कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से विदेशी पूंजी की निकासी के कारण रुपए की गिरावट जारी रहेगी

Edited By Pardeep,Updated: 20 May, 2018 04:16 AM

crude oil prices will continue to fall due to the withdrawal of foreign capital

शुक्रवार भारतीय शेयर बाजारों में से विदेशी निवेशकों द्वारा भारी मात्रा में पूंजी बाहर खींचने के फलस्वरूप डालर की कीमत 68 रुपए से भी ऊपर चली गई। उल्लेखनीय है कि गत 6 माह में इक्विटी और ऋण बाजारों में से 32 हजार करोड़ से अधिक का विदेशी निवेश बाहर जा...

शुक्रवार भारतीय शेयर बाजारों में से विदेशी निवेशकों द्वारा भारी मात्रा में पूंजी बाहर खींचने के फलस्वरूप डालर की कीमत 68 रुपए से भी ऊपर चली गई।

उल्लेखनीय है कि गत 6 माह में इक्विटी और ऋण बाजारों में से 32 हजार करोड़ से अधिक का विदेशी निवेश बाहर जा चुका है। बेशक गत 2 दिन दौरान रुपए में कुछ मजबूती आई है और वीरवार के दिन डालर 67.7 रुपए तक आ गया परंतु भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के फलस्वरूप कच्चे तेल की कीमतों में अपेक्षित उछाल के मद्देनजर आने वाले दिनों में विदेशी पूंजी की निकासी जारी रहेगी और रुपए में कमजोरी भी बनी रहेगी। 

वीरवार को विदेशी निवेशकों ने 830 करोड़ रुपए की शुद्ध इक्विटी की बिक्री की। उल्लेखनीय है कि एक अप्रैल 2018 से अब तक रुपए में चार प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है और इसका मुख्य कारण यह है कि जितना विदेशी निवेश शेयर और ऋण बाजारों में आ रहा है उसकी तुलना में इसकी निकासी कहीं अधिक है। उदाहरण के तौर पर अप्रैल माह में इक्विटी बाजारों में से 5552 करोड़ तथा ऋण बाजारों में से 10035 करोड़ रुपए कीमत की विदेशी मुद्रा की निकासी हुई। मई माह में इस रुझान में बढ़ौतरी ही देखने में आई है। 

17 मई तक इन दोनों बाजारों में से 17,081 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा बाहर जा चुकी है। इस निकासी के फलस्वरूप रुपए की कीमत डालर की तुलना में घटने से डालर 66.6 रुपए से उछल कर 15 मई तक 68.08 रुपए पर पहुंच गया था। इसकी तुलना में भारतीय इक्विटी बाजारों में चालू कैलेंडर वर्ष के प्रथम तीन महीनों दौरान केवल 13239 करोड़ रुपए का वित्तीय निवेश ही आ पाया है। भारतीय बाजारों में से विदेश मुद्रा की निकासी अगर जारी रहती है तो इससे इक्विटी बाजारों का घटनाक्रम भी प्रभावित होगा। वीरवार के दिन बाम्बे स्टाक एक्सचेंज (सैंसैक्स) का बैंच मार्क 238 अंक यानी 0.67 प्रतिशत लुढ़क गया था और पूरे सप्ताह दौरान इसने 386 अंक यानी 1.1 प्रतिशत गिरावट दर्ज की। विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी कोषों द्वारा लगातार पूंजी बाहर खींचना ही रुपए की कीमत में गिरावट का मुख्य कारण है। अमरीका में ब्याज दरों की वृद्धि की उम्मीदों के मद्देनजर विदेशी कोषों द्वारा भारतीय बाजारों में से विदेशी मुद्रा बाहर खींची जा रही है। 

हालांकि आर.बी.आई. ने विदेशी निवेश की सीमा में बढ़ौतरी की और विदेशी निवेश से संबंधित नियमों में भी ढील दी तो भी अप्रैल और मई 2018 में अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी की निकासी झेलनी पड़ी। वैसे इस वर्ष रुपया ही एकमात्र ऐसी करंसी नहीं जिसमें गिरावट आई हो। अन्य उदीयमान अर्थव्यवस्थाओं को भी डालर की मजबूती के कारण इसी तरह का दबाव झेलना पड़ा है। एक जनवरी से 16 मई के  बीच जहां रुपए में डालर की तुलना में 6.3 प्रतिशत की गिरावट आई, वहीं ब्राजिलियन रियाल एवं रूसी रूबल की कीमतों में क्रमश: 11 और 8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। 

बेशक मार्च माह में विदेशी मुद्रा की निकासी के रुझान में बदलाव आया था लेकिन अप्रैल में अमरीकी अर्थव्यवस्था में वृद्धि की बेहतर सम्भावनाओं के समाचार आते ही यह रुझान फिर से उल्टा घूम गया और अप्रैल माह में तो अमरीकी राजस्व वसूली में बढ़ौतरी, बेहतर आर्थिक वृद्धि की सम्भावनाओं तथा कच्चे तेल की कीमतें बढऩे के कारण भारत के चालू खाते के घाटे से पैदा हुई चिंताओं के मद्देनजर विदेशी करंसी की निकासी का रुझान लगभग स्थायी रूप धारण कर गया।

विदेशी वित्तीय कोषों द्वारा भारी धन निकासी के फलस्वरूप डालर की तुलना में रुपए की कीमत घटने से आयातकार अचानक दुविधा में फंस गए क्योंकि इससे उनके कारोबार और कमाई बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि निकट भविष्य में स्थिति में सुधार आने की कोई गुंजाइश नहीं क्योंकि डालर की बढ़ती मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के चलते भारतीय चालू खाते का घाटा यथावत बना रहेगा।

2018 में विदेशी निवेश
जनवरी     13781    8522           22303
फरवरी    -11422    -253           -11675
मार्च        11654    -9043            2611
अप्रैल       -5552    -10035       -15587
मई*         -4418    -12663      -17081

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