"वह सुबह न आई'

Edited By Riya bawa,Updated: 06 May, 2020 04:00 PM

poem she did not come in the morning

वह सुबह न आई, कई दिन बीत गए। वह शाम न हुई, कई दिन बीत गए।। सुबह की आहट, और घड़ी के काटो पर मेरी नजर। आज की मंजिलो को पाकर, कल को साकार करने पर मेरी नजर। विश्वास से भरा मेरा आज, भविष्य में जीने पर मेरी नजर।। पर वह सुबह न आई, कई ...

वह सुबह न आई, कई दिन बीत गए।
वह शाम न हुई, कई दिन बीत गए।।

सुबह की आहट, और घड़ी के काटो पर मेरी  नजर।
आज की मंजिलो को पाकर, कल को साकार करने पर मेरी नजर।
विश्वास से भरा मेरा आज, भविष्य में जीने पर मेरी नजर।।        
पर वह सुबह न आई, कई दिन बीत गए .......

इमारतों की उचाई भी, मेरी सोच से छोटी लगती।
लंबे रास्ते भी अब,  मेरी समझ से छोटे लगते।
अब ना कोई मंजिल ही मुश्किल बची है।
ऐसा सफर है, हर मंजिल राहो में कारवाँ बनाती।।
पर वह सुबह न आई, कई दिन बीत गए .......

छोटी चुनौतीया, अब बड़ी लगने लगी है।
आँखों में सपने, अब धुधंले लगने लगें हैं।
सुना है इतना छोटा है, आँखों से दिखता भी नहीं।
फिर भी मैं इंसान, कितना बेबस लगने लगा हूँ।।
पर वह सुबह न आई, कई दिन बीत गए .......

आज दुनिया, तेरे वजुद से रूकने लगी हैं।
मेरे ही शहर में, तेरी हुकूमत होने लगी हैं।
चुनौतीयो से लड़ने को, मैं भी तैयार होने लगा हूँ.
देख ले, आज की राख में कल की चिगांरिया जलने लगी हैं।।
पर वह सुबह न आई, कई दिन बीत गए ........

(गनपती सराटकर)

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