करतारपुर साहिब गलियारा ‘कुझ शहर दे लोक वी जालम सन, कुझ सानूं मरन दा शौक वी सी’

Edited By Pardeep,Updated: 01 Dec, 2018 04:31 AM

kartarpur sahib corridor

यह बात बिल्कुल नहीं कही जा सकती कि पाकिस्तान की सोच अब इतनी सकारात्मक हो गई है कि कुछ भी गलत होने की आशंकाएं ही खत्म हो गई हैं। यह सोच लेना भी जल्दबाजी होगा कि अब सभी सीमाएं खुल जाएंगी और हमारा व्यापार दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करने वाला है, अब...

यह बात बिल्कुल नहीं कही जा सकती कि पाकिस्तान की सोच अब इतनी सकारात्मक हो गई है कि कुछ भी गलत होने की आशंकाएं ही खत्म हो गई हैं। यह सोच लेना भी जल्दबाजी होगा कि अब सभी सीमाएं खुल जाएंगी और हमारा व्यापार दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करने वाला है, अब सब कुछ ठीक ही होगा, पाकिस्तान का आतंकवाद सिर नहीं उठाएगा और न ही कश्मीर का राग अलापा जाएगा। यह भी नहीं होना कि पाकिस्तानी सैनिकों के कुकर्म बंद हो जाने हैं। ऐसा कुछ नहीं होना। कोई उम्मीद न रखे लेकिन फिर भी गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब के गलियारे को लेकर दोनों देशों में हुए समारोहों से यह क्यों लगा कि हम हल्की राजनीति से ऊपर ही नहीं उठ सके और पाकिस्तान सरकार ने खुद को विरासत से जुड़ा होना वाला स्वभाव दिखा दिया। 

यह सबने महसूस किया और लोग दुखी हुए। पहले हमारी ओर गलियारे का नींव पत्थर रखने को लेकर जो राजनीति हुई, जो हल्कापन दिखाया गया, अकाली दल द्वारा भी और कांग्रेस की ओर से भी, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। हम श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं और उनके प्रति श्रद्धा का दिखावा कर रहे थे और अपने अहं को चारा डाल रहे थे। हमारा बर्ताव न केवल पाकिस्तान के प्रति बुरा था, जिसकी यहां जरूरत नहीं थी और न ही आपस में इतना अच्छा था कि कोई इसका प्रशंसा करता। नींव पत्थर बारे केन्द्र सरकार की ओर से प्रबंध होने के कारण स. प्रकाश सिंह बादल का नाम भी दर्ज हो गया। अहंकार हरसिमरत बादल के भी सिर चढ़कर बोला तथा सुनील जाखड़ के साथ-साथ कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के भी। यह बात बिल्कुल भी समझ नहीं आई कि हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं। अभी भी अकाली दल नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर जो बयानबाजी कर रहा है, वह कहां तक उचित है? फिर यदि इस समागम के दौरान पाकिस्तान के विरुद्ध बुरी तरह से भड़ास  न भी निकाली जाती तो क्या आफत  आ जानी थी। नहीं, हम चूक गए और अपना बुरा प्रभाव ही दे सके। 

इमरान खान का भाषण
यदि समारोहों की शोभा को लेकर ही बात करें तो पाकिस्तान सरकार द्वारा किए गए समारोह में श्रद्धा भी दिखाई दी तथा राजनीतिक धड़ेबंदी से ऊपर उठकर, अहंकार से किनारा करके बातचीत भी होती दिखाई दी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जो भाषण दिया, उन्होंने यह दर्शा दिया कि कैसे जो दोनों पंजाब हैं वे एक-दूसरे की टूटी बाजुएं हैं और यही टूटी बाजुएं आज दशकों बाद गले मिलने आ रही हैं। उन्होंने करतारपुर गलियारे में दी जाने वाली सुविधाओं की बात तो की ही, साथ ही जो पश्चिमी पंजाब के लोगों में सिख भाईचारे, पूर्वी पंजाब के लोगों के प्रति खींच है, उसका हुलारा भी दिया। 

वह सिख भाईचारे की खुशी को मुस्लिम भाईचारे के मदीने के दर्शनों के साथ जोड़कर बहुत ही भावुक टिप्पणी कर रहे थे। उन्होंने कश्मीर मुद्दे की बात भी छेड़ी मगर सकारात्मक तरीके से। हम फिर कह देते हैं कि इससे कश्मीर मसला हल नहीं होगा लेकिन उन्होंने मौका सम्भाल लिया तथा अपनी पहुंच सही ही रखी। जब वह पिछली गलतियों बारे बात कर रहे थे तो बहुत ही दार्शनिक अंदाज में मुनीर नियाजी की कविता की पंक्ति ‘कुझ शहर दे लोक वी जालम सन, कुझ सानूं मरन दा शौक वी सी’ सुनाकर सबको प्रभावित कर गए। सचमुच यह मानसिक हालत दोनों पंजाबों के लोगों की है, जिन्होंने दुख सहे, बंटवारा सहा, कत्ल हुए तथा उजड़े। 

स्वागत योग्य प्रारम्भ 
रही बात नवजोत सिंह सिद्धू की तो वह इस सारे मामले में सकारात्मक नजरिया रखकर पहुंचे और लोगों के मनों पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए। इमरान खान ने अपने भाषण में तीन महीने पूर्व इस बात की शुरूआत करने गए नवजोत सिंह सिद्धू बारे भारत में हुई आलोचना को भी बेवजह करार दिया। उन्होंने सिद्धू को ‘अमन का दूत’ कहकर सम्बोधित किया। हालांकि भारत की केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि भी वहां उपस्थित थे लेकिन हरसिमरत कौर बादल को ही यदि देखें तो वह प्रभाव नहीं दिखा सकीं जो किसी सरकार के प्रतिनिधि को दिखाना होता है बल्कि वह तो अपने भाषण में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बार-बार ‘बजीर-ए-आलम’ कह रही थी तो मजाक की पात्र बन रही थी। नवजोत सिंह सिद्धू क्योंकि सैलीब्रिटी है और पाकिस्तान की जनता में भी उतना ही प्रसिद्ध है, इसलिए दोनों देशों से वह प्यार लेने में सफल हो गया। हालांकि उनकी पार्टी के अपने ही मुख्यमंत्री ने आलोचना की। फिर भी यह एक अच्छा प्रारम्भ है, जिसका स्वागत करना बनता है। 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खा गई किसानों के 16,000 करोड़ रुपए
आज भारत का किसान वित्तीय संकट से गुजर रहा है। वह आत्महत्याओं के रास्ते पर चल रहा है। संकट बहुत गहरा है तथा जो रहनुमा हैं वे उसे संकट से निकालने की बजाय उसकी जेब को और चूना लगा रहे हैं। केवल इतना ही नहीं, लूट का यह पैसा सरेआम निजी कम्पनियों को जा रहा है क्योंकि योजना बनाई ही इस ढंग से जाती है। अब हालत यह है कि इन 2 वर्षों में ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों के 16,000 करोड़ रुपए निजी कम्पनियों के पास चले गए हैं। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 में 5.72 करोड़ किसान बीमा के लिए जोड़े गए थे लेकिन अब हालत यह है कि इनमें से लगभग 85 लाख  किसान इस योजना से अलग हो गए हैं। इन किसानों में से भी 80 प्रतिशत किसान उन राज्यों से हैं जहां भाजपा सत्ता में है। 

देखे तथ्य क्या कहते हैं: 
इन कम्पनियों में सरकारी कम्पनी ‘एग्रीकल्चर इंश्योरैंस कम्पनी आफ इंडिया’ ने वर्ष 2016-17 में सबसे अधिक लाभ (2610.60 करोड़ रुपए) कमाया लेकिन अगले वर्ष उसका लाभ केवल 528 करोड़ रुपए ही रह गया। क्या इसे कोई घपला न कहा जाए? दो वर्षों के दौरान न्यू इंडिया कम्पनी को 2266 करोड़ रुपए का लाभ हुआ। एच.डी.एफ.सी. को 1817.74 करोड़ रुपए का लाभ हुआ। रिलायंस कम्पनी ने 1461.20 करोड़ रुपए और इसी तरह निजी कम्पनियों ने हजारों करोड़ रुपए का लाभ कमाया। ये सभी तथ्य पानीपत के आर.टी.आई. एक्टिविस्ट पी.पी. कपूर ने एकत्र किए। क्या अब यह प्रश्र केन्द्र सरकार से नहीं किया जाना चाहिए कि आखिर फसली बीमे के लिए 10 निजी कम्पनियों को क्यों पंजीकृत किया गया? क्यों पहले वर्ष के मुकाबले केवल एक सरकारी कम्पनी का लाभ 75 प्रतिशत कम हो गया? क्या इसमें भी निजी कम्पनियों का हाथ है या कोई भ्र्रष्टाचार का मामला है? क्यों किसानों की जेब पर हाथ डाला गया? आखिर जब ये योजनाएं बनती हैं, क्यों बार-बार प्रश्र उठता है कि कुछ निजी संस्थानों पर सरकार मेहरबान है? क्या हमारे पास इसका कोई उत्तर है?-देसराज काली (हरफ-हकीकी)

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