Edited By ,Updated: 11 Apr, 2017 02:22 PM
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहु विवाह मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक
नई दिल्ली: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहु विवाह मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को प्रभावित करते हैं तथा उन्हें संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों से वंचित करते हैं। अदालत के समक्ष दायर ताजा अभिवेदन में सरकार ने अपने पिछले रुख को दोहराया है और कहा है कि ये प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को उनके समुदाय के पुरुषों और अन्य समुदायों की महिलाओं की तुलना में ‘असमान एवं कमजोर’ बना देती हैं। केंद्र ने कहा, मौजूदा याचिका में जिन प्रथाओं को चुनौती दी गई है, उनमें एेसे कई अतार्किक वर्गीकरण हैं, जो मुस्लिम महिलाओं को संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का लाभ लेने से वंचित करते हैं।’
'डर में जीती हैं मुस्लिम महिलाएं'
केंद्र ने कहा कि ‘‘एक महिला की मानवीय गरिमा, सामाजिक सम्मान एवं आत्म मूल्य के अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत उसे मिले जीवन के अधिकार के अहम पहलू हैं।’’ अभिवेदन में कहा गया, ‘‘लैंगिक असमानता का शेष समुदाय पर दूरगामी प्रभाव होता है। यह पूर्ण सहभागिता को रोकती है और आधुनिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को भी रोकती है।’’ इन प्रथाओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए सरकार ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में पिछले 6 दशक से अधिक समय से सुधार नहीं हुए हैं और मुस्लिम महिलाएं तत्काल तलाक के डर से ‘‘बेहद कमजोर’’ बनी रही हैंं। मुस्लिम महिलाओं की संख्या जनसंख्या का 8 प्रतिशत है। सरकार ने कहा, ‘‘यह कहना सच हो सकता है कि सिर्फ कुछ ही महिलाएं तीन तलाक और बहु विवाह से सीधे तौर पर या वास्तव में प्रभावित होती हैं लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि इस कथित कानून के दायरे में आने वाली हर महिला इन प्रथाओं का इस्तेमाल उसके खिलाफ किए जाने को लेकर डर एवं खतरे में जीती हैं। इसका असर उसके स्तर, उसके द्वारा चुने जाने वाले विकल्पों, उसके आचरण और सम्मान के साथ जीने के उसके अधिकार पर पड़ता है।’’