पी.एफ.आई. और धुर-वाम सोच का ‘खतरनाक गठजोड़’

Edited By ,Updated: 04 Feb, 2020 02:08 AM

pfi and the dangerous nexus of the left and right thinking

केन्द्रीय राजस्व विभाग के एन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) ने खुलासा किया कि पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पी.एफ.आई.) के खाते में 120 करोड़ रुपए आए और इनमें से बड़ा भाग तत्काल ही निकल कर नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के हिंसक विरोध को हवा देने में खर्च...

केन्द्रीय राजस्व विभाग के एन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) ने खुलासा किया कि पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पी.एफ.आई.) के खाते में 120 करोड़ रुपए आए और इनमें से बड़ा भाग तत्काल ही निकल कर नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के हिंसक विरोध को हवा देने में खर्च किया गया। इसके 3 दिन बाद इस संस्था ने एक 5 पेज का स्पष्टीकरण भेजा और स्पष्ट किया कि उसने कोई विदेशी फंड नहीं लिया और 120 करोड़ रुपया कई सालों में जमा हुआ डोनेशन का है। संस्था ने साफ कहा कि सरकार का दावा झूठा है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में उसका कोई भी बैंक अकाऊंट है।  

स्पष्टीकरण में भाजपा सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही ‘बिकाऊ’ मीडिया की भी लानत-मलानत की। लेकिन यह भी कहा कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के लिए पर्दे के पीछे से पैसे की मदद नहीं, बल्कि खुलेआम इस आन्दोलन के साथ है। संस्था ने यह भी कहा कि उसने पैसा अल्पसंख्यक छात्रों के अलावा ‘गरीब’ छात्रों के लिए निकाला। 

भारत की खुफिया एजैंसियां अब यह छानबीन कर रही हैं कि क्या हाल के दौर में उत्तर भारत की तमाम मस्जिदों पर धीरे-धीरे इस संस्था का वर्चस्व बढ़ता तो नहीं जा रहा और क्या नक्सलवादी संगठन के साथ ही शहरी धुर-वाम सोच का ताजा प्रसार भी इसी संस्था के धन-बल की उपज तो नहीं है? एजैंसियों की गोपनीय रिपोर्टों के अनुसार दक्षिण भारत खासकर केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में दलित/आदिवासी, ईसाई समुदाय और इनके कुछ मिशन भी पी.एफ.आई. के नजदीक होते जा रहे हैं। दक्षिण भारत की कुछ विधानसभाओं में इस संस्था के कई विधायक और दर्जनों सभासद भी हैं।

उत्तर भारत में सोशल डैमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.) के नाम से यह संस्था दिल्ली में और अन्य जगहों पर चुनाव लड़  रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की संरचना की तरह ही इसने महिलाओं के लिए दो संगठन ‘वुमन इंडिया मूवमैंट’ और ‘वुमन इंडिया फ्रंट’ बनाया है जो मुस्लिम महिलाओं में संघ समर्थित संस्था ‘राष्ट्रीय महिला मोर्चा’ के प्रभाव को कम करेगी। 

लेकिन इस 5 पेज के स्पष्टीकरण को पढऩे के बाद साफ दिखाई दे रहा है कि संस्था जो भी कर रही है वह प्रजातान्त्रिक और संवैधानिक तौर पर वैध है जैसे खुलेआम डोनेशन मांगना और लेना, उस पैसे को  ‘गरीब (मुसलमान, दलित और आदिवासी) बच्चों को छात्रवृत्ति देने में बांटना कहीं से गलत नहीं है लेकिन इसकी गतिविधियों से सरकार के खिलाफ युवाओं के एक वर्ग में आक्रोश बढ़ रहा है। 

ईसाई युवाओं और युवतियों का भी रैडिक्लाइजेशन कर रही है यह संस्था
खुफिया संस्थाएं तब चौंकीं जब सेना से अवकाश प्राप्त अशोकन ने अपनी बेटी अखिला का दाखिला इस संस्था द्वारा संचालित कालेज में कराया और कुछ दिन बाद ही उस लड़की ने अपने 2 मुसलमान दोस्तों के प्रभाव में हिजाब पहनना और मुस्लिम रीति-रिवाजों का खुलेआम पालन शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद घर से बगावत कर उसने अपना नाम बदल कर हदिया रख लिया और एक मुसलमान से शादी भी कर ली। तब समझ में आया कि यह संस्था युवाओं खासकर ईसाई युवाओं और युवतियों का भी रैडिक्लाइजेशन कर रही है।

केरल के ही कोच्चि जिले में कई मदरसों में उत्तर भारत के एक धर्म-विशेष के युवाओं का शिक्षा के नाम पर ‘ट्रेनिंग’ का पता चला है। हदिया के पिता ने हाईकोर्ट में मुकद्दमा किया इस धर्मान्तरण, शादी और रैडिक्लाइजेशन के खिलाफ। अदालत ने शादी इस आधार पर खारिज कर दी कि हदिया का रैडिक्लाइजेशन किया गया यानी वह सामान्य मन:स्थिति में नहीं थी। सरकार के अनुसार संस्था ने 3 करोड़ रुपए खर्च कर कपिल सिब्बल जैसे कई वकील सुप्रीम कोर्ट में खड़े किए। लेकिन यह सब पैसा चैक से दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को गलत करार देते हुए शादी को इस तर्क के साथ बहाल किया कि किसी की शादी का आधार मन:स्थिति नहीं हो सकता। 

पिछले 4 दशकों से पाक-समॢथत आतंकवाद को भारत जैसे उदारवादी प्रजातंत्र में सबसे बड़ी दिक्कत वैज्ञानिक-बौद्धिक-वैचारिक समर्थन न मिलने की थी जिससे उसके और घातक होने में दिक्कत आ रही थी। लेकिन एक ओर वर्तमान सरकार के प्रति अल्पसंख्यकों में ही नहीं वाम-सोच वाले बुद्धिजीवियों में भी अविश्वास (जिसे हाल में नागरिकता संशोधन कानून और भीमा कोरेगांव घटना की एन.आई.ए. जांच ने हवा दी) और दूसरी ओर उभरते आक्रामक बहुसंख्यक राष्ट्रवाद (अखलाक, पहलू खान. जुनैद और तबरेज का मारा जाना और कुछ मंत्रियों का हर रोज वन्देमातरम् न कहने वालों को पाकिस्तान जाने की सलाह देना) से उभरते सामाजिक तनाव ने आज शहर में जमीन तलाशते नक्सलवाद और पाक-समर्थित आतंकवाद को नजदीक ला दिया है। 

आज खतरा यह है कि अगर शहरों में वाम-सोच के अलम्बरदार बुद्धिजीवी और इस इस्लामिक संगठन में अगर गठजोड़ बढ़ता गया तो भारत सरकार के लिए इस वैचारिक रैडिक्लाइजेशन को निष्प्रभावी करना मुश्किल होगा और इसके हिंसक पहलू को खत्म करने में बहुत देर हो चुकी होगी क्योंकि सरकार की अपनी विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए कोई सार्थक उपक्रम करना दिखाई नहीं देता।-एन.के. सिंह
 

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