झूठे आंकड़ों व प्रचार से नहीं छुप सकेगा ‘आर्थिक मंदी’ का सच

Edited By ,Updated: 30 Aug, 2019 03:57 AM

can not hide the truth of  economic downturn  with false data and propaganda

झूठे आंकड़ों तथा बेइंतहा प्रचार के सहारे देश की अर्थव्यवस्था में आई भारी मंदी को छुपाया नहीं जा सकता। न ही इस बुरी स्थिति का ठीकरा कांग्रेस सरकारों के लगभग 4 दशकों के कुशासन के सिर फोड़ कर मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग सकती है। 45 वर्षों के...

झूठे आंकड़ों तथा बेइंतहा प्रचार के सहारे देश की अर्थव्यवस्था में आई भारी मंदी को छुपाया नहीं जा सकता। न ही इस बुरी स्थिति का ठीकरा कांग्रेस सरकारों के लगभग 4 दशकों के कुशासन के सिर फोड़ कर मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग सकती है। 

45 वर्षों के दौरान सर्वोच्च स्तर पर पहुंची बेरोजगारी, मांग में आई कमी के कारण आटोमोबाइल उद्योग में लाखों कर्मचारियों की छंटनी, टैक्सटाइल उद्योग के संकट के कारण गोदामों का शृंगार बनी लाखों टन अनबिकी कपास इस आॢथक मंदी के मुंह चिढ़ाते कुछ तथ्य हैं। वैसे करोड़ों लोगों का पौष्टिक भोजन के बिना जीना, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं की प्राप्ति आधी आबादी से अधिक लोगों के लिए सपना बन जाना, कृषि संकट के कारण बेकार हुए कृषि मजदूरों तथा किसानों का लाखों की संख्या में आत्महत्याओं की भेंट चढऩा इस मौजूदा आॢथक मंदी से अलग समस्याएं हैं, जिन्हें अभी टी.वी. बहसों में चर्चा का मुद्दा नहीं बनाया जा रहा।

रिजर्व बैंक के आकस्मिक कोष में से 1.76 लाख करोड़ का धन हथियाना इस बैंक के 83 वर्षीय इतिहास का एक नया तथा अत्यंत ङ्क्षचताजनक कदम है, जो देश की चरमरा रही अर्थव्यवस्था का सूचक है। जब कोई सरकारी वक्ता भारत की इस वित्तीय मंदी को विश्व भर के पूंजीवादी संकट के साथ जोड़ कर मोदी सरकार को दोषमुक्त करने का प्रयास करता है तो इस दलील पर तरस ही किया जा सकता है। जिस पूंजीवादी व्यवस्था के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पीड़ित है, उसी व्यवस्था का हिस्सा होने के कारण ही तो हम इस दयनीय हालत में फंसे हुए हैं। मगर भारतीय शासकों को वर्तमान ढीले वित्तीय ढांचे के अतिरिक्त अन्य कोई वैकल्पिक ढांचा नजर ही नहीं आता और वे बार-बार निजीकरण तथा उदारीकरण की रट लगाए जा रहे हैं, जिसने देश के आर्थिक ढांचे को बर्बाद कर दिया। 

लोकसभा में मिले बहुमत के जोर से नोटबंदी तथा जी.एस.टी. जैसे जनविरोधी कदमों को तो पारित करवाया जा सकता है और ‘कार्पोरेट घरानों को गफ्फे व गरीबों को धक्के’ मारे जा सकते हैं परंतु जनसमूहों की विशाल संसद अपने अनुभवों के आधार पर इन कार्रवाइयों को रद्द भी कर सकती है। छोटे कारोबारियों की बर्बादी तथा करोड़ों की संख्या में बेकार हाथों के लिए जिम्मेदार केन्द्रीय सरकार को जन अदालत में एक दिन तो उत्तर देना ही पड़ेगा। 

कांग्रेस की डगमगाती स्थिति
मोदी सरकार के विरोध में खड़ी सबसे पुरानी तथा बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस आजकल अपनी आंतरिक कलह के कारण उपहास का पात्र बनी हुई है। वास्तव में इसके अधिकतर नेता किसी ठोस विचारधारा अथवा जनकल्याण के लिए राजनीति में दाखिल नहीं हुए। उनके लिए ‘धन व रुतबे’ ही सबसे ऊपर हैं, जिन्हें वे किसी भी गलत या सही ढंग से हासिल करने के लिए तड़पते रहते हैं। अब जब वे सत्ता से दूर हो गए हैं तो अपने हितों की पूर्ति हेतु कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल होने के लिए संघ नेताओं से समय लेना पड़ता है। पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, सांसदों तथा अन्य टकसाली कांग्रेसियों के लिए संघ की विचारधारा से लैस होकर भाजपा में शामिल होने में किसी किस्म की झिझक या शर्मिंदगी नहीं है। 

कभी नरेन्द्र मोदी को एक डरावने नेता की तरह चित्रित न करने के लिए अपनी ‘कीमती राय’ देकर, कभी मोदी सरकार के ‘स्वच्छता अभियान’ या ‘जनसंख्या नियंत्रण’ जैसे ‘खूबसूरत’ नारों से प्रभावित होकर और कभी जम्मू-कश्मीर के संबंध में अनुच्छेद 370 व 35-ए की समाप्ति बारे कांग्रेस पार्टी के स्टैंड के प्रति निराशा जताकर कांग्रेस नेता पार्टी छोडऩे के लिए बहानों की तलाश में हैं। संघ के ‘अखंड भारत’ के सपने को फलीभूत होता देख कर कांग्रेस पार्टी के बहुत से खुदगर्ज नेता भाजपा में शामिल होने की इच्छा जता कर सिद्ध कर रहे हैं कि उनके लिए किसी सिद्धांत अथवा विचारधारा का कोई महत्व नहीं है, बल्कि सब कुछ ‘निजी सेवा’ ही है। ऐसी पार्टी, जिसकी आॢथक नीतियां मोदी सरकार की पूरी तरह से कार्बन कापी हैं तथा ‘धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, संघवाद’ जैसे असूल किसी विचारधारक की प्रतिबद्धता की बजाय केवल सत्ता प्राप्ति के साधन मात्र ही हैं, कितने दिन भारतीय राजनीति में टिक सकेगी, समय ही बताएगा। 

दाव पर लगी ऊधम सिंह सुनाम की विचारधारा
मोदी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के लक्ष्य के अंतर्गत ‘धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा संघवादी’ असूलों से भड़का कर एक धर्म आधारित राष्ट्र कायम करने के लिए अग्रसर है। ये तीनों असूल किसी विशेष राजनीतिक दल या व्यक्ति की जायदाद नहीं हैं, बल्कि देश के हजारों साल के इतिहास तथा अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गए रक्तरंजित संघर्षों के अनुभवों से प्राप्त किया सांझा कीमती खजाना है। 

धर्म के आधार पर बना पाकिस्तान आज कैसे गरीबी, कंगाली, आतंकवाद तथा आंतरिक कलह से बर्बाद हो रहा है, यह उन लोगों के लिए एक जीता-जागता उदाहरण तथा सबक है, जो सुरक्षा बलों, विधान पालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका में भगवा तत्वों की घुसपैठ के माध्यम से लोगों को सब्जबाग दिखा कर चुनावों में हासिल किए बहुमत के जरिए भारत को एक विशेष ‘धर्म आधारित देश’ में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसा करना शहीदों की पंक्ति के चमकते सितारे शहीद ऊधम सिंह सुनाम की उस सोच से विश्वासघात है, जिसके अंतर्गत उसने जलियांवाला बाग कांड के लिए जिम्मेदार अधिकारी सर माइकल ओ’डवायर को लंदन में गोली मारते समय अपना नाम ‘राम मोहम्मद सिंह आजाद’ रखा था।-मंगत राम पासला

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