Edited By ,Updated: 23 Jan, 2023 06:14 AM
असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर की सेवा पूजा वंशानुगत सेवायत करते आ रहे थे। लेकिन असम सरकार ने धर्मार्थ बोर्ड बना कर उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर दिया था। लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद में फैसला देते हुए सेवायतों...
असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर की सेवा पूजा वंशानुगत सेवायत करते आ रहे थे। लेकिन असम सरकार ने धर्मार्थ बोर्ड बना कर उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर दिया था। लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद में फैसला देते हुए सेवायतों (बोरदुरी समाज) के वंशानुगत अधिकार को बहाल कर दिया। यह बात मैंने वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों को तभी बताई थी। गत कुछ महीनों से बिहारी जी मंदिर और उसके आस-पास रहने वाले गोस्वामी परिवार, अन्य ब्रजवासी व दुकानदार बहुत आंदोलित हैं।
क्योंकि सरकार ने यहां भी काशी की तरह ‘बांके बिहारी कॉरिडोर’ बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जिसके विरुद्ध वृंदावन में जन-आंदोलन छिड़ा हुआ है। रोजाना प्रदर्शन और धरने हो रहे हैं। इस मामले में अब अचानक एक नया मोड़ आ गया है। आंदोलनकारी गोस्वामियों ने घोषणा की है कि वे ठाकुर बांके बिहारी के विग्रह को यहां से उठा कर ले जाएंगे और चूंकि मंदिर समिति के कोष में 150 करोड़ से ज्यादा रुपया जमा है इसलिए वे 10 एकड़ जमीन खरीद कर वृंदावन में दूसरी जगह बांके बिहारी का भव्य मंदिर बना लेंगे। उनकी इस घोषणा से योगी सरकार में हड़कंप मच गया है। क्योंकि अगर ठाकुर जी ही वहां नहीं रहेंगे तो सरकार ‘कॉरिडोर’ किसके नाम पर बनाएगी? कामाख्या देवी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार बांके बिहारी जी के विग्रह पर वंशानुगत सेवायत गोस्वामियों का ही अधिकार है।
दरअसल, आधुनिकता के नाम पर अयोध्या, काशी और मथुरा को जिस तरह ‘पर्यटन केंद्र’ के रूप में विकसित किया जा रहा है उससे सनातन धर्मी समाज की आस्था को गहरा आघात लगा है। सदियों से पूजित प्राण प्रतिष्ठित विग्रहों को और मंदिरों को जिस बेदर्दी से, बुलडोजरों से, अयोध्या और काशी में तोड़ा गया उससे संतों, भक्तों, अयोध्यावासियों और काशीवासियों को भारी पीड़ा पहुंची है। वृंदावन में ‘बिहारी जी कॉरिडोर’ को लेकर जहां एक ओर सरकार ये तर्क देती है कि इससे व्यवस्था में सुधार होगा। वहीं दूसरी ओर वृंदावन में धरने पर बैठे गोस्वामी और ब्रजवासी ये सवाल पूछते हैं कि योगी महाराज की अध्यक्षता में बने ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पिछले पांच सालों में हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए उससे तीर्थ का क्या विकास हुआ? क्या यमुना महारानी साफ हो गईं? क्या वृंदावन मथुरा की गंदगी साफ हो गई?
क्या इन तीर्थस्थलों में आने वाले लाखों तीर्थ यात्रियों की सुविधाएं बढ़ीं या परेशानियां बढ़ीं? क्या गौशालाओं और आश्रमों पर फर्जी दस्तावेज बना कर कब्जा करने वालों पर कोई जांच या कानूनी कार्रवाई हुई? क्या बंदरों की समस्या से निजात मिली? क्या परिक्रमा जन उपयोगी बन पाई? क्या वृंदावन की ट्रैफिक समस्या दुरुस्त हुई? क्या वृंदावन में यमुना के तट पर बने अवैध आश्रमों और कॉलोनियों को एन.जी.टी. के आदेशानुसार हटाया गया? क्या वृंदावन में रात-दिन हो रहे अवैध निर्माणों पर कोई रोक लगी? इन सभी प्रश्नों का उत्तर सरकार के पास नहीं है। दूसरी तरफ ब्रजवासियों को यह चिंता है कि वृंदावन में तीर्थ विकास के नाम पर सरकार हजारों करोड़ रुपए की जिन योजनाओं की घोषणाएं कर रही है उनका संतों, भक्तों, तीर्थयात्रियों व ब्रजवासियों को कोई लाभ नहीं मिलेगा। ये सब परियोजनाएं तो बाहर से आने वाले निवेशकों, भू-माफियाओं और कॉलोनाइजर्स के फायदे के लिए बनाई जा रही हैं।
अब अगर कॉरिडोर बना तो पिकनिक करने आने वालों के लिए होटल बनेंगे, दुकानें बनेंगी बड़े-बड़े मॉल बनेंगें। लुटे-पिटे ब्रजवासी तो चटाई पर बैठकर भजन करेंगे। अव्यवस्थाएं पहले भी थीं सभी मंदिरों में, आज भी हैं, आगे भी रहेंगी वो नहीं बदलने वाली। बिहारी जी का कॉरिडोर बनाकर क्या वृन्दावन की सभी समस्याओं का हल हो जाएगा? तीर्थ की समस्याओं का हल तभी हो सकता है जबकि हल खोजने वाले अफसर और नेता निष्काम भावना से सोचें और काम करें। स्थानीय परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं, दार्शनिक विद्वानों, आचार्यों और शास्त्रों को महत्व दें। उनके निर्देशों का पालन करें। पर ऐसा नहीं हो रहा है।
तीर्थ स्थलों के विकास के नाम पर मुनाफाखोरी और व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसमें दूसरे राज्यों के निवेशकों को पैसा कमाने के ढेरों अवसर दिए जा रहे हैं। तीर्थों में रहने वाले स्थानीय लोगों को इस सारे कारोबार से दूर रखा जा रहा है। सरकार के इसी रवैये का परिणाम है कि आज देवभूमि हिमालय के अस्तित्व को भी खतरा हो गया है।
मथुरा के तीर्थ विकास के लिए योगी जी की अध्यक्षता में बनी ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ के उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्रा से गत पांच वर्षों से मैं बार-बार सोशल मीडिया पर लिख कर पूछ रहा हूं कि इस परिषद का बिना नियमानुसार गठन किए उन्होंने अरबों रुपए की परियोजनाएं किसकी सलाह पर बनवा दीं? क्योंकि खुद तो इस कार्य का उन्हें कोई अनुभव नहीं है। वे आजतक अपनी परिषद के मुख्य उद्देश्य अनुसार ब्रज का तीर्थांटन मास्टर प्लान क्यों नहीं बना पाए? नेतृत्व की इस उपेक्षा व उदासीनता के कारण ही ब्रज जैसे तीर्थों का लगातार विनाश हो रहा है। अब वे तीर्थ न हो कर पर्यटकों के मनोरंजन के स्थल बनते जा रहे हैं। पहले लोग यहां श्रद्धा से पूजा, आराधना या दर्शन करने आते थे। अब मौज मस्ती करने और वहां की चमक-दमक देखने आते हैं। आस्था की जगह अब हवस ने ले ली है। इस तरह न तो तीर्थों की गरिमा बचेगी और न ही सनातन धर्म।-विनीत नारायण