जी.एम. बैंगन की बिजाई, सरकार को दिखानी होगी गंभीरता

Edited By ,Updated: 17 Jun, 2019 05:04 AM

gm seasoning of brinjal government must show seriousness

जून की गर्मी में ईशर सैनी अपने आधे एकड़ के खेत को तैयार करने में लगा है ताकि उसमें खरीफ की फसल बीजी जा सके। ईशर पिछले दिनों हरियाणा में काफी चर्चा में रहा जब से उसके खेतों में गैर कानूनी जैनेटीकली मॉडीफाइड बैंगन की बिजाई पाई गई। फतेहाबाद जिले के...

जून की गर्मी में ईशर सैनी अपने आधे एकड़ के खेत को तैयार करने में लगा है ताकि उसमें खरीफ की फसल बीजी जा सके। ईशर पिछले दिनों हरियाणा में काफी चर्चा में रहा जब से उसके खेतों में गैर कानूनी जैनेटीकली मॉडीफाइड बैंगन की बिजाई पाई गई। फतेहाबाद जिले के नथवान गांव के सैनी को स्थानीय अधिकारियों और कार्यकत्र्ताओं की उपस्थिति में अपनी फसल नष्ट करने के लिए मजबूर किया गया।  इसके बावजूद यह अब भी रहस्य ही बना हुआ है कि इसके बीज कहां से आए? 

ईशर का कहना है कि न तो उसे और न ही उसके बेटे जीवन सैनी को  इस बात का पता था कि यह पनीरी जैनेटिकली मॉडीफाइड किस्म की है। बैंगन की यह पनीरी उन्होंने दिसम्बर 2017 में डबवाली में सड़क किनारे खरीदी थी। कार्यकत्र्ताओं की ओर से शिकायत मिलने पर हरियाणा हॉर्टीकल्चर विभाग द्वारा 29 अप्रैल को ईशर के खेतों से सैम्पल इकट्ठे किए गए। इसके बाद इन्हें परीक्षण के लिए नैशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जैनेटिक रिसोर्सिस (एन.बी.पी.जी. आर.) नई दिल्ली भेजा गया। 

ईशर कहते हैं, ‘‘हमारा क्या दोष है? मेरे बेटे ने बाजार से पनीरी खरीदी। यदि वह गैर कानूनी वैरायटी थी तो सरकारी एजैंसियों को इस बात का जवाब देना चाहिए कि वह मार्कीट में बिक्री के लिए कैसे पहुंची। हम अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित हैं।’’ बैंगन की फसल उखाडऩे के बाद ईशर ने खेत में बी.टी. कॉटन की बिजाई की। सैनी के पास आधा एकड़ जमीन किराए पर ली गई है तथा एक एकड़ भूमि उसकी अपनी है। ईशर ने बताया, ‘‘पहले तो हमें बैंगन की फसल उखाडऩे से नुक्सान झेलना पड़ा जोकि तुड़ाई के लिए तैयार हो चुकी थी। हमने इस फसल की संभाल पर 25,000 रुपए खर्च किए थे। अब हमें नई फसल बीजने पर और पैसे खर्च करने पड़ेंगे। इसमें कम से कम 5000 रुपए खर्च होंगे। सरकार को इसकी क्षतिपूर्ति करनी चाहिए क्योंकि खेतीबाड़ी ही हमारी आजीविका का मुख्य साधन है।’’ 

33 वर्षीय जीवन  इससे अनभिज्ञता जताते हैं। उनका कहना है कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि बैंगन की यह वैरायटी गैर कानूनी है : ‘‘मुझे यह कैसे पता चलता कि यह पनीरी जैनेटिकली मॉडीफाइड वैरायटी है या नहीं। पनीरी विक्रेता ने मुझे बताया था कि बैंगन के इन पौधों पर कीट हमला नहीं करते हालांकि इसकी कीमत ज्यादा थी। यह आम किस्मों से 7-8 गुणा महंगा था लेकिन क्योंकि उसने मुझे अच्छी क्वालिटी का भरोसा दिया तो मैंने इसे खरीदने का निश्चय किया।’’ जीवन ने 20 वर्ष तक एक मोटर मैकेनिक के तौर पर काम किया है और कुछ ही साल पहले उसने परिवार के कृषि व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरू किया है। 

जीवन ने बताया कि उन्होंने पहली बार इस वर्ष अप्रैल-मई में फसल की बिजाई की क्योंकि इससे पहले उसके पिता ही खेतों में काम करते थे। वह बताते हैं कि क्वालिटी अच्छी थी हालांकि कीटनाशकों का छिड़काव करना पड़ा। मैंने रतिया और टोहाना के स्थानीय बाजार में बैंगन बेचे और इससे अच्छा मुनाफा हुआ। हमने घर पर भी इन्हीं बैंगनों का उपभोग किया। मेरे एक पड़ोसी ने भी यही पनीरी खरीदी थी लेकिन 2018 में उसने इन्हें नष्ट कर दिया जब उसने देखा कि इसमें कीड़े लगे थे। जीवन ने बताया कि इन पौधों को खरीदने के बाद वह उन विक्रेताओं से नहीं मिला है। बहुत से विक्रेता बिजाई के समय पनीरी बेचने आते हैं। पौधे बेच कर वे चले जाते हैं और उन्हें ढूंढना मुश्किल होता है। 

ईशर सिंह के खेतों के साथ लगते खेतों के मालिक बीरू का कहना है कि हालांकि हमारे गांव में ईशर सिंह के अलावा किसी ने भी इन बैंगनों की बिजाई नहीं की है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये पौधे अन्य स्थानों पर भी बेचे गए होंगे। ईशर सिंह के खेतों से इन पौधों के सैम्पल एन.बी.पी.जी.आर. दिल्ली में इस बात का परीक्षण करने के लिए भेजे गए कि ये जैनेटिकली मॉडीफाइड किस्म तो नहीं है। शीघ्र ही हरियाणा सरकार की ओर से हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चासंलर की अध्यक्षता में एन.बी.पी.जी.आर. द्वारा पाए गए नतीजों के विश्लेषण के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई। सरकार ने समिति की रिपोर्ट की पुष्टि की और कहा कि जैनेटिकली मॉडीफाइड बैंगन बाजार में बेचा गया है। 

हालांकि सरकार का मानना है कि  यह इस तरह का एक विरला मामला है लेकिन कार्यकत्र्ता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि देश में अन्य स्थानों पर इस तरह के बैंगन की बिजाई हो सकती है तथा सरकारी एजैंसियों पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वे इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे। एम.डी. यूनिवर्सिटी रोहतक के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफैसर राजिंद्र चौधरी का कहना है कि यदि सरकार भारत की जैव विविधता को सुरक्षित रखने के लिए गंभीर है तो उसे इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच करते हुए यह पता लगाना चाहिए कि कहां-कहां इस किस्म के बैंगन की बिजाई हो रही है।-विकास वासुदेव

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