बिहार के नए ‘नेता’ प्रशांत किशोर

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2020 04:34 AM

prashant kishore the new  leader  of bihar

किसी समय प्रशांत किशोर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी थे तथा जद(यू) के उपाध्यक्ष थे। नीतीश कुमार द्वारा पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रशांत ने नीतीश बाबू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तथा उन पर आरोप लगाया कि वह भाजपा के चंगुल में फंसे...

किसी समय प्रशांत किशोर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी थे तथा जद(यू) के उपाध्यक्ष थे। नीतीश कुमार द्वारा पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रशांत ने नीतीश बाबू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तथा उन पर आरोप लगाया कि वह भाजपा के चंगुल में फंसे हैं। यही कारण है कि नीतीश यह निर्णय लेने में असमर्थ हैं कि वह महात्मा गांधी संग जाएं या फिर गोडसे संग। 2014 में प्रशांत किशोर एक चुनावी रणनीतिकार थे जब वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के साथ कार्य कर रहे थे। 

उसके बाद उन्होंने नीतीश के साथ तथा लालू गठजोड़ के साथ काम किया जहां पर उन्हें सफलता मिली तो नीतीश बाबू ने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बना डाला। बिहार की जीत के बाद प्रशांत किशोर ने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, ममता बनर्जी तथा अब ‘आप’ के साथ कार्य किया। उन्होंने ‘आप’ के लिए ‘अच्छे बीते 5 साल, लगे रहो केजरीवाल’ का नारा दिया। मगर जब नीतीश कुमार ने सी.ए.ए. का समर्थन किया तब प्रशांत किशोर ने नीतीश को सुझाव दिया कि वह सी.ए.ए. का समर्थन न करें। इसी मामले को लेकर नीतीश कुमार ने प्रशांत को पार्टी से निकाल दिया। अब प्रशांत बिहार में ‘बिहार एक प्रयोग’ का नारा दे रहे हैं तथा जद(यू)-भाजपा गठजोड़ के खिलाफ एक आम गठबंधन बनाने की कोशिश में हैं। वह बिहार के प्रत्येक जिले की यात्रा करेंगे। 

सब को छोड़ एक को न्यौता 
राजग सरकार ने यात्रा कर रहे विदेशी नेताओं से विपक्षी नेता की बैठक के प्रोटोकॉल को नकारा है। बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, म्यांमार की स्टेट कौंसलर आंग सान सू की तथा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे विशिष्ट लोगों से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा सोनिया गांधी ने मुलाकात की थी मगर इस बार अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा पर कांगे्रसी नेताओं विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को कोई निमंत्रण नहीं भेजा गया। केवल कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को ही आमंत्रित किया गया है, हालांकि अधीर ने  सोनिया गांधी को निमंत्रण न भेजने की वजह से इसे ठुकरा दिया है। 

अधीर रंजन ने उदाहरण दिया कि नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान रिपब्लिकन तथा डैमोक्रेट दोनों ही हाऊडी मोदी इवैंट में मौजूद थे मगर यहां पर मोदी ने 134 वर्षीय कांग्रेस पार्टी को आमंत्रित नहीं किया। इस दौरान अमरीकी प्रथम महिला मेलानिया ट्रम्प मंगलवार को एक सरकारी स्कूल में छात्रों को पढ़ाए जा रहे खुशी पाठ्यक्रम के बारे में जानकारी हासिल करेंगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा डिप्टी मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया यहां पर गैर हाजिर दिखाई देंगे क्योंकि स्कूल के इवैंट में भाग लेने वालों की सूची में उनको जगह नहीं दी गई। 

‘आप’ का विस्तार 
दिल्ली में ‘आप’ की जीत के बाद पार्टी ने घोषणा की कि वह 20 राज्यों में एक राष्ट्रीय निर्माण मुहिम के माध्यम से अपना विस्तार करेगी। पार्टी ने पहले ही यह घोषणा कर दी है कि वह मुम्बई में म्यूनिसिपल चुनाव लड़ेगी। ‘आप’ के अनुसार दिल्ली की जीत ने कुछ नए संदेश भेजे हैं कि धर्म, जाति, क्षेत्रवाद की राजनीति कर चुनाव नहीं जीते जा सकते। दिल्ली में पूरे देश भर से आए लोग रहते हैं और दिल्ली एक ‘मिनी इंडिया’ है। दिल्ली में लोगों ने एक नए माडल के प्रशासन के लिए अपना जनादेश दिया है। ‘आप’ के अनुसार विस्तार परियोजना तथा पोस्टर मुहिम को 20 राज्यों में लांच किया जाएगा। विभिन्न भाषाओं में उन पोस्टरों में 9871010101 समॢपत नम्बर प्रदॢशत किया जाएगा। 2015 में अपनी जीत के बाद ‘आप’ ने विस्तार अभियान चलाया था। हालांकि पंजाब को छोड़ ‘आप’ विशेषकर गोवा, गुजरात तथा राजस्थान में अपना विस्तार करना चाहती है जहां पर यह पार्टी पूर्व में असफल रही थी। 

कांग्रेस में अनबन
दिल्ली में कांग्रेस की हार के बाद शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने कहा है कि पार्टी द्वारा झेली जा रही सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व की है। उन्होंने नए कांग्रेस अध्यक्ष को खोजने में असफल रहने के लिए कांग्रेसी नेताओं पर आरोप लगाया। इस मामले में कोई भी बलि का बकरा नहीं बनना चाहता। इसके बाद वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तथा लोकसभा सांसद शशि थरूर ने भी कांग्रेस में नेतृत्व चुनाव की बात कह डाली। हालांकि दीक्षित तथा थरूर की बातों को पार्टी हाईकमान द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। एक वरिष्ठ नेता ने दोहराया कि लोकसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोडऩे वाले राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष के तौर पर वापसी करेंगे क्योंकि पार्टी में ऐसा कोई भी नेता नहीं जो इस समय पार्टी की बागडोर सम्भाल सके। 

कांग्रेस का संविधान कहता है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सी.डब्ल्यू.सी.) के 23 मैम्बरों में से 12 अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के डैलीगेट्स द्वारा चुने जाएंगे। पिछली बार सी.डब्ल्यू.सी. के चुनाव 2 दशक पूर्व 1997 में हुए थे, जब सीता राम केसरी पार्टी अध्यक्ष थे। सोनिया गांधी जोकि 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनीं ने हमेशा ही सी.डब्ल्यू.सी. सदस्यों को नामांकित किया। थरूर ने पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ सी.डब्ल्यू.सी. में 12 चुनी हुई सीटों के लिए चुनाव करवाने के लिए कहा। मगर पार्टी ने दीक्षित तथा थरूर दोनों की आलोचना की। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुर्जेवाला ने कहा कि यह सी.डब्ल्यू.सी. है जिसने कांग्रेस अध्यक्ष को चुना था, यदि किसी व्यक्ति को कोई शंका है तो वह सी.डब्ल्यू.सी. के प्रस्ताव को पढ़ सकता है तथा पार्टी नेताओं को अपील कर सकता है। 

प्रियंका गांधी की राज्यसभा में एंट्री?
कांग्रेस का उच्च नेतृत्व प्रियंका गांधी वाड्रा जोकि पूर्वी उत्तर प्रदेश की महासचिव हैं, को लेकर असमंजस में है कि उन्हें राज्यसभा में भेजा जाए या नहीं। उच्च सदन में प्रियंका को भेजने की मांग उठाई जा रही है तथा इसके लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित प्रदेश प्रियंका के लिए अपने राज्य की सीट देने का प्रस्ताव रख रहे हैं। अप्रैल माह में 51 राज्यसभा सीटें रिक्त होंगी जिनमें से 8 कांग्रेस शासित राज्यों में से हैं। 245 सदस्यों वाले ऊपरी सदन में कांग्रेस के पास 46 सीटें हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता महसूस करते हैं कि राज्यसभा सदस्य होने के नाते वहां प्रियंका मोदी सरकार पर हमले बोल सकती हैं। लोकसभा में राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमले बोलते ही हैं।-राहिल नोरा चोपड़ा

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