दुला बीते हफ्ते दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में अपने एक विधायक के यहां एक शोक सभा में गए थे। उमर पिछले एक साल में दक्षिण कश्मीर की तरफ  यह पहला और इकलौता दौरा था, और यह भी राजनीतिक दौरा नहीं था।


अगर देखा जाए तो पिछले एक साल में न सिर्फ  दक्षिण कश्मीर बल्कि पूरी कश्मीर घाटी में कोई राजनीतिक रैली या श्रमिक सम्मलेन या फिर राजनेताओं के दौरे आदि जैसी गतिविधियां नहीं हुई हैं। जहां सरकार में बैठे लोग विपक्ष को इस बात का दोषी ठहराते हैं वहीं विपक्षी दलों के लोग इस राजनीतिक रूखेपन के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। जानकारों के मुताबिक, वजह जो भी इसका नुकसान मुख्यधारा की सोच हो रहा है।

पिछले वर्ष किया था उमर ने दौरा
उमर अब्दुल्ला का दक्षिण कश्मीर मे पिछला दौरा 22 मार्च, 2017 को हुआ था। तब उनकी गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के ग़ुलाम अहमद मीर ने अनंतनाग लोक सभा सीट के उपचुनाव के लिए नामांकन पत्र दर्ज किया था। यह उपचुनाव अभी तक नहीं हो पाया है। अप्रैल 12, 2017, को होने वाला यह उपचुनाव आठ अप्रैल को श्रीनगर लोक सभा सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान हुई हिंसा के चलते रद्द कर दिया गया था। श्रीनगर लोक सभा क्षेत्र के बडग़ाम जिले में उपचुनाव के दौरान आठ लोग सुरक्षा बलों की फायरिंग में मारे गए थे। अनंतनाग का उपचुनाव पहले 25 मई तक स्थगित किया गया और उसके बाद अनिश्चितकाल के लिए।

बंद दरवाजों के पीछे हुई बैठकें
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि श्रीनगर और अनंतनाग उपचुनावों की तैयारी में ही कोई खास राजनीतिक गतिविधियां हुई हों। जो भी हुआ सब बंद दरवाजों के पीछे सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में हुआ। श्रीनगर उपचुनाव की हिंसा और अनंतनाग उपचुनाव स्थगित होने के बाद कुछ ऐसा माहौल बना है कि अभी तक कश्मीर की मुख्यधारा की राजनैतिक पार्टियां लोगों के बीच जाने से कतरा रही हैं।

पीडीपी भी नहीं कर पाई कमाल
इनमें पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) भी है। वह सरकार में होते हुए भी कुछ खास गतिविधियां नहीं कर पाई, सिवाय इसके कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक ‘पब्लिक आउटरीच प्रोग्राम’ के तहत अलग-अलग जिलों का दौरा करती रही हैं, वह भी अभूतपूर्व सुरक्षा में। विपक्ष के एक नेता ने कहा कि जब पी.डी.पी. इतनी सुरक्षा के बावजूद लोगों के पास जाने से कतरा रहे हैं तो हम लोग कैसे जाएं। वहीं पी.डी.पी. के एक नेता ने अफसोस जताते हैं कि उनकी पार्टी को सत्ता में रहते हुए विपक्ष की भी भूमिका निभानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि विपक्ष को आगे आकर अपनी भूमिका निभानी चाहिए खास तौर पर दक्षिण कश्मीर में जहां राजनीतिक गतिविधि सिर्फ हमारी पार्टी के द्वारा हो रही है। 

पीडीपी मंत्री पर हुआ था हमला
पी.डी.पी. सरकार में लोकनिर्माण मंत्री नईम अख्तर पर बीते साल सितंबर में पुलवामा के त्राल इलाके में ग्रेनेड से हमला हुआ था। इसमें वे तो बाल-बाल बच गए थे, लेकिन तीन लोग मारे गए थे और कई सुरक्षाकर्मियों सहित लगभग 30 लोग घायल हो गए थे।

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