जंगलों की आग से निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना की जरूरत

Edited By ,Updated: 09 May, 2024 05:22 AM

concrete action plan needed to deal with forest fires

इस समय उत्तराखंड के अनेक भागों से जंगलों में आग लगने की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। आग के कारण वन सम्पदा को काफी नुकसान हो रहा है।

इस समय उत्तराखंड के अनेक भागों से जंगलों में आग लगने की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। आग के कारण वन सम्पदा को काफी नुकसान हो रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कभी प्राकृतिक कारणों से जंगलों में आग लगती है तो कभी अपने निहित स्वार्थों के कारण जानबूझकर जंगलों में आग लगा दी जाती है। जब तापमान बढ़ता है तो जंगलों में आग लगने की आशंका भी बढ़ जाती है। कुछ समय पहले काऊंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमैंट एंड वाटर (सी.ई.ई.डब्ल्यू.) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘मैनेजिंग फारैस्ट फायर इन चेंजिंग क्लाइमेट’ में बताया गया था कि भारत के 30 प्रतिशत से ज्यादा जिलों के जंगलों में भीषण आग लगने का खतरा मौजूद है। 

इस अध्ययन के अनुसार, पिछले दो दशकों के दौरान देश के जंगलों में आग लगने की घटनाएं 10 गुना से ज्यादा बढ़ गई हैं। तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र के जंगलों पर भीषण आग लगने की आशंका के कारण सबसे ज्यादा खतरा है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जंगल में आग रोकने और उससे लडऩे के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित एक कैडर तैयार करना चाहिए। सरकारों को जंगलों में आग लगने की घटनाओं के लिए रीयल-टाइम अलर्ट सिस्टम भी विकसित करना चाहिए।

इस अध्ययन में बताया गया है कि पिछले दो दशकों में जंगल में लगने वाली आग के 89 प्रतिशत से ज्यादा मामले उन जिलों में दर्ज किए गए हैं, जो या तो सूखे से प्रभावित हैं या फिर वहां मौसम में परिवर्तन देखा गया है। जंगल में आग लगने की अत्यधिक घटनाओं वाले कुछ ऐसे जिले हैं, जहां पहले बाढ़ का खतरा होता था लेकिन अब वहां सूखे की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है।  जंगलों में लगी आग से जान-माल के साथ-साथ पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। पेड़-पौधों के साथ-साथ जीव-जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियां जलकर राख हो जाती हैं। पहाड़ों की यह समृद्ध जैवविविधता ही मैदानों के मौसम पर अपना प्रभाव डालती है। पहाड़ों के जंगलों में आग लगने की घटनाओं के लिए किसी एक कारक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि पहाड़ों में ऐसी घटनाओं के इतिहास को देखते हुए भी कोई ठोस योजना नहीं बनाई जाती। 

एक अध्ययन के अनुसार, पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और समुद्र तटीय क्षेत्रों में जंगलों में आग लगने की समस्या बढ़ती जा रही है। इस आग से लोगों का स्वास्थ्य, पर्यटन, अर्थव्यवस्था और परिवहन उद्योग गम्भीर रूप से प्रभावित हो रहा है। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में आग से नष्ट होने वाले 90 फीसदी जंगल भारत के हैं। पहाड़ों पर चीड़ के वृक्ष आग जल्दी पकड़ते हैं। कई बार वन माफिया अपने स्वार्थ के लिए वन विभाग के कर्मचारियों के साथ मिलकर जंगलों में आग लगा देते हैं। हम थोड़े से लालच के लिए पहाड़ों और पर्यावरण का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं, इसका अन्दाजा हमें नहीं है। दरअसल पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति के कारण आग या फिर किसी अन्य आपदा से जूझना आसान नहीं। गौरतलब है कि पहाड़ों के जंगल कई दिनों तक धधकते रहते हैं। अगर समय रहते कोई कदम नहीं उठाया जाता तो आग विकराल रूप धारण कर लेती है, जिसे बुझाना आसान नहीं होता। 

दरअसल हमारे देश में ऐसी आग बुझाने की न तो कोई उन्नत तकनीक है और न ही कोई स्पष्ट कार्ययोजना। गौरतलब है कि पिछले दिनों नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) ने जंगलों की आग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि पर्यावरण मंत्रालय और अन्य प्राधिकरण वन क्षेत्र में आग लगने की घटना को हल्के में लेते हैं। जब भी ऐसी घटनाएं घटती हैं तो किसी ठोस नीति की आवश्यकता महसूस की जाती है। लेकिन बाद में सब कुछ भुला दिया जाता है। दरअसल जंगलों की आग से वन सम्पदा और पर्यावरण को जो नुकसान होता है, उसका खामियाजा हमें काफी लंबे समय तक भुगतना पड़ता है।

आग के माध्यम से जो कार्बन वातावरण में पहुंचता है, उसके गम्भीर परिणाम होते हैं। आग और धुंआ मिलकर जैवविविधता को भी काफी क्षति पहुंचाते हैं। विडम्बना यह है कि जैवविविधता के संकट को देखते हुए भी हम जंगलों को आग से बचाने के लिए गम्भीर नहीं हैं। जंगलों में आग लगने से जहां एक ओर पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं, वहीं उनका प्राकृतिक आवास भी उजड़ जाता है। दूसरी ओर पर्यावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ जाने से तापमान में वृद्धि होने की सम्भावना रहती है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम जंगलों की आग से निपटने के लिए ठोस योजनाएं बनाएं। आग से निपटने के फौरी उपाय तात्कालिक रूप से प्रभावी हो सकते हैं लेकिन दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को कम नहीं कर सकते। बेहतर भविष्य के लिए वन सम्पदा बचाना हमारी प्राथमिकताओं में होना चाहिए। हमें यह भी समझना होगा कि जंगलों की आग का खामियाजा हर हाल में हमें ही भुगतना होगा। -रोहित कौशिक

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