पूर्व कार्यपालकों ने देश में त्रिभाषा सूत्र को अक्षरशः लागू करने की मांग

Edited By Riya bawa,Updated: 19 Jul, 2020 03:54 PM

former executives demanded to implement the trilingual formula literally

देश के विभिन्न केंद्रीय संस्थानों, बैंकिंग प्रतिष्ठानों तथा विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त भाषाविदों एवं वरिष्ठ कार्यपालकों ने बेंगलूर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार में भारत की भाषा - समस्या पर गहन विचार विमर्श करते हुए यह रेखांकित किया कि...

देश के विभिन्न केंद्रीय संस्थानों, बैंकिंग प्रतिष्ठानों तथा विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त भाषाविदों एवं वरिष्ठ कार्यपालकों ने बेंगलूर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार में भारत की भाषा - समस्या पर गहन विचार विमर्श करते हुए यह रेखांकित किया कि आजादी के बाद बहुभाषी भारत की शिक्षा - व्यवस्था के लिए सुविचारित त्रिभाषा सूत्र को उत्तर भारत की आँख से देखा गया और इसमें चूक हुई। वेबिनार का विषय था,बहुभाषी भारत में त्रिभाषा सूत्र की महत्ता। वक्ताओं ने अपने-अपने कथन में यह रेखांकित किया कि “भाषा का सवाल भारत की अस्मिता और पहचान से तथा सामाजिक न्याय एवं आर्थिक प्रगति को लोकहित में सतह के आदमी तक पहुँचाने से जुड़ा हुआ है। इसे भूमंडलीकरण के दौर में अंग्रेजी के तेज बढ़ते बोलबाले के बीच हल्के में लेना आत्मघाती होगा ।”

आगे, उन्होंने अपने वैचारिक विमर्ष में यह भी चिंता जताई कि “इसमामले में आजादी के बाद से अब तक के सरकारी प्रयास पर्याप्त सिद्ध नहीं हो सके हैं । फलस्वरूप लोक में धारणा बन रही है कि देश की सामाजिक विषमता, असंतुलित विकास और सामुदायिक सौहार्द का विघटन जैसी विकराल समस्याओं के जिम्मेवार कारणों में भाषा संबंधी व्यवस्थागत उपेक्षा और इस दिशा में एक हद तक शासकीय निष्क्रियता भी शामिल है । तथापि देश के चहुँमुखी विकास में भाषा की भूमिका को देखते हुए इस मुद्दे को अब अधिक समय तक टाला नहीं जा सकता। फलस्वरूप भाषा के सवाल पर अब मिशनरी भाव से पूरे देश में लोक जागरण पैदा करना होगा, जनप्रतिनिधियों को अभिप्रेरित करना होगाऔर केंद्रीय सरकार के स्तर से सक्रिय पहल करने के लिए अभियान चलाना होगा ।”

वेबिनार में मुख्य वक्ता थे भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष और कथाकार, समीक्षक प्रो.अरविंद कुमार। डॉ. रमाकांत गुप्ता, पूर्व महाप्रबंधक, भारतीय रिजर्व बैंक के संयोजन में आयोजित इस वेबिनार में डॉ. एस.एन. सिंह, पूर्व निदेशक, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, भारत सरकार; डॉ. एस.टी. रामचंद्र, पूर्व महाप्रबंधक, केनरा बैंक; उदय कुमार सिंह, पूर्व मुख्य प्रबंधक (राजभाषा), गेल (इंडिया) लिमिटेड; डॉ. एस के पांडेय, पूर्व सहायक महाप्रबंधक, सिंडिकेट बैंक, श्रीलाल प्रसाद, पूर्व मुख्य प्रबंधक, राजभाषा , पंजाब नेशनल बैंक और डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल, पूर्व उप महाप्रबंधक, कॉर्पोरेशन बैंक (तत्कालीन) ने देश की भाषाई विविधता के मद्देनजर एक संपर्क भाषा की अनिवार्यता और त्रिभाषा सूत्र की महत्ता के संबंध में व्यापकविचार-विमर्श किया। दो दिवसीय वेबिनार बीते रविवार, क्रमशः 5 एवं 12 जुलाई को गूगल मीट के प्लेटफॉर्म पर आयोजित हुआ।

प्रो. अरविंद कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि देश में राष्ट्रीय सद्भाव कायम करने के लिए एक दूसरे के आचार-विचार के साथ उनकी भाषाओं की जानकारी भी आवश्यक है । उन्होंने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्रीय सद्भाव स्थापित करने में अनुवाद से कहीं अधिक बड़ी भूमिका भारतीय भाषाओं को सीखने की होगी। देश की विभिन्न भाषाओं से तादात्म्य स्थापित करने में त्रिभाषा सूत्र काफी सहायक हो सकता है। व्यापारिक, कार्यालयीन, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और

साहित्यिक कारणों से हमें स्वप्रेरणा से एक दूसरे की भाषा सीखनी चाहिए। वेबिनार में विमर्श को आगे बढ़ाते हुए वक्ताओं ने यह रेखांकित किया कि भूमंडलीकरण और टेक्नोलॉजी के जमाने में और बाजार के दबाव में जिस कदर अंग्रेजी और पाश्चात्य संस्कृति का बोलबाला बढ़ रहा है, उसके मुकाबले भारत की अस्मिता और पहचान की हिफाजत के लिए तथा देश की एकता और अखंडता के भाव बोध के संवर्धन के लिए बहुत जरूरी हो गया है कि संपर्क भाषा हिंदी को और सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं को रोजगार से जोड़ा जाए । संविधान की भाषा संबंधी व्यवस्था और अनुच्छेद 351 के अनुरूप संघ सरकार का यह कर्तव्य है कि वह इस मामले में गंभीरतापूर्वक कार्य करे।

प्रसंगत: विचार-विमर्श के दौरान वेबिनार में निर्णय लिया गया कि भारतीय भाषाओं जैसे अभिव्यक्ति और संप्रेषण के सशक्त माध्यम को व्यापक लोक-व्यवहार में लाने के लिए शीर्ष स्तर पर अनुरोध किया जाए। फलस्वरूप केंद्रीय सरकार निम्नलिखित पर अविलंब कार्रवाई करे :-

1) बहुभाषी भारत में राष्ट्रीय अखंडता और भावात्मक एकता के लिए हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में बढ़ावा देना नितांत आवश्यक है और इसके लिए केंद्रीय शिक्षा आयोग एवं देश की शिक्षा नीति की संस्तुतियों के अनुरूप देशभर में प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा में त्रिभाषा सूत्र का अक्षरशः एवं प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित किया जाए । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए -

(क.) भारत के हिंदी-भाषी राज्यों में दक्षिणी राज्यों की भाषाओं में से किसी एक भाषा की पढ़ाई तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य रूप से
सुनिश्चित हो । केंद्र सरकार हिंदी-भाषी राज्यों की सरकारों के साथ मिलकर ऐसी शैक्षणिक व्यवस्था करे, जिसके तहत सभी प्रमुख हिंदीतर भाषाओं का पठन-पाठन किसी न किसी एक हिंदीभाषी राज्य में संभव हो सके।

(ख.) इसी तरह हिंदीतर राज्यों में हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य रूप से सुनिश्चित हो ।
(ग) इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों एवं शिक्षा मंत्रियों तथा राज्यों के प्रतिपक्षी

नेताओं एवं प्रसिद्ध भाषा-विशेषज्ञों का यथाशीघ्र राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करे और समुचित एवं प्रासंगिक नीति निर्धारित कर उसे
अविलंब कार्यान्वित करने का प्रयास करे ।

2) हिंदी एवं हिंदीतर भाषाओं का एक वृहत, प्रामाणिक एवं निरंतर अद्यतन (अपडेशन) किए जाने की सुविधायुक्त ई-महाशब्दकोश तैयार कराया जाए और उसका मोबाइल वर्जन नि:शुल्क तौर पर सर्वसुलभ कराया जाए ताकि भारतीय भाषाओं में किए गए कार्यों को समझने में आम आदमी को कोई असुविधा न हो ।

3) सभी भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दावली की यथासंभव एकरूपता सुनिश्चित की जाए। वेबिनार में उक्त लक्ष्य को पूरा करने में सभी संभावित व्यय को केंद्रीय बजट से पूरा करने की जरूरत बतायी गयी और केंद्र सरकार से मांग की गई कि वह इस दिशा में अपेक्षित कार्रवाई शीघ्र करे। पूर्व कार्यपालकों ने वेबिनार में पारित प्रस्तावों पर अपेक्षित अनुवर्ती कार्रवाई के लिए अपनी मांगों का एक ज्ञापन भारत के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, कैबिनेट सचिव, एवं कतिपय शीर्ष अधिकारियों को मेल से भेजा है।

(उदय कुमार सिंह)
 

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