चिंताजनक ‘आर्थिक तस्वीर’ बदलना जरूरी

Edited By ,Updated: 03 Sep, 2019 03:08 AM

it is important to change the worrying economic picture

यकीनन इस समय देश की अर्थव्यवस्था आर्थिक सुस्ती के दौर से गुजर रही है। मौजूदा वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में विकास दर घटकर 5 फीसदी रह गई है। सेवा, विनिर्माण, कृषि और निर्माण सहित कई क्षेत्रों में सुस्ती के कारण यह विकास दर 2013 के...

यकीनन इस समय देश की अर्थव्यवस्था आर्थिक सुस्ती के दौर से गुजर रही है। मौजूदा वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में विकास दर घटकर 5 फीसदी रह गई है। सेवा, विनिर्माण, कृषि और निर्माण सहित कई क्षेत्रों में सुस्ती के कारण यह विकास दर 2013 के बाद सबसे कम है। इससे केन्द्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय स्थिति भी डगमगा सकती है क्योंकि विकास दर कमजोर रहने से कर संग्रह पर भी बुरा असर पड़ता है। 

ऐसी चिंताजनक आर्थिक तस्वीर को बदलना देश की सबसे बड़ी आॢथक-सामाजिक जरूरत दिखाई दे रही है। वस्तुत: भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती के लिए वैश्विक आर्थिक सुस्ती बड़ा कारण है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी और चीन तथा अमरीका के बीच व्यापार संघर्ष के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर 2019-20 में 3.2 फीसदी रहने का अनुमान है। वैश्विक अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक सुस्ती से तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुई है। दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत में महंगाई पर अधिक नियंत्रण है। इसके साथ ही सरकार अर्थव्यवस्था को सुस्ती से उबारने की डगर पर आगे बढ़ी है। कच्चे तेल की घटी हुई कीमतों के कारण भी भारत के शीघ्र ही सुस्ती से निकलने की संभावना है। 

8 दिनों में 4 बड़े कदम
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा 23 अगस्त से लेकर 30 अगस्त तक के 8 दिनों में आॢथक सुस्ती को रोकने के लिए जो 4 बड़े कदम उठाए गए हैं, वैसे कदम देश की आजादी के बाद से अब तक इतने कम दिनों के भीतर नहीं उठाए गए थे। आॢथक सुस्ती रोकने के लिए जो 4 कदम उठाए गए हैं, उनमें पहला 30 अगस्त को सरकारी क्षेत्र के बैंकों को मजबूत बनाने के लिए लिया गया निर्णय है। इसके तहत 10 बड़े सरकारी बैंकों को मिलाकर 4 बड़े सरकारी बैंक बनाए जाएंगे। दूसरे बड़े कदम के तहत सरकार ने 28 अगस्त को अर्थव्यवस्था की सुस्ती तोडऩे के लिए कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग, कोयला खनन में 100 प्रतिशत और डिजीटल मीडिया में 26 प्रतिशत विदेशी निवेश की मंजूरी दी है। इसके साथ-साथ सरकार ने सिंगल ब्रांड रिटेल में एफ.डी.आई. के नियम भी सरल किए हैं। 

सिंगल ब्रांड रिटेलर्स को ऑनलाइन बिक्री शुरू करने की भी इजाजत दी गई है। देश की सुस्त होती हुई अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए 26 अगस्त को अपने 84 साल के इतिहास में पहली बार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) द्वारा लाभांश और अधिशेष कोष के मद से 1.76 लाख करोड़ रुपए केन्द्र सरकार को ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया है। इसी तरह 23 अगस्त को अर्थव्यवस्था की सुस्ती और पूंजी बाजारों के संकट को दूर करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई उपायों की घोषणा की है। सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए 32 नए उपायों की घोषणा की गई है। खासतौर से बाजार में नकदी बढ़ाने के लिए सरकारी बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपए दिए जाएंगे।

ब्याज दरों में और कटौती व नकदी प्रवाह बढ़ाने की जरूरत
निश्चित रूप से उद्योग-कारोबार को गतिशील करने के लिए यद्यपि आर.बी.आई. द्वारा ब्याज दरों में कटौती की गई है लेकिन अभी और कटौती करने तथा अर्थव्यवस्था में और अधिक नकदी का प्रवाह बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि इससे आर्थिक चक्र को पटरी पर लाया जा सकेगा। सरकार को बुनियादी ढांचे पर अधिक खर्च करना होगा। रेलवे तथा सड़क निर्माण में अधिक धन लगाने की नई रणनीति बनानी होगी, क्योंकि इन क्षेत्रों में व्यय से लोगों को नया रोजगार मिल सकेगा और लोगों के पास जो नया धन आएगा, उससे नई मांग का निर्माण हो सकेगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना होगा। इससे ग्रामीण मांग बढ़ाने में मदद मिलेगी। रियल एस्टेट को प्रोत्साहित करना होगा। असंगठित क्षेत्र के लिए सस्ती दर पर कर्ज की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। निर्यात को प्रोत्साहन देना होगा। देश में निर्यातकों को सस्ती दरों और समय पर कर्ज दिलाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी। निर्यातकों को जी.एस.टी. के तहत रिफंड संबंधी कठिनाइयों को दूर करना होगा। निर्यातकों के लिए ब्याज सबसिडी बहाल की जानी होगी। 

केन्द्र सरकार को कर सुधारों पर ध्यान देना होगा। इसके तहत नई प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरैक्ट टैक्स कोड-डी.टी.सी.) एवं नए आयकर कानून को शीघ्र घोषित करना होगा। नई प्रत्यक्ष कर संहिता और नए आयकर कानून का मसौदा तैयार करने के लिए गठित टास्क फोर्स के अध्यक्ष अखिलेश रंजन ने अपनी रिपोर्ट 19 अगस्त, 2019 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में प्रत्यक्ष कर कानूनों में व्यापक बदलाव और वर्तमान आयकर कानून को हटाकर नए सरल व प्रभावी आयकर कानून लागू करने की बात कही गई है। 

रिपोर्ट के अनुसार 5 लाख रुपए तक की आय पर जो मौजूदा आयकर छूट है वह आगे भी जारी रखी जाए। 5 से 10 लाख रुपए तक की वाॢषक आय पर जो मौजूदा 20 फीसदी की दर से आयकर है, उसे घटाकर 10 फीसदी किया जाए। 10 से 20 लाख रुपए तक की वाॢषक आय पर जो मौजूदा 30 फीसदी आयकर की दर है उसे घटाकर 20 फीसदी किया जाए। इससे बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग के लोग लाभान्वित होंगे। निश्चित रूप से नए आयकर कानून के आकार लेने के बाद बड़ी संख्या में नए आयकरदाता दिखाई देंगे और टैक्स संबंधी मुकद्दमेबाजी कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे देश की अर्थव्यवस्था गतिशील भी हो सकेगी। 

जी.एस.टी. को प्रभावी बनाना जरूरी
इसी तरह उद्योग-कारोबार की मुश्किलों को कम करने के लिए जी.एस.टी. को प्रभावी बनाया जाना जरूरी है। खासतौर से जी.एस.टी. पोर्टल से संबंधित मुश्किलों को सबसे पहले दूर करना होगा। जी.एस.टी. रिटर्न भरने में आ रही कठिनाइयों से उद्यमियों और कारोबारियों को राहत दिलानी होगी। रियल एस्टेट एवं पैट्रोलियम उत्पादों को जी.एस.टी. में शामिल किया जाना लाभप्रद होगा। जी.एस.टी. की 12 और 18 फीसदी की दरों को एक साथ मिलाया भी जा सकता है। यह भी जरूरी है कि आर.बी.आई. द्वारा लाभांश और अधिशेष कोष के मद से 1.76 लाख करोड़ रुपए केन्द्र सरकार को हस्तांतरित होने के बाद इसका समझदारी भरा उपयोग हो। खासतौर से इसका उपयोग बुनियादी ढांचे और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में किए जाने से अर्थव्यवस्था को गतिशील किया जा सकेगा। 

इसी तरह मोदी सरकार द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था को सुस्ती के चिंताजनक दौर से बचाने के लिए अगस्त 2019 के अंतिम सप्ताह में जिन आॢथक और बैंकिंग उपायों की घोषणा की गई है, उनके त्वरित और व्यावहारिक क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। सरकार ने वर्ष 2019-20 के बजट में जो विनिवेश लक्ष्य  रखे हैं, उनके लिए त्वरित कदम उठाए जाने होंगे। सरकार ने वैश्विक परिस्थितियों के मद्देनजर विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) के नियमों में जो रियायतें दी हैं, उनसे मेक इन इंडिया आगे बढऩा चाहिए। इससे भारत को अमरीका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वार का फायदा मिल सकेगा। 

यह भी जरूरी है कि सरकार अर्थव्यवस्था को धार देने के लिए रियल एस्टेट, बुनियादी ढांचे से संबंधित कुछ और ऐसे जरूरी आॢथक उपायों की भी घोषणा करे, जिनमें लोगों की क्रय शक्ति बढ़ सके और ऐसे उपायों के क्रियान्वयन होने पर अर्थ विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान आॢथक विकास दर 6 से 6.5 फीसदी रहेगी। यदि आॢथक चुनौतियों के बीच यह विकास दर प्राप्त की जाती है, तो  इसे कमतर नहीं माना जा सकता है। ऐसा होने पर ही वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर यानी 350 लाख करोड़ रुपए वाली भारतीय अर्थव्यवस्था का जो चमकीला सपना सामने रखा गया है, उसे साकार करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जा सकेंगे।-डा. जयंतीलाल भंडारी
 

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