भारत के लिए ‘शुष्क ऋतु’ जैसा तथा निर्दयी है वर्ष 2020

Edited By ,Updated: 13 Jan, 2020 01:47 AM

2020 is a dry and merciless year for india

नागरिकता संशोधन कानून अधिसूचित हो चुका है तथा प्रभावी हो चुका है। इसके खिलाफ देश भर में हो रहे प्रदर्शनों का सरकार की मुद्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ा जोकि इसके हक में है। इसका मतलब इसको एक कानून के तौर पर देखा जाएगा, जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके...

नागरिकता संशोधन कानून अधिसूचित हो चुका है तथा प्रभावी हो चुका है। इसके खिलाफ देश भर में हो रहे प्रदर्शनों का सरकार की मुद्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ा जोकि इसके हक में है। इसका मतलब इसको एक कानून के तौर पर देखा जाएगा, जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रति असमर्थन देखा है। भारत के विदेश मंत्री अमरीकी कांग्रेस वूमैन के साथ एक बैठक से भाग खड़े हुए जोकि इस मुद्दे पर उनको आड़े हाथों लेना चाहती थी। हालांकि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 

पुलिस वैसा ही करेगी जैसा सरकार निर्देश देगी
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के मामले में पूरे राष्ट्र ने युवा महिलाओं विशेषकर छात्र संघ की नेता पर हुए हमलों का दृश्य देखा। उनके लिए न्याय मांगा गया। पुलिस ने छात्र संघ की नेता को ही आरोपी बना दिया। इसके विपरीत हमलावरों को क्लीनचिट दे दी गई। सैद्धांतिक रूप से प्रशासन की पुलिस स्वतंत्र है। मगर ऐसा सत्य नहीं है। पुलिस वैसा ही करेगी जैसा सरकार निर्देश देती है क्योंकि दिल्ली पुलिस मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की स्थानीय सरकार के अधीन नहीं बल्कि वह तो मोदी की केन्द्रीय सरकार के नियंत्रण में है।

यह केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही हैं जिन्होंने न्याय को पलटने के लिए अपनी स्वीकृति दी। जब जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश में बदला और वहां पर भारतीय सुरक्षा बल गलियों तथा सड़कों पर तैनात थे, मैंने एक स्थानीय पत्रकार को पूछा कि नई दिल्ली की रणनीति क्या है। उसने कहा कि कुछ भी नया दिखाई नहीं देता मगर प्रशासन के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से निर्देश आते हैं कि स्थानीय लोगों के लिए ‘सख्त रवैया अपनाओ, बहुत ज्यादा सख्त’ और ऐसा हुआ भी है। घाटी के नेता बिना कोई चार्ज तथा अपराध के जेलों में बंद हैं। नागरिक भी इसी तरह जेल में हैं। किसी प्रकार की गतिविधियों पर पाबंदियां हैं। 

शांतिपूर्ण एकत्र होने का कोई अधिकार नहीं। संचार व्यवस्था लोगों की पहुंच से बाहर है और यह कई सालों से चल रहा है। उनके प्रवेश द्वार लगातार सुरक्षा बलों के पहरे में हैं। ऐसा कोई भी शब्द या कार्रवाई यह भरोसा नहीं दिलाती कि कश्मीरियों के लिए भविष्य कुछ अलग से दिखाई देगा। उक्त बातों से हम समझ सकते हैं कि भारतीयों तथा विश्व की ओर देख रहे विदेश के लिए यह मुद्दे गम्भीर चिंता का विषय हैं। इन्हें तो नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह के द्वारा ही चलाया जाता है। अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए वह ऐसे स्वरूप से पीछे हटने वाले नहीं। अगर हम मोदी तथा शाह के नागरिकता मामले को लेकर दिए गए बयान को देखें तो यह सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। 

जब यह स्पष्ट हो गया कि प्रदर्शन पर अंकुश लगने वाला नहीं तब पी.एम. मोदी ने उन पर विराम लगाते हुए यह कहा कि राष्ट्रव्यापी एन.आर.सी. पर चर्चा ही नहीं हुई। उन्होंने यह कहने के लिए नहीं चुना कि यह घटित ही नहीं होगा। यह उन लोगों के लिए सांत्वना नहीं थी, जो असम की तरह राष्ट्रव्यापी कार्रवाई के लिए चिंतित थे। हालांकि प्रधानमंत्री इसको हाथों से जाने नहीं देंगे क्योंकि यह एक विचारधारा की धारणा है न कि कोई राजनीतिक रणनीति या कोई विशेष नीति। मोदी भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को कुछ क्षति पहुंचाने के लिए तैयार हैं (मुझे पूरी उम्मीद है कि विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद उस बैठक से प्रधानमंत्री की विशेष अनुमति लिए बिना नहीं भागे होंगे)। 

यह निश्चित तथा सम्भावित है कि ट्रम्प फिर से चुनाव जीत न पाएं
अप्रैल से मोदी सरकार अपने अधिकारियों को सभी राज्यों में भेजेंगे ताकि वह नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स के पहले कदम नैशनल पापुलेशन रजिस्टर (एन.पी.आर.) के तहत विवरण जुटाएं। जब अपनी नागरिकता तथा आजादी के खो जाने का डर लाखों लोगों जोकि पहले से प्रताडि़त हैं, के दरवाजों तक पहुंच जाएगा तब उनकी प्रतिक्रिया और ज्यादा सशक्त हो जाएगी जिसे हम वर्तमान में देश की सड़कों पर देख रहे हैं। जब उनका आघात स्पष्ट तथा दिखने लायक हो जाएगा तब विश्व एक ओर होकर नहीं खड़ा होगा। यह निश्चित तथा सम्भावित है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फिर से चुनाव जीत न पाएं। यह डैमोक्रेट होंगे जो अमरीका का इस वर्ष के अंत कर होने वाला राष्ट्रपति चुनाव जीतेंगे। यदि हम उनके उम्मीदवारों की सूची पर निगाह दौड़ाएं तो हम देखेंगे कि ऐसा एक भी नहीं जो मोदी की तरफ दोस्ताना नजरिया रखता हो क्योंकि भारत अपने ही अल्पसंख्यकों का दमन कर रहा है। 

वर्तमान में सरकार ऐसा सोचती है कि जो देश में घट रहा है उस पर उसकी पकड़ मजबूत है। यू.पी. में पुलिस ने दर्जनों भर मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को मारा जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सम्पत्ति को पहुंचाई गई क्षति पर अपनी गहरी चिंता प्रकट की है। जे.एन.यू. से कश्मीर तथा किसी अन्य स्थान पर भी मोदी भारतीय नागरिकों के अधिकारों के ऊपर अपनी सरकार के अधिकारों को थोपना चाहते हैं। यह सब वह प्रतिशोध तथा गुस्से की भावना से कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि अपनी सरकार के भीतर कोई विपक्ष नहीं है, जोकि मुद्दों पर ङ्क्षचतित हो। मोदी जो कुछ कहते हैं या करते हैं उनके समर्थन में 300 से ज्यादा लोकसभा सांसद खड़े होकर तालियां बजाते हैं। सुप्रीम कोर्ट जैसा कि हम देखते हैं वह भी चिंतित नहीं। भारत के लिए वर्ष 2020 एक शुष्क ऋतु जैसा है तथा निर्दयी भी है तथा भारतीय नागरिक अपने आपको बचाने के लिए जो चाहे कर सकते हैं।-आकार पटेल

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