राष्ट्रीय सुरक्षा बारे जानकारियां ‘गोपनीय’ कैसे रखी जाएं

Edited By ,Updated: 05 Jan, 2015 02:51 AM

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किसी समझदार ने कहा है कि एक जहाज में तभी हालात खराब होते हैं जब बिखराव शिखर से शुरू होता है। इस समय मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर जरूरत से अधिक चिंतित दिख रही है और ...

(दिलीप चेरियन) किसी समझदार ने कहा है कि एक जहाज में तभी हालात खराब होते हैं जब बिखराव शिखर से शुरू होता है। इस समय मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर जरूरत से अधिक चिंतित दिख रही है और सूचनाओं के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए काफी अधिक सतर्कता बरत रही है। वहीं सुरक्षा कानूनों को लेकर हो रहे बार-बार उल्लंघन के चलते उसे कई बार शर्मिंदगी भी उठानी पड़ रही है। हाल ही में एक वर्गीकृत दस्तावेज, जोकि भारत की परमाणु पनडुब्बियों के बारे में था, मीडिया में पहुंच गया, जिसके चलते राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत दाभोल को कई मैमो जारी करने पड़े और उच्च सुरक्षा अधिकारियों को मिले इन मैमो में स्पष्ट चिंता जताते हुए कहा है कि इस प्रकार की लीकेज को सहन नहीं किया जाएगा और जो कोई भी इनके लिए जिम्मेदार पाया गया, उसके खिलाफ कार्रवाई भी होगी। 

दाभोल की इस प्रतिक्रिया ने खतरे की घंटी बजा दी है। हाल ही में कैबिनेट सचिवालय ने केन्द्रीय गृह सचिव अनिल गोस्वामी को निर्देश दिया है कि वे सुनिश्चित करवाएं कि एन.एस.ए. के निर्देशों का अनुपालन हो और यह भी सुनिश्चित करें कि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा साबित होने वाली जानकारियों को पूरी तरह से गुप्त ही रखा जाए। नि:संदेह, सरकार के लिए कई बार सूचनाओं को बांटना सुविधाजनक भी होता है, पर यह तभी होता है जब उन्हें चुङ्क्षनदा आधार पर जारी किया जाए। पर, उन सूचनाओं को नहीं जिनके बारे में दाभोल काफी अधिक चिंतित हैं।

एक और खेमका?
लगता है कि हरियाणा में सरकार बदलने के बाद भी बाबुओं की जिंदगी में अधिक बदलाव नहीं आया है और उन्हें पूर्ववर्ती भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के दौर का अहसास आज भी हो रहा है। उनके दौर में अशोक खेमका और संजय चतुर्वेदी को लेकर सरकार से तनातनी चलती रही क्योंकि हुड्डा सरकार उनको ‘नाफरमान’ मानती रही और उन्हें लगातार किनारे लगाकर रखा गया। ये अधिकारी आजादी चाहते थे जोकि उन्हें नहीं दी गई। पर अब लगता है कि मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा सरकार भी अपने पूर्व मुख्यमंत्री के नक्शेकदम पर ही चल रही है।

बाबुओं के बीच यह चर्चा आम है कि आखिर वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी और गुडग़ांव के डिवीजनल आयुक्त प्रदीप कासनी को अचानक तबादला क्यों थमाया गया जबकि उन्हें इस पद पर आए सिर्फ एक महीना ही हुआ था। सूत्रों का कहना है कि बाबुओं को यह विश्वास हो चुका है कि कासनी को इसलिए वहां से हटाया गया क्योंकि उन्होंने एक ऐसी रिपोर्ट तैयार कर ली थी जो कि राजस्व अधिकारियों और कुछ ताकतवर भू-माफिया के बीच गठजोड़ का खुलासा करती थी। हालांकि कासनी के तबादले पर आधिकारिक तौर पर यह कहा गया है कि उन्हें प्रशासनिक कारणों से बदला गया है, पर उन्हें कोई नया काम नहीं दिया गया है और बाबुओं को डर है कि वे एक और खेमका बनने की राह पर हैं, अगर वे ऐसे ही स्वतंत्रतापूर्वक काम करने की जिद पर अड़े रहे।

अलग-थलग महसूस कर रहे कूटनीतिक अधिकारी
सरकार को चलाने में अधिकांश नीतियों का संचालन सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से ही किया जा रहा है और पूरी मोदी सरकार वहीं से संचालित है। अब सिर्फ विदेशी मंत्री सुषमा स्वराज ही कुछ अलग-थलग महसूस नहीं कर रही हैं, कुछ कूटनीतिक अधिकारी भी अपने आप को ऐसी ही परिस्थितियों में महसूस कर रहे हैं क्योंकि विदेशी डैलीगेट्स के साथ बातचीत में उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है। स्पष्ट है कि आई.एफ.एस. अधिकारियों ने अपनी इस परिस्थिति को देखकर अपनी नाराजगी व्यक्त करनी शुरू कर दी है और बताया जा रहा है कि उन्होंने इस मामले को विदेश सचिव सुजाता सिंह के पास भी उठाया है।

वहीं इस दौरान विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों को हाल ही में लीमा (पेरू) में पर्यावरण पर हुई एक महत्वपूर्ण बातचीत में अमरीकी प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई बैठक से भी दूर रखा गया। इस तरह के कई अन्य मामले भी हो चुके हैं। अभी तक मोदी सरकार की विदेशी नीति में सुषमा स्वराज की तरफ से मीडिया मध्यस्थ की भूमिका निभाता आ रहा है पर अभी तक आई.एफ.एस. अधिकारी इस तरह की प्रतिक्रिया के साथ सामने नहीं आए हैं। अब चूंकि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस समारोहों में शामिल होने के लिए नई दिल्ली आ रहे हैं और ऐसे में स्वाभाविक है कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के हिस्से में भी कुछ न कुछ काम आएगा। 

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