‘चंद्रयान 2 : अभियान’ ‘चूक जाना मंजिल के निकट पहुंच कर’

Edited By ,Updated: 08 Sep, 2019 01:34 AM

chandrayaan 2 mission  missing near the destination

अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक के बाद एक उपलब्धियां प्राप्त कर रहे भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ‘इसरो’ ने 22  जुलाई को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मैग्नीशियम और लोहे जैसे खनिजों का पता लगाने, चांद के वातावरण और इतिहास...

अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक के बाद एक उपलब्धियां प्राप्त कर रहे भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ‘इसरो’ ने 22  जुलाई को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मैग्नीशियम और लोहे जैसे खनिजों का पता लगाने, चांद के वातावरण और इतिहास संबंधी डाटा जुटाने और वहां पानी या उसके संकेतों संबंधी खोज करने के लिए श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपना महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 प्रक्षेपित किया था। 

चंद्रयान-2 ने अपने प्रक्षेपण के बाद चांद पर उतरने से पहले तक के सभी 6 पड़ाव 4 सितम्बर तक सफलतापूर्वक पार कर लिए और सब कुछ ठीक चल रहा था और पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 6-7 सितम्बर की रात 1.53 बजे अंतिम चरण पर इसके लैंडर ‘विक्रम’ को चांद पर उतरना था। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन होना था। चांद से मात्र 2.1 किलोमीटर की दूरी तक इसका इसरो से संपर्क बना रहा परंतु लैंङ्क्षडग से मात्र 1 मिनट और 6 सैकेंड पहले इसका इसरो से संपर्क टूट गया और इसके साथ ही 2008 से इस मिशन को सफल बनाने में जुटे इसरो के वैज्ञानिकों सहित 1.30 अरब देशवासियों की आशाओं पर तुषारापात हो गया। 

रात के लगभग अढ़ाई बजे बेंगलूर में ‘इसरो’ के मुख्यालय में इसके प्रमुख के.सिवन ने यान का संपर्क टूटने की देश को सूचना दी और ‘इसरो’ के मुख्यालय में रुकने के बाद फिर शनिवार सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री वहां पहुंचे तो उन्होंने वहां उपस्थित वैज्ञानिकों की आंखों में उदासी देख कर उनका उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि, ‘‘आप लोगों ने देश को मुस्कराने और गर्व करने के कई मौके दिए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो आपसे प्रेरणा लेने के लिए सुबह-सुबह यहां पहुंचा हूं। मैं आपको क्या ज्ञान दे सकता हूं। हर संघर्ष और हर कठिनाई हमें कुछ सिखा कर जाती है। हम विफल हो सकते हैं पर निराश नहीं। हमारे जोश व ऊर्जा में कमी नहीं आएगी। हम फिर पूरी क्षमता से आगे बढ़ेंगे। पूरा देश आपके साथ है।’’ 

जब प्रधानमंत्री वहां से विदा होने लगे तो इसरो के अध्यक्ष के. सिवन उनके गले लग कर रोने लगे। इस पर प्रधानमंत्री ने उनकी पीठ थपथपा कर उनको दिलासा दिया। बेशक 978 करोड़ रुपए की लागत वाले चंद्रयान-2 के मिशन का भविष्य रहस्य के घेरे में आ गया है परंतु चांद की कक्षा में मौजूद आर्बिटर साढ़े सात वर्ष तक चांद के बारे में जानकारी देता रहेगा। यदि लैंडर ‘विक्रम’ चांद पर उतर जाता तो भारत चांद पर उतरने वाला विश्व का चौथा देश तथा चांद पर रोबोटिक रोवर चलाने वाला तीसरा देश बन जाता परंतु अंतिम समय पर इसरो से संपर्क टूट जाने से भारतीय वैज्ञानिकों की 11 वर्षों की तैयारी और 4 साल तक चले कड़े अभ्यास को ग्रहण लग गया। 

चंद्रयान-2 के अंतिम मंजिल तक न पहुंच पाने के बावजूद हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इस अभियान से जुड़े तमाम लोग साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने इसे सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हमें विश्वास है कि भविष्य में हमारे वैज्ञानिक पहले से भी अधिक मेहनत और उत्साह से काम करके अंतरिक्ष जगत में सफलताएं प्राप्त करेंगे।—विजय कुमार 

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