रुक्मिणी और कृष्ण से जुड़े अरुणाचल तथा गुजरात

Edited By ,Updated: 09 Nov, 2022 04:16 AM

arunachal and gujarat associated with rukmini and krishna

कृष्ण ने न केवल भारत के कोने-कोने को एक दूसरे से जोड़ा, बल्कि पूर्वी एशिया  के देशों में भी विष्णु के अवतार के रूप में कृष्ण कथा कही-सुनी और चित्रित की जाती है। अपने उत्तर-पूर्वांचल के विषय

कृष्ण ने न केवल भारत के कोने-कोने को एक दूसरे से जोड़ा, बल्कि पूर्वी एशिया  के देशों में भी विष्णु के अवतार के रूप में कृष्ण कथा कही-सुनी और चित्रित की जाती है। अपने उत्तर-पूर्वांचल के विषय में क्या कहेंगे? मणिपुर में कृष्ण कथा वहां के प्राण हैं और श्री गोविन्द जी के मंदिर में जो कृष्ण लीला एवं होली का उत्सव होता है, उसका कहीं कोई सानी नहीं। लेकिन क्या अरुणाचल प्रदेश में भी कृष्ण जन-मन में लोकप्रिय हैं? बहुत लोगों को यह नहीं मालूम कि अरुणाचल प्रदेश में भीष्मक नगर के इर्द-गिर्द का इदु मिशमी जनजातीय समाज स्वयं को यादव वंशीय और कृष्ण एवं रुक्मिणी की कथा का उत्तराधिकारी मानता है। 

श्री मुकुट मीठी, जो अरुणाचल के मुख्यमंत्री रहे और तीन बार राज्यसभा सांसद के अलावा राज्यपाल भी रहे, स्वयं को इसी इदु मिशमी जनजाति का अभिमानी सदस्य मानते हैं और उनके द्वारा कृष्ण-रुक्मिणी कथा को काफी प्रचारित भी किया गया था। 2018 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने रुक्मिणी और कृष्ण कथा के सशक्त धागे को थामा और अरुणाचल प्रदेश से गुजरात के माधवपुर घेड़ (जिला पोरबंदर) तक की यात्रा का आयोजन किया, जिसमें अरुणाचल प्रदेश से अढ़ाई सौ से अधिक युवाओं ने पोरबंदर की यात्रा की और वार्षिक माधवपुर मेले में रुक्मिणी कथा का मनोहारी चित्रण किया।  इस यात्रा का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री श्री किरण रिजिजू ने किया था, जो स्वयं अरुणाचल प्रदेश से आते हैं। 

भीष्मक नगर के इदु मिशमी जनजातीय समाज में हजारों वर्षों से यह कथा प्रचलित है कि यहां की रुक्मिणी गुजरात में द्वारिका वासी कृष्ण की महान कथा सुनकर उनके प्रेमपाश में बंध गई थीं। वह दिन-रात कृष्ण का स्मरण करती थीं। उनके पिता भीष्मक शिशुपाल से रुक्मिणी का विवाह करना चाहते थे। रुक्मिणी ने कृष्ण से गुहार लगाई, जो किसी प्रकार कृष्ण तक पहुंची तो वे द्वारिका से रथ लेकर रुक्मिणी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हो रहे विवाह से बचाने भीष्मक नगर पहुंचे। वे उद्दत और उद्दंड शिशुपाल का वध करने वाले थे, लेकिन रुक्मिणी की प्रार्थना पर उसके आगे के केश काट दिए। आज भी शिशुपाल के वंशज वहां अपने बाल माथे तक काट कर रखते हैं। 

कृष्ण-रुक्मिणी की कथा कभी अरुणाचल को गुजरात से जोड़ेगी, यह सोचना भी बड़ा अविश्वसनीय सा लगता था। लेकिन मैं स्वयं पिछले दिनों भीष्मक नगर की यात्रा पर गया और वहां के स्थानीय इदु मिशमी समाज के लोगों से मिला। मुझे इस समाज के अत्यंत आदरणीय और अग्रणी श्री मुकुट मीठी, युवा विधायक श्री मुचु मीठी, भारतीय पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भीष्मक नगर तक लाए। संयोग से इस समाज के स्थानीय गांव बूढ़ा (प्रधान) की बेटी का नाम भी रुक्मिणी था और हमें वहां देखकर गांववासियों को बहुत खुशी हुई। रुक्मिणी ने एक अरुणाचली गीत भी सुनाया, जो रुक्मिणी और कृष्ण की कथा पर आधारित था। 

जब कृष्ण ने रुक्मिणी को छुड़ा लिया तो द्वारिका आते समय वे मार्ग में मालिनीथान नामक प्राचीन स्थान पर रुके, जहां भगवान शिव और मां दुर्गा ने उनका स्वागत किया। मालिनीथान नामक यह स्थान भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत भारत का राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। यहां से हम लोग नामसुई में अरुणाचल प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री श्री चौना मीन के  यहां उनके अतिथि के रूप में गए। श्री चौना मीन विद्वान और संस्कृति के ज्ञाता ऋषि समान नेता हैं। उन्होंने हमें अरुणाचल के जनजीवन और शेष भारत को जोडऩे वाली अनेक कथाएं सुनाईं, जिनमें परशुराम कुंड की कथा भी सम्मिलित थी। 

अरुणाचल प्रदेश भारत का सूर्योदय  प्रदेश है। भारत का प्रथम सूर्योदय अरुणाचल में होता है। यहां के जनजीवन के बारे में शेष भारत में सम्यक जानकारी का बहुत अधिक अभाव है। भारत के मुख्य प्रदेशों से लोग छुट्टियों में मलेशिया, इण्डोनेशिया, या सिंगापुर जा सकते हैं, परन्तु अपने ही देश के उन भागों में न जाते हैं, न ही वहां के बारे में जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। अब तो ईटानगर, डिब्रूगढ़ तक सीधी उड़ानें हैं। राजधानी ईटानगर रेल से भी जुड़ा है। कृष्ण और रुक्मिणी की कथा यदि सम्पूर्ण देश को जोड़ रही है तो क्यों नहीं शेष देश से भी लोगों को, विशेषकर युवाओं को अरुणाचल प्रदेश की भारत जोड़ो यात्रा पर जाना चाहिए। 

अरुणाचल प्रदेश के युवा जब देश के अन्य भागों में जाते हैं तो उनको एक ही बड़ी शिकायत होती है, लोग या तो उनके नामों का सही उच्चारण नहीं कर पाते या उनको विदेशी मानते हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। जो भारत की एकता के मजबूत स्तम्भ हैं, उनको यह अहसास होना चाहिए कि सारा देश उनको अच्छी तरह जानता है और उनका सम्मान करता है। हम अगले वर्ष संभवत: जनवरी में अरुणाचल से गुजरात (पोरबंदर) और पोरबंदर से अरुणाचल (भीष्मक नगर) की यात्रा के लिए प्रयास कर रहे हैं। 

रुक्मिणी ने भारत के पूरब को पश्चिम से जोडऩे का जो अद्भुत चमत्कार किया है, वह राष्ट्रीय एकता का क्रांतिकारी अध्याय कहा जा सकता है। श्री नरेंद्र मोदी ने इस कथा को एक नया आयाम दिया है, जिसके लिए हम उनके ऋणी हैं। संस्कृति मंत्रालय भी इसमें सहयोग कर रहा है और गुजरात सरकार अरुणाचल के संस्कृति विभाग से मिलकर इसको अधिक बड़ा रूप देने के लिए तैयार है। मुझे विश्वास है कि जब हम रुक्मिणी की महान गाथा लेकर गुजरात तक जाएंगे तो उसमें सारे देश के युवाओं का सहभाग होगा। प्रतीक्षा कीजिए।-तरुण विजय
 

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