‘जम्मू-कश्मीर : अब हदबंदी पर सारा दारोमदार’

Edited By ,Updated: 11 Mar, 2021 03:52 AM

j k now all the restrictions on the border

जम्मू -कश्मीर की आगामी राजनीति का आधार उस हदबंदी (परिसीमन) आयोग की रिपोर्ट बनने वाली है जिसका कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। ऐसी संभावना है कि इस नवगठित केंद्र शासित प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव इस रिपोर्ट में...

जम्मू -कश्मीर की आगामी राजनीति का आधार उस हदबंदी (परिसीमन) आयोग की रिपोर्ट बनने वाली है जिसका कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया है। ऐसी संभावना है कि इस नवगठित केंद्र शासित प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव इस रिपोर्ट में प्रस्तावित सीटों के हदबंदी को अमलीजामा पहनाए जाने के बाद ही होंगे। 

जम्मू संभाग के लोगों को उम्मीद है कि हदबंदी आयोग की रिपोर्ट में उनकी दशकों पुरानी सत्ता संतुलन की मांग पूरी होगी और विधानसभा में जम्मू संभाग की सीटें बढऩे से वे कश्मीरियों की आंख में आंख डालकर सरकार चलाने की स्थिति में होंगे, क्योंकि अभी तक विधानसभा में संभाग की कम सीटें होने के कारण उनकी स्थिति अल्पसंख्यक सरीखी रही है। 

हदबंदी आयोग के गठन की मांग को लेकर नैशनल पैंथर्स पार्टी के संरक्षक प्रो. भीम सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया, लेकिन जम्मूवासियों को वहां से भी कोई राहत नहीं मिली, क्योंकि तत्कालीन राज्य सरकार का तर्क था कि जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2026 तक हदबंदी संभव ही नहीं है। संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 को मंजूरी दिए जाने के बाद अब यह संभव हो गया है। 

तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 21 नवम्बर 2018 की रात को जब बड़े नाटकीय घटनाक्रम में जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा को भंग किया, उसी समय इस बात का संकेत मिल गया था कि निकट भविष्य में जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता का अंत नहीं होने वाला है और केंद्र सरकार किसी दीर्घकालीन रणनीति पर काम कर रही है। 

इसके बाद 5 अगस्त 2019 को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में न केवल यह घोषणा की कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद-370 के विवादित प्रावधानों एवं 35-ए को समाप्त कर दिया है, बल्कि गृहमंत्री ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक भी पेश कर दिया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने का प्रस्ताव था। 5 अगस्त को राज्यसभा और 6 अगस्त 2019 को लोकसभा ने यह विधेयक पारित कर दिया। 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पेश करने तक जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा में कुल 111 सीटें थीं जिनमें से 24 सीटें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पाक अधिकृत कश्मीर) के नाम पर रिक्त छोड़ी गई थीं। शेष सीटों में से 46 कश्मीर घाटी, 37 जम्मू संभाग और 4 लद्दाख क्षेत्र की थीं। अब राज्य पुनर्गठन के साथ लद्दाख की 4 सीटें जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में जो 107 सीटें रह गई थीं, उन्हें बढ़ाकर 114 करने का प्रस्ताव है। 

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों का हदबंदी करवाने के लिए आयोग गठित करने का जो कार्य बेहद दुष्कर लग रहा था, संसद में पुनर्गठन विधेयक पारित होने से उसका रास्ता साफ हो गया। इसके चलते केंद्र सरकार ने 6 मार्च 2020 को उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के चार राज्यों असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के साथ ही जम्मू-कश्मीर के लिए भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में हदबंदी आयोग का गठन कर दिया। 

आयोग की पहली बैठक में भाजपा के डा. जितेंद्र सिंह और जुगलकिशोर शर्मा तो शामिल हुए, लेकिन डा. फारुक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी ने यह कहकर बैठक से किनारा कर लिया कि उनकी पार्टी ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है और यह मामला अदालत के समक्ष विचाराधीन है। इसलिए इस पर विचार करना उचित नहीं होगा। 

इसके विपरीत, कश्मीर आधारित तमाम पार्टियों के नेताओं को इस हदबंदी प्रक्रिया में अपना राजनीतिक वर्चस्व खतरे में पडऩे की आशंका है, इसलिए ये सभी लोग इसका विरोध कर रहे हैं। बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि हदबंदी आयोग की रिपोर्ट जम्मूवासियों की आकांक्षाओं एवं कश्मीर वासियों की आशंकाओं को कितना सच साबित करती है और यह रिपोर्ट लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में किस पार्टी को कितना लाभ मिलता है, लेकिन इतना जरूर है कि पूरे केंद्रशासित प्रदेश की जनता को आगामी विधानसभा चुनाव का इंतजार है।-बलराम सैनी
 

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