हे प्रभु, ये कैसे होगा?

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2015 03:20 AM

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रेलवे के विशाल नैटवर्क को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु को ‘प्रभु’ तक से मदद मांगनी पड़ी लेकिन अंतत: उन्होंने खुद ही यह बीड़ा उठाने का फैसला किया।

नई दिल्ली: रेलवे के विशाल नैटवर्क को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु को ‘प्रभु’ तक से मदद मांगनी पड़ी लेकिन अंतत: उन्होंने खुद ही यह बीड़ा उठाने का फैसला किया। लोकसभा में अपना पहला रेल बजट पेश करते हुए प्रभु ने रेलवे को सुदृढ़ बनाए जाने की योजनाओं पर कहा, ‘‘आमान परिवर्तन, दोहरीकरण, तिहरीकरण और विद्युतीकरण पर जोर दिया जाएगा। औसत गति बढ़ेगी। गाडिय़ों के समय पालन में सुधार होगा। 

मालगाडिय़ों को समय सारिणी के अनुसार चलाया जा सकेगा।’’प्रभु ने कहा, ‘‘पर मेरे मन में सवाल उठता है कि हे प्रभु, यह कैसे होगा?’’ प्रभु द्वारा ‘प्रभु’ का इस प्रकार संदर्भ दिए जाने से सदन में मौजूद सदस्य उनकी वाक्पटुता से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके। रेल मंत्री ने कहा, ‘‘प्रभु ने तो जवाब नहीं दिया, तब इस प्रभु ने सोचा कि गांधी जी जिस साल भारत आए थे, उनके शताब्दी वर्ष में भारतीय रेलवे को एक भेंट मिलनी चाहिए कि परिस्थिति बदल सकती है। रास्ते खोजे जा सकते हैं, इतना बड़ा देश, इतना बड़ा नैटवर्क, इतने सारे संसाधन, इतना विशाल मैनपावर, इतनी मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति तो फिर क्यों नहीं हो सकता रेलवे का पुनर्जन्म।’’

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