राहुल की सदस्यता रद्द, पर अगली लड़ाई होगी रोचक

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2023 04:55 AM

rahul s membership cancelled but next fight will be interesting

मोदी सरनेम से मुश्किलों में आए राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है। लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी है और इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। राहुल की सदस्यता जाने के दरवाजे जिस तेजी से बंद किए गए हैं, यह अपने आप में आश्चर्यजनक है। ये दरवाजे बंद...

मोदी सरनेम से मुश्किलों में आए राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है। लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी है और इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। राहुल की सदस्यता जाने के दरवाजे जिस तेजी से बंद किए गए हैं, यह अपने आप में आश्चर्यजनक है। ये दरवाजे बंद होने थे, यह सब को पता था। कल तक लोग जो सोच रहे थे उसमें भी सदस्यता जाने की बात थी।

अब इस कार्रवाई के बाद अदालती हस्तक्षेप की संभावनाएं भी सीमित हैं। जो भी है वह राहुल गांधी पर लगे आरोपों की दोषसिद्धि को लेकर है। इस मामले में वायनाड से सदस्यता तो उनकी चली ही गई है। अब बात किसी भी कोर्ट में यही हो सकती है कि उन पर जो दोषसिद्धि की गई है, वह गलत है या सही। सत्र अदालत से सुनवाई में देर हो सकती है। कांग्रेस को राहत पाने की जो कोशिश वीरवार को ही कर देनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। 

अगर ऐसा हुआ होता यानी इसी दिन हाईकोर्ट या उच्चतम न्यायालय में मामला जाता तो स्थिति दूसरी हो सकती थी। लेकिन इसकी गारंटी भी नहीं थी। हो सकता था कि उच्च अदालत यह कहती कि पहले आप निचली अदालत में जाइए। और ऐसी स्थिति में वही होता जो शुक्रवार को हो गया। अब आगे की बात। कांग्रेस अदालती कार्रवाई करेगी, यह लगभग तय है। कांग्रेस की लीगल बैटरी इस मामले में जूझ रही है और यह भी तय है कि  इस समय उसके पास यह श्रेष्ठ है, लेकिन मामला संवैधानिक है इसलिए संभावनाएं भी सीमित हैं। अब राहुल को राहत यहीं तक मिल सकती है कि दोषसिद्धि पर रोक लग जाए या फिर सजा कम हो।  

इन दोनों ही मामलों में राहुल को जो अधिकतम हासिल होगा, वह यही होगा कि वह वायनाड का उपचुनाव लड़ लें और अधिकतम नुक्सान 6 साल तक चुनाव न लड़ पाने का बंधन और सजा दो साल से कम होने पर चुनाव लडऩे का बंधन हट जाए।अब सवाल है कि क्या राहुल कोर्ट की लड़ाई लड़ेंगे या फिर एक अपेक्षाकृत आसान रास्ता अपनाएंगे यानी भावनात्मक कार्ड खेलेंगे। भावनात्मक कार्ड खेलते समय लोकतंत्र खतरे में है, अभिव्यक्ति की आजादी का खतरा है, के मुहावरे सामने आएंगे, लेकिन यह बात भी सामने आएगी कि आखिर राहुल ने ऐसा कहा ही क्यों जिससे उनकी सदस्यता गई। मोदियों को लेकर एक समान भाव रख उन्होंने जो भी कहा, उसका वह और उनकी पार्टी बहुत आसानी से बचाव नहीं कर पाएगी। 

कांग्रेस लोकतंत्र की दुहाई देगी। राहुल ने देर शाम एक ट्वीट करके लड़ाई को और घना करने का इशारा कर दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि ‘‘मैं भारत की आवाज के लिए लड़ रहा हूं। मैं हर कीमत चुकाने को तैयार हूं।’’भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार ने सदस्यता जाने से पहले ही रणनीति भी तय कर ली है। केंद्र और देश के 11 राज्यों और 6 सहयोगी दलों के साथ सरकार चला रही भाजपा ने ओ.बी.सी. कार्ड खेल दिया है। उसने अपने केंद्रीय मंत्रियों व तमाम पदाधिकारियों सहित राहुल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है कि राहुल ने पिछड़ों का अपमान किया है। इस आरोप से उबरना आसान न होगा। शुक्रवार की शाम को ही केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और अनुराग सिंह ठाकुर ने इसका मोर्चा संभाल लिया है खास तौर से आने वाले दिनों में कर्नाटक और उसके तत्काल बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों को लेकर। इन चारों ही राज्यों में पिछड़ों का वोट बैंक पर्याप्त है। 

दूसरी तरफ राजनीतिक लड़ाई है विपक्ष की। विपक्ष राहुल के साथ किस हद तक लड़ेगा। क्या ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी.आर. और हमेशा तटस्थ रहने वाले कुछ दल (आंध्र के मुख्यमंत्री जगन रैड्डी और उड़ीसा के नवीन पटनायक या सामान्य तौर पर अलग-थलग रहने वाली मायावती)  इस हद तक राहुल के साथ आ पाएंगे कि उनके साथ देर तक या 2024 तक खड़े हो पाएंगे या फिर कुछ दिनों की बयानबाजी के बाद अपनी अलग-अलग राजनीति में लग जाएंगे। 

सबसे बड़ी भूमिका उन ममता बनर्जी की होगी जो यह कहती रही हैं कि जब तक विपक्षी एकता के केंद्र में राहुल गांधी हैं तब तक एकता नहीं हो सकती। इस भावनात्मक कार्ड के बाद  क्या ममता बनर्जी राहुल को नेता मान लेंगी? या एक संभावना और है कि राहुल खुद 2024 या उपचुनाव के युद्ध में अपने आपको न डालें (वह भी तब अगर कोर्ट ने राहत दी तो) और नरेंद्र मोदी को हटाने के नाम पर किनारे हो जाएं। लेकिन यह संभावना नगण्य ही है। 

अब क्योंकि यह मामला अदालती है, कानूनन है, उसके राजनीतिक अर्थ निकालने की भले ही कोशिश हो, अगले साल के चुनावों तक ले जाना आसान न होगा। इसकी पहली परीक्षा तो कर्नाटक में ही होगी। यह माना जा रहा है कि कर्नाटक की लड़ाई भाजपा के लिए आसान नहीं है लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस में भी काफी सिर फुटौव्वल है। 

सिद्धरमैया और राहुल गांधी के प्रिय वेणुगोपाल के बीच तकरार की खबरें आम हैं। जो  फैसला कोर्ट ने किया है, अगर यही संसद की विशेषाधिकार समिति करती (जिसके लिए भाजपा  सांसद निशिकांत दुबे ने अवहेलना का नोटिस देकर कर दी है) तो मामला पूरी तरह से राजनीतिक माना जाता, पर अब यह लड़ाई अदालती है और उसी पर केंद्रित करने की कोशिश की जाएगी। भाजपा ने यह कहना शुरू कर दिया है कि राहुल गांधी अपने आपको संविधान से ऊपर मानते हैं और इसी के चलते वह 7 मामलों में जमानत पर चल रहे हैं। कांग्रेस अब मोदी को हिटलर के बराबर खड़ा करने की कोशिश कर रही है।-अकु श्रीवास्तव
    

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