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‘राजनीतिक दलों को लग रहे झटके’‘दल बदली जोरों पर’

Edited By ,Updated: 19 Nov, 2021 04:52 AM

political parties are getting shock   defection in full swing

जैसे-जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दूसरे दलों में सेंधमारी और दल बदल का खेल भी जोर पकड़ता जा रहा है, जो मात्र 10 दिनों के निम्र उदाहरणों

जैसे-जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव नजदीक आ रहे हैं, दूसरे दलों में सेंधमारी और दल बदल का खेल भी जोर पकड़ता जा रहा है, जो मात्र 10 दिनों के निम्र उदाहरणों से स्पष्ट है : 

* 09 नवम्बर को ‘आम आदमी पार्टी’ की विधायक रुपिंद्र कौर रूबी ने पार्टी से इस्तीफा दिया और अगले दिन कांग्रेस में शामिल हो गईं।
* 10 नवम्बर को जम्मू-कश्मीर के पूर्व कांग्रेस नेता वाई.वी. शर्मा, जिन्होंने गत वर्ष दिसम्बर में पार्टी छोड़ी थी, भाजपा का दामन थाम लिया।
* 11 नवम्बर को बंगाल की लोकप्रिय अभिनेत्री सरबंती चटर्जी ने भाजपा पर बंगाल की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पार्टी की सदस्यता छोड़ दी। 

* 11 नवम्बर को ही पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक जगतार हिस्सोवाल ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली। 
* 11 नवम्बर वाले दिन ही मणिपुर में ‘लोजपा’ के इकलौते विधायक करम श्याम ने पार्टी को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थाम लिया।
* 16 नवम्बर को गोवा भाजपा के वरिष्ठï नेता विश्वजीत राणे ने पार्टी से त्यागपत्र देकर ‘आम आदमी पार्टी’ की सदस्यता ग्रहण कर ली।
* 17 नवम्बर को यू.पी. में सपा के 4 एम.एल.सी. नरेंद्र भाटी, रविशंकर सिंह, सी.पी. चंद्र तथा रमानिरंजन पाला बदल कर भाजपा में चले गए। 
* 17 नवम्बर को ही कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के 7 प्रमुख नेताओं, जिनमें 4 पूर्व मंत्री और 3 विधायक हैं, ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। 

दलबदली के इस बढ़ते रुझान के बीच सभी दल एक-दूसरे के सदस्यों को घेरने में जुटे हैं परंतु दल बदलू नेताओं को शायद इस बात का ध्यान नहीं है कि दल बदलू को शुरू-शुरू में तो दूसरी पार्टी में सम्मान मिलता है परंतु कुछ समय बाद दूसरी पार्टी के पुराने सदस्य उसे ठुकराने लगते हैं। 

अपनी भूल का एहसास होने पर या तो वह अपनी मूल पार्टी में लौटने को और या फिर किसी अन्य पार्टी का दामन थामने को विवश हो जाता है। अत: जो व्यक्ति जिस पार्टी में है, उसे उसी में रह कर ही संघर्ष करना चाहिए। इसी प्रकार पार्टी के उच्च नेताओं का भी फर्ज है कि वे सुनिश्चित करें कि कर्मठ वर्करों की अनदेखी न हो, उनकी आवाज सुनी जाए और उन्हें उनका बनता अधिकार दिया जाए ताकि दल बदली की नौबत न आए।—विजय कुमार 

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