क्या मोदी भारत को ‘बदल’ सकते हैं

Edited By ,Updated: 26 May, 2015 01:23 AM

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दिनांक 26 मई 2014 : एक बड़ा सपना पूरा हुआ। एक चाय वाला 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत का प्रधानमंत्री बना।

(पूनम आई. कौशिश): दिनांक 26 मई 2014 : एक बड़ा सपना पूरा हुआ। एक चाय वाला 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत का प्रधानमंत्री बना। उन्हें न केवल भ्रष्टाचार और हकदारी की संस्कृति के विरुद्ध अपितु ‘अच्छे दिन’ के लिए भी जनादेश मिला। 

दिनांक 26 मई 2015 : मोदी की सुशासन उपलब्ध कराने की यह शानदार जीत अब उन्हें ही कचोटने लग गई है और कैसे? सत्ता में एक वर्ष पूरा होने पर देशभर में भव्य समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। उनके मंत्रियों और उनके द्वारा 250 से अधिक रैलियां तथा 500 से अधिक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किए गए। उन्होंने मन की बात शुरू की। नौकरशाह न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं किन्तु क्या वास्तव में ऐसा है? 
 
मोदी को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने कोयले तथा टैलीकॉम स्पैक्ट्रम की नीलामी कर उस पर से राजसत्ता का एकाधिकार समाप्त किया। 18 देशों की यात्रा की तथा विभिन्न देशों से खरबों डॉलर के निवेश तथा नई प्रौद्योगिकी का आश्वासन मिला। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ के माध्यम से 25 क्षेत्रों में देश को विनिर्माण केन्द्र बनाने का प्रयास किया। उनकी कुछ अच्छी नीतियां हैं जैसे प्रधानमंत्री जन-धन योजना, 12 रुपए देकर प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, 330 रुपए देकर प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और असंगठित क्षेत्र के लिए अटल पैंशन योजना। 
 
किन्तु मोदी ने उससे अधिक करने का प्रयास किया जितना वह कर सकते थे। उन पर यह आरोप लगाया जाता है कि वह केवल बातें करते हैं, काम नहीं करते। आम आदमी उन्हें ऐसा व्यक्ति मान रहा है जो करोड़पतियों का पक्षधर है। इस प्रधान सेवक ने जब पहली बार भारत के लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद भवन में प्रवेश किया तो उसके द्वार पर झुककर अपना शीश लगाया और रूआंसे गले से कहा कि वह हमेशा भारत माता पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देंगे। किन्तु क्या यह केवल एक दिखावा था? और ऐसा लगता भी है। कहां गड़बड़ हुई? सभी जगह। 
 
दुखद तथ्य यह है कि ‘नमो’ यह भूल गए कि सत्ता 99 प्रतिशत अवधारणा पर आधारित है। चाहे वह गलत हो या सही। उन्हें एक अहंकारी के रूप में देखा जा रहा है और यह माना जा रहा है कि वह अकेले ही सारी शक्तियों पर नियंत्रण कर रहे हैं और सारी शक्तियां प्रधानमंत्री कार्यालय में निहित हैं और उनके किसी भी कार्य पर कोई भी प्रश्न नहीं उठा सकता। यहां तक कि उनके मंत्री भी उनसे डरते हैं। संसद और पार्टी कार्यकत्र्ता चुप रहते हैं कि कहीं उन्हें कोपभाजन न बनना पड़े। वह आज हांस क्रिश्चियन एंडरसन की कथा ‘द एम्परर विद न्यू क्लॉथ्स’ जैसे लगते हैं। सच कहा गया है कि परम सत्ता व्यक्ति को भ्रष्टाचारी बना देती है। 
 
शायद मोदी मानते हैं कि वह अपने गुजरात मॉडल को नई दिल्ली और संसद में पूरी तरह लागू कर सकते हैं। गुजरात में अपने 12 वर्ष के शासन में ‘नमो’ ने पार्टी में अपने विरोधियों और विपक्ष को निरर्थक बना दिया था और वहां उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था। वह विधानसभा सत्र में यदा-कदा ही जाते थे, जिसकी 6 माह में कुछ बैठकें  होती थीं वह भी इसलिए कि यह संवैधानिक अपेक्षा थी। अब प्रश्न उठता है कि बहुत गरीब घर से उठा हुआ व्यक्ति कहां है? आज राहुल गांधी उन पर प्रहार करते हैं कि उनकी ‘सूट-बूट की सरकार’ है। उन्हें स्वयं महंगे कपड़े, शॉल, आयातित डिजाइनर चश्मे, घड़ी आदि पहनने का शौक है। 
 
इसके अलावा उन पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि वह ‘विजिटिंग प्राइम मिनिस्टर’ हैं जिन्होंने भारत की संसद से अधिक अन्य देशों की संसदों को संबोधित किया है। बजट सत्र के दौरान मोदी को संसद में कम ही देखा-सुना गया है। संसदीय प्रक्रिया, शिष्टाचार और परम्पराओं के लिए उनकी उपेक्षा इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि उनके मंत्री विधेयकों को संसद की स्थायी समितियों को इस आधार पर नहीं भेजना चाहते कि वे शीघ्र कानून पारित करना चाहते हैं और राज्य सभा की उपेक्षा कर वित्त विधेयक में और कानूनों को शामिल कर देते हैं क्योंकि राज्यसभा में ‘राजग’ का बहुमत नहीं है। 
 
सरकार की सबसे बड़ी विफलता महंगाई पर अंकुश न लगा पाना है। जब भी मैं बाजार जाती हूं तो सब्जियों, तेल, चीनी, गेहूं, दाल, चावल आदि के दामों में 2 से 10 रुपए तक की वृद्धि देखने को मिलती है। यह कहना कि गर्मियों के मौसम में दाम बढ़ जाते हैं इससे काम नहीं चलेगा क्योंकि कांगे्रस भी यही कहती रही है। 
 
राजग सरकार ने कर की दरों में भी वृद्घि की है। सेवा कर की दर 12.3 से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दी गई है और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इसका कारण यह है कि इससे हिसाब-किताब आसान हो जाता है। उन्हें इस बात का पता नहीं है कि इसका प्रभाव परिवार के  बजट पर भी पड़ता है। इसके अलावा पानी, बिजली के बिलों में भी वृद्धि हुई है। क्या इस वित्तीय वर्ष के अंत में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत बढ़ाकर आम आदमी की समस्याएं कम होंगी? इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने बाल कटवाने जैसी दैनिक आवश्यकताओं पर भी 2 प्रतिशत का विलासिता कर लगाया है। भवन निर्माता परेशान हैं, खरीदार यदि 25 लाख से अधिक का फ्लैट लेते हैं तो उन्हें 10500 रुपए अधिक देने पड़ेंगे। इससे आर्थिक वृद्धि दर में तेजी की बजाय गिरावट आएगी और लोगों को लग रहा है कि मोदी धनी वर्ग के पक्षधर हैं। 
 
गरीब किसानों के बारे में जितना कम कहा जाए अच्छा है। पिछले एक वर्ष में 16500 किसानों ने आत्महत्या की। देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है और उनके जीवन में सुधार की बजाय सरकार का भूमि अधिग्रहण विधेयक किसान विरोधी माना जा रहा है और इस मामले में वार्ता द्वारा गलतफहमियों को दूर करने की बजाय सरकार ने अध्यादेश का मार्ग अपनाया। सरकार की एक और कमी यह है कि इस वर्ष बजट में लोक स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक क्षेत्र के बजट में कमी की गई है।
 
मध्याह्न भोजन योजना के रसोइए, आंगनबाड़ी  कार्यकत्र्ता, महिला समाख्या कार्यकत्र्ता आदि सड़कों पर उतर गए हैं और राज्य सरकारों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। शिक्षा के भगवाकरण पर भी लोगों में असंतोष फैल रहा है। मोदी सरकार की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि आम आदमी उन्हें बड़े उद्योगपतियों के हाथों की कठपुतली मान रहे हैं जबकि उद्योगपतियों की शिकायत है कि सरकार की आॢथक नीति दिशाहीन है, बड़े सुधार नहीं किए गए हैं तथा अर्थव्यवस्था में तेजी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। एक बड़े  उद्योगपति के अनुसार लगता है नीतिगत निर्णय लेने में अक्षमता है। जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है। मोदी का जादू अपनी चमक खोने लग गया है। 
 
मोदी द्वारा कट्टर हिन्दूवादियों पर अंकुश लगाने में विफलता भी राजनीतिक असंतोष का कारण बन गई है। ये लोग गरीब मुसलमानों के पुन: धर्मान्तरण के घर वापसी कार्यक्रम तथा हिन्दू लड़कियों को विवाह के नाम पर फंसाने वाले मुस्लिम युवकों के विरुद्ध ‘लव जेहाद’ द्वारा साम्प्रदायिक ध्ुा्रवीकरण का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह की बातों से विभिन्न समुदायों के बीच के संबंध खराब हुए हैं और ये संबंध इतने खराब हुए हैं कि अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव-सा दिखाई देने लगा है। सबसे हैरानी की बात यह है कि मोदी अभी विकास से जुड़े उन मुद्दों की ओर ध्यान नहीं दे पाए हैं जो सीधे जनता से जुड़े हुए हैं अर्थात् शौचालयों के निर्माण से पूर्व लोगों को रोजगार और आवास की आवश्यकता है। 
 
क्या मोदी भारत को बदल सकते हैं? क्या वह भारत को महाशक्ति बना सकते हैं? इसके लिए मोदी को इस बात को समझना होगा कि राजनीति का वास्तविक अर्थ सत्ता नहीं अपितु सेवा है। उन्हें व्यवस्था में नई जान डालनी  होगी और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना होगा। सत्ता के साथ जिम्मेदारी जुड़ी हुई होती है। उन्हें अपने व्यक्तित्व का पुनॢनर्माण करना होगा और जमीन पर उतरना होगा। उन्हें एक निरंकुश शासक से जमीन से जुड़ा नेता बनना होगा।   
 
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