Edited By ,Updated: 09 Aug, 2020 03:25 AM
कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने प्रवीण चक्रवर्ती के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए एक लेख (द हिंदू 3 अगस्त 2020) लिखा। इसमें 3 साधारण उद्देश्य थे। पहला यह कि लोगों के बीच आत्मविश्वास फिर से जागृत...
कुछ दिन पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने प्रवीण चक्रवर्ती के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए एक लेख (द हिंदू 3 अगस्त 2020) लिखा। इसमें 3 साधारण उद्देश्य थे। पहला यह कि लोगों के बीच आत्मविश्वास फिर से जागृत करना, दूसरा बैंकरों के बीच आत्मविश्वास पैदा करना तथा तीसरा यह कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच फिर से आत्मविश्वास पैदा करना। प्रत्येक के तहत एक विस्तृत नुस्खा था मगर सरकार की समझ तथा क्षमता और देखभाल से परे नहीं था।
आधिकारिक तौर पर यहां पर इस लेख के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। बेशक कोई एक व्यक्ति पूछ सकता है कि क्या सरकार को प्रत्येक लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए? इसका जवाब न में है मगर यह एक साधारण लेख नहीं था। इसके सह-लेखक डाक्टर मनमोहन सिंह थे जोकि भारत के आॢथक सुधारों के रचयिता तथा पूर्व वित्त मंत्री भी थे। वह 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री भी रहे। क्या सिंह तथा चक्रवर्ती के नुस्खे वैध हैं? बेशक मैंने इसे मेरे गृह शिवा गंगई जिले तथा तमिलनाडु के पड़ोसी जिलों में करने की कोशिश की है।
लोगों के बीच
लोगों के बीच खर्च करने का डर है। उनके पास ज्यादा पैसा नहीं। ज्यादातर लोग अपनी नौकरियां खो चुके हैं या फिर नौकरियां खोए जाने का डर व्याप्त है। यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल जाने की जरूरत हो तो क्या हो? जो थोड़ा-बहुत पैसा उनके पास है उसे वह जमा करके रख रहे हैं। यदि किसी के पास ज्यादा पैसा है तो वे लोग गोल्ड में निवेश कर रहे हैं। 31 जुलाई तक लोगों के पास मुद्रा 26,72,446 करोड़ रुपए की थी। मांग तथा समय की जमापूंजी 12 प्रतिशत बढ़ चुकी है। जहां पर लोग निवेश करना चाहते हैं वह स्थान है करियाना स्टोर, सब्जी, फ्रूट शॉप्स तथा दवाइयां।
इसके नतीजे में कई रिटेल आऊटलैट्स ग्राहकों के बिना हैं जिसमें कपड़ा, फुटवियर, फर्नीचर, खिलौने, रेस्तरां तथा बिजली के उपकरण इत्यादि शामिल हैं। संक्रमण होने का खतरा इस कदर बढ़ गया है कि ज्यादातर लोग डाक्टरों या अस्पतालों में तक जाना ही नहीं चाहते। कई आम चिकित्सक तो अपने क्लीनिक ही बंद कर चुके हैं। लोकल वैद्यों की मांग बढ़ रही है तथा वह फिर से वापसी कर रहे हैं।
ऐसे हालातों में मांग कैसे पुनर्जीवित होगी। डा. मनमोहन सिंह ने लोगों में कैश ट्रांसफर की जरूरत को दोहराया है। भारत ही केवल ऐसा बड़ा राष्ट्र है जहां पर कैश ट्रांसफर नहीं है। ऐसा भी डर है कि गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले लाखों लोग गरीबी में झोंक दिए जाएंगे। आर.बी.आई. ने बैंकरों को चेताया था कि एन.पी.ए. मार्च 21 तक 14.7 प्रतिशत बढ़ सकता है। हमें यह मानने को कहा गया कि सरकार बैंकों को गारंटी देगी कि वह कर्ज अभाव के खिलाफ 3 लाख करोड़ अदा करेगी। हम मानते हैं कि कुल उधार 30 लाख करोड़ हो जाएगा। स्पष्ट तौर पर हम गलत थे। अब सरकार ने संकेत दिया है कि इसने 3 लाख करोड़ तक का कुल कर्ज देने का वायदा किया था जिसमें से 1,36,000 करोड़ की मंजूरी दी जा चुकी है तथा 87,227 करोड़ चुकाया जा चुका है।
हालांकि कर्ज लेने वालों के बीच भी कोई आत्मविश्वास नहीं है। त्रिपुर गार्मेंट इंडस्ट्री अपनी क्षमता का 30 प्रतिशत उत्पादन कर रही है। नौकरियां देने वाली इकाइयां अपनी क्षमता का 60 प्रतिशत कार्य कर रही हैं। हार्डवेयर मर्चेंट, सीमेंट डीलर तथा टायर डीलर इस समय संघर्ष कर रहे हैं। वे 20 प्रतिशत तक की टर्नओवर पर काम कर रहे हैं ताकि उनकी डीलरशिप कायम रह सके। कर्ज लेने वाला व्यक्ति चिंतित है कि वह लोन की अदायगी नहीं कर सकेगा। यदि उसके पास अपना पैसा है तो वह अपने कारोबार में लगा चुका है। यदि उसके पास पैसा नहीं है तो वह कम क्षमता का कार्य करना चाहता है। बड़े कारोबारी सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर चुके हैं कि वह अपने पूंजी खर्च में कटौती कर देंगेतथा नकद को बचाकर रखेंगे। प्रख्यात व्यवसायी घराने घोषित कर चुके हैं कि वह ऋणमुक्त होना चाहते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच आत्मविश्वास
जिस तरह सरकार ने फ्री ट्रेड को संदेह के घेरे में लिया है उससे विश्व भर में एक गहरा शक उत्पन्न हुआ है। भारत खुले तौर पर डब्ल्यू.टी.ओ. नियमों को तोडऩे के बारे में बोलता है। बहुपक्षीय तथा द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के खिलाफ वह अपने आपको अलग कर रहा है। मात्रात्मक पाबंदियां, उच्च टैरिफ तथा नॉन टैरिफ बैरियर की वापसी हुई है। मैं इसे ट्रम्प प्रभाव मानता हूं। सरकार इसे आत्मनिर्भर बुलाती है। 1960 तथा 1990 के बीच अपनाई गई नीतियों से यह भिन्न नहीं है।
ऐसे संस्थानों की गिनती करें जो अपना अलग ही दृश्य पेश करते हैं। सूचना आयोग, चुनाव आयोग, कम्पीटीशन आयोग, नीति आयोग, पी.एम्ज इकोनॉमिक एडवाइजरी कौंसिल, मुख्य आर्थिक सलाहकार का कार्यालय, कैग तथा अन्य। विभिन्न अधिकार आयोग भी गहरी सोच में आज कारोबार, संस्थागत निवेशक, पैंशन फंड तथा वैल्थ फंड के बीच भारत के प्रति सोच नकारात्मक हो गई है। महामारी के फैलने से तथा चीन के साथ शुरू हुए संघर्ष के कारण भारत की कमजोरी उजागर हुई है। इस आर्थिक संकट से निकलने के लिए मनमोहन सिंह तथा चक्रवर्ती ने एक संभव तथा व्यावहारिक रास्ता दिखाया है।-पी. चिदम्बरम