Happy B'day नई दिल्लीः इन लोगों ने खड़ा किया था दिल्ली को

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Dec, 2017 03:12 PM

these people had set up delhi

यमुना नदी के किनारे स्थित दिल्ली का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले...

नई दिल्ली: यमुना नदी के किनारे स्थित दिल्ली का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। 1911 में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया।

अंग्रेजी सरकार ने दिल्ली को बनाया राजधानी
12 दिसंबर,1911 को कोलकाता से देश की राजधानी दिल्ली को बनाने का ऐलान हुआ और उसके बाद 15 दिसंबर, 1911 को जॉर्ज पंचम ने किंग्सवे कैंप में नई दिल्ली का नींव का पत्थर रखा। दिल्ली को खड़ा करने में नेताओं का ही नहीं बल्कि कॉन्ट्रैक्टरों और ठेकेदारों का भी बड़ा हाथ रहा। कई ठेकेदारों ने दिल्ली की इमारतों को नक्शे से उताकर उसे मूर्त रूप दिया। हालांकि उन भारतीय ठेकेदारों का नाम गुमनाम ही रहा। जिक्र आता है तो एडविन लुटियन, रॉबर्ट टोर रसेल, हरबर्ट बेकर, वॉल्टर की डिजाइन की इमारतों का। पहले वाइसराय आवास (अब राष्ट्रपति भवन), संसद भवन, साउथ ब्लॉक, नॉर्थ ब्लॉक, कमांडर-इन चीफ आवास (तीन मूर्ति भवन) का डिजाइन तैयार करने के लिए हेनरी वॉगन लैंकस्टर का नाम भी एडविन लुटियन के साथ चल रहा था लेकिन बाद में लुटियन को नई दिल्ली के मुख्य आर्किटेक्ट का पद सौंपा गया। 1913 में एक कमेटी का गठन किया गया और इसका नाम था 'दिल्ली टाऊन प्लैनिंग कमेटी।' इसके प्रभारी एडविन लुटियन थे।

हाथी पर बैठ पूरी दिल्ली की छानी खाक
लुटियन को जब यह जिम्मेदारी दी गई तो उसने अपने साथी हरबर्ट बेकर के साथ पूरी दिल्ली की खाक छानी ताकि यह तय किया जाए कि कहां कौन-सी इमारत खड़ी की जाएगी। भारत आने से पहले बेकर साउथ अफ्रीका, केन्या और कुछ अन्य देशों की अहम सरकारी इमारतों का डिजाइन तैयार कर चुके थे।

सिख ठेकेदारों ने निभाई अहम भूमिका
दिल्ली का नक्शा तैयार हो चुका था अब तलाश थी तो कॉन्ट्रैक्टर यानी ठेकेदारों की जो इस नक्शे को मूर्त रूप दे सकें। अंग्रेजी सरकार ने ठेकेदारी का काम करने वाले प्रमुख ठेकेदारों से संपर्क किया। सभी दिल्ली की निर्माण करना चाहते थे क्योंकि एक तो उनकी प्रसिद्धी होनी थी तो दूसरा उनका मोटा मुनाफा भी होना था। लेकिन दिल्ली को खड़े करने जिम्मा सौंपा गया सिखों को।

-सरगोधा (अब पाकिस्तान) के हडाली शहर से सरदार सोबा सिंह अपने पिता सरदार सुजान सिंह के साथ आए। सोबा सिंह के दिल में कुछ कर गुजरने की चाह थी, वह चाहते थे कि उन्हें अधिक से अधिक इमारतों के निर्माण का ठेका मिल जाए।
सोबा सिंह ने नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के कुछ ब्लॉक, राष्ट्रपति भवन के कुछ भागों के साथ-साथ सिंधिया हाऊस, रीगल बिल्डिंग, वॉर मेमोरियल का निर्माण किया।

-बैसाखा सिंह, धर्म सिंह सेठी तथा नारायण सिंह भी पंजाब के अपने घरों को छोड़कर यहां आए थे। वे सब भी यहां बड़े प्रोजैक्ट पर काम करना चाहते थे।

-बैसाखा सिंह नॉर्थ ब्लॉक के मुख्य ठेकेदार थे। वह अमृतसर से थे। बैसाखा सिंह ने साऊथ एंड लेन और पृथ्वीराज रोड पर बंगला बनवाया था।

-दिल्ली की चौड़ी-चौड़ी सुंदर सड़कों का श्रेय जाता है सरदार नारायण सिंह को।
 उन्होंने यहां पर सभी सड़कों को बनाया था। नारायण सिंह ने कर्जन रोड (अब कस्तूरबा गांधी मार्ग) पर बंगला बनवाया था। उन्होंने ही जनपथ के इम्पीरियल होटल को बनाया था। इम्पीरियल होटल राजधानी के शुरुआती दौर के पंच सितारों होटलों में से एक है

-धर्म सिंह को राष्ट्रपति भवन, साऊथ और नॉर्थ ब्लॉक के लिए राजस्थान के धौलपुर तथा यूपी के आगरा से पत्थरों की नियमित सप्लाई करने का ठेका मिला था।

-कराची के सेठ हारून अल राशिद ने मुख्य रूप से राष्ट्रपति भवन का निर्माण करवाया था। वह नई दिल्ली के निर्माण के बाद वापस कराची चले गए थे।

-मशहूर लक्ष्मण दास ने संसद भवन को बनवाया। उनके साथ अकबर अली ने राष्ट्रीय अभिलेखागार को खड़ा किया।

-नवाब अली ने राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन को तैयार किया था।

-राष्ट्रपति भवन बहुत विशाल प्रॉजेक्ट था, इसलिए उसे कई ठेकेदारों ने मिलकर बनाया।

सभी ठेकेदारों ने राजस्थान के श्रमिकों से इन भवनों को खड़ा करवाने का काम सौंपा था। लुटियन जब भी अपने आर्किटेक्ट के साथ मीटिंग करते थे, तब ये सभी ठेकेदार भी वहां मौजूद रहते थे। उनसे भी राय ली जाती थी और जिनकी सलाह ठीक लगती थी उस पर अमल किया जाता था। सभी ठेकेदार यही जनपथ लेन में रहते थे। सभी के परिवार एक-दूसरे के साथ बड़े प्यार से रहते थे। सोबा सिंह ने तो अपने परिवार के लिए 1, जनपथ पर बंगला बनवाया और उसका नाम रखा 'बैकुंठ'। इस बंगले का डिजाइन वॉल्टर जॉर्ज ने तैयार किया था।

जॉर्ज ने ही रीगल सिनेमा हॉल का डिजाइन बनाया था, हालांकि यह अब बंद हो चुका है। उनके बंगले के 3 जनवरी लेन वाले गेट पर अब भी उनकी नेम प्लेट लगी है। लकड़ी के गेट पर एक नेम प्लेट पर साफ शब्दों में लिखा है, 'सर सोबा सिंह'। आपको शायद ही पता होगा कि सर सोबा सिंह महान लेखक खुशवंत सिंह के पिता थे। खुशवंत सिंह का विवाह कंवल जी के साथ हुआ। कंवल जी नई दिल्ली के निर्माण में चीफ सिविल इंजिनियर सरदार तेजा सिंह मलिक की बेटी थी। तेजा सिंह और सोबा सिंह आपस में घनिष्ठ मित्र थे। दोनों की सेवाओं को देखते हुए उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

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