मैं कवि नहीं हूँ

Edited By Riya bawa,Updated: 12 May, 2020 05:36 PM

poem i am not a poet

कश्मीर में आतंकवाद के दंश ने कश्मीरी जनमानस को जो पीड़ा पहुंचाई है,उससे उपजी ह्रदय-विदारक वेदना तथा उसकी व्यथा-कथा को साहित्य में ढालने के सफल प्रयास पिछले लगभग तीन दशकों के बीच हुए हैं। कई कविता-संग्रह, कहानी-संकलन,औपन्यासिक कृतियां आदि सामने आए...

कश्मीर में आतंकवाद के दंश ने कश्मीरी जनमानस को जो पीड़ा पहुंचाई है,उससे उपजी ह्रदय-विदारक वेदना तथा उसकी व्यथा-कथा को साहित्य में ढालने के सफल प्रयास पिछले लगभग तीन दशकों के बीच हुए हैं। कई कविता-संग्रह, कहानी-संकलन,औपन्यासिक कृतियां आदि सामने आए हैं, जो कश्मीर में हुई आतंकी बर्बरता और उससे जनित एक विशेष जन-समुदाय के ‘विस्थापन’ की विवशताओं को बड़े ही मर्मस्पर्शी अंदाज में व्याख्यायित करते हैं।

इस सन्दर्भ में कश्मीर के चर्चित कवि ब्रजनाथ ‘बेताब’ के कविता-संग्रह ‘मैं कवि नहीं हूं...’ का उल्लेख करना परम आवश्यक है। अपनी विशिष्ट रचना- शैली,भावाभिव्यक्ति तथा विषय-वस्तु की दृष्टि से यह संग्रह न केवल पठनीय बन पड़ा है अपितु मन-मस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला एक सुचिन्त्य एवं संग्रहणीय दस्तावेज भी बन पड़ा है। ‘माइग्रेण्ट कल्चर’ को केन्द्र में रखकर कवि ने जो बिम्ब और रूपक इस संग्रह की कविताओं में उकेरे हैं, वे मर्म को छूने वाले तो हैं ही, ‘विस्थापन’ की पीडा और त्रासदी से जनित कवि के मन की

आकुलता एवं आक्रोश को बडी कलात्मकता के साथ रूपायित भी करते हैं। भोगी हुई पीडा के प्रतिक्रियास्वरूप ‘बेताब’ की स्थितियों को समझने-देखने की क्षमता उनकी अद्भुत प्रतिभा/मनस्विता का परिचय देती है।

 ‘माइग्रेण्ट कल्चर’ की परिभाषा कवि ने इन शब्दों में की है-
 ‘माइग्रेण्ट कल्चर
 जिसमें न भूत है, न भविष्य, न वर्तमान,
 और जहां न भूत, न भविष्य, न वर्तमान हो,  
 वहां कविता हो ही नहीं सकती...। पृ.6
‘बेताब’ का चिंतन विस्थापन की त्रासदी को समूचे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में
आंकता-परखता है। कवि की पीड़ा का स्वर इतिहास के पन्नों को खंगालते हुए
बडे ही तीखे और आक्रोश-भरे अंदाज में यों कटाक्ष करता है-
 मेरी कविता मुख्यमंत्री का वह पद है
 जिसपर एक पिता अपने पुत्र की अपने 
स्वर्गवासी पिता की तरह ताजपोशी कराकर
 उसे सिंहासन पर विराजमान करता है....।पृ.11

भावस्थितियों की विविधता ‘बेताब’ की कविताओं में विपुल मात्रा में देखने को मिलती है। कहीं बेबसी है तो कहीं कर्मोत्साह है। कहीं दैन्य है तो कहीं आक्रोश
है। कहीं चीख है तो कहीं मूक संगीत है।कुल मिलाकर कवि की हृदय-तन्त्री से निकले हुए हर भाव का समायोजन संगह की कविताओं में बडी कुशलता और
सटीकता से हुआ है। एक स्थान पर कवि कहता है-
 
पहले संगीत बजता था तो दिल के तार भी बजते थे
अब दिलों के बीच तार लगा दी गई है
और संगीत चीखता है....।
अब हर कोई चीखता है और
 मेरे देशवासियों की चीखें शिखर पर बैठे
 कवि के कानों तक नहीं पहुंच पातीं....।पृ.19
 
प्रायः समझा जाता है कि कवि कल्पनाशील होता है और भविष्य के सुनहरे आदर्शवादी ताने-बाने बुनने में उसकी अधिक दिलचस्पी रहती है।मगर, ‘बेताब’
की कविताएं ऐसा कुछ भी संकेत नहीं देतीं। वे ठोस यथार्थ और भोगे हुए कड़वे सत्य को भावाकुलता के साथ उद्घाटित करने वाली जीवन्त शब्द-रचनाएं हैं-
मैं कवि नहीं हूं
न भविष्य मेरी कविता है
मेरी कविता वर्तमान है
जिसमें चौराहे पर जलता हुआ एक दिया
जलकर राह चलते लोगों को
राह दिखाता है।.....पृ.25-26

विरोधाभासी शैली का इस्तेमाल करना ‘बेताब’ की कविताओं की खास पहचान है मनोभावों को व्यंग्य के नुकीले बाणों ;कैक्टस के नुकीले कांटों की तरह पाठक के अन्तर्मन को छूते हुए उसके मस्तिष्क में एक कौंध जगाना यों एक सरल कार्य तो नहीं है, मगर ‘बेताब’ की कविताओं में यह ‘क्वॉलिटी’ खूब देखने को
मिलती है। वह पाठक को झिंझोडती ही नहीं, उसे बहुत-कुछ सोचने पर भी मजबूर करती है-

 मैं कवि नहीं हूं
 न मूल्यों का वर्णन मेरी कविता है,
 मूल्यों का वर्णन करने  वाला
 विधायक,मंत्री,नेता हो जाता है,
 और विधायक,मंत्री,नेता 
 कविता नहीं,उपदेश देते हैं
 अपने स्वार्थ रूपी महाभारत के युद्ध में,और
 बना देते हैं कुरुक्षे़त्र
 समस्त देश को।...पृ.33

विस्थापन की त्रासदी ने कवि के मन-मस्तिष्क को बहुत गहरे तक आक्रांत कर दिया है। उसकी यह पीड़ा उसके रोम-रोम में समाई हुई है। घर-परिवार की
सुखद स्मृतियों से लेकर आतंकवाद की आग तक की सारी क्रूर स्थितियां कवि की एक-एक पंक्ति में उभर-उभर कर सामने आती हैं। आतंकी विभीषिकाओं का कवि द्वारा किया गया वर्णन और उससे पैदा हुई सामाजिक असमानता/स्थितियां मन को यों आहत करती हैं-
  मैं कवि नहीं हूं
  न मेरी धरा के सीने में छिपा मेरा लहू
  मेरी कविता है।
  क्योंकि मैं अपने लहू को छिपाने का नहीं
  लहू से धरा को सींचने का आदी रहा हूं।
  यही मेरी विरासत,मेरी परंपरा है
  जिसे निभाते निभाते मैं 
 बहुसंख्यक होते हुए भी अल्पसंख्यक हो गया हूं।...पृ.42

एक अन्य स्थान पर कवि द्वारा किए गया ‘कर्फ्यू’ का वर्णन कैसा मर्मांतक बन
पड़ा है,यह देखिए-
मेरी कविता कर्फ्यू से उत्पन्न वह सन्नाटा है
 जिसमें एक बच्चे के बिलखने की आवाज
किसी भी कान तक नहीं पहुंचती...
और जब बच्चा रोता है 
 तो मां उसे यह कह कर दबोच लेती है-
 बेटा चुप हो जा, नहीं तो मुखबिर आएगा
और जहां मुखबिर के डर से 
  भूख की मार सहनी पड़े
 वहां कविता हो ही नहीं सकती।...पृ. 45-46
कुल मिलाकर ब्रजनाथ ‘बेताब’ के कविता-संग्रह ‘मैं कवि नहीं हूं...’  में संकलित कविताएं कवि के मन से निकले ऐसे उद्गार हैं जो उनके भोगे हुए यथार्थ से
साक्षात्कार कराते हैं।  और इसके लिए वे परिस्थितियों को नहीं अपितु अपने पुरखों को दोषी ठहराते हैं और मोटे तौर पर सम्भवतः इस संकलन की
सार्थकता भी इसी बात को रेखांकित करने में है-

मेरी कविता
मेरे पुरखों का वह ‘पाप’ है
जिसकी सजा मैं 
इस ‘कारागार’ में काट रहा हूं।....पृ.50

( डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!