मलेरिया से बचाव में वैज्ञानिकों को मिली ऐतिहासिक सफलता

Edited By ,Updated: 13 Oct, 2021 03:30 AM

scientists get historic success in preventing malaria

मलेरिया सबसे पुराने और घातक संक्रामक रोगों में से एक है, जो दुनिया भर में हर साल हजारों बच्चों की मौत का कारण बनता है। इसके लिए अभी तक कोई टीका नहीं था लेकिन अब दुनिया को मलेरिया से लडऩे के लिए एक नया हथियार मिल गया है। वैज्ञानिकों ने मलेरिया को...

मलेरिया सबसे पुराने और घातक संक्रामक रोगों में से एक है, जो दुनिया भर में हर साल हजारों बच्चों की मौत का कारण बनता है। इसके लिए अभी तक कोई टीका नहीं था लेकिन अब दुनिया को मलेरिया से लडऩे के लिए एक नया हथियार मिल गया है। वैज्ञानिकों ने मलेरिया को रोकने में मदद के लिए पहला टीका विकसित किया है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने मंजूरी दे दी है। माना जा रहा है कि इससे हर साल हजारों बच्चों की जान बचाने में मदद मिल सकती है। इस टीके को ब्रिटिश कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ने बनाया है। यह नया टीका प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम को विफल करने के लिए बच्चों की एक प्रतिरक्षक प्रणाली को जगाता है, जो 5 मलेरिया रोगजनकों में सबसे घातक है। इस टीके का नाम मॉसक्विरिक्स है। यह सिर्फ मलेरिया के लिए ही नहीं, बल्कि किसी भी परजीवी बीमारी के लिए पहला विकसित किया गया टीका है। 

मलेरिया के टीके की खोज 100 वर्षों से चल रही है। डब्ल्यू.एच.ओ. ने जिस वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी है, उसका वैज्ञानिक नाम आर.टी.एस.-एस. है। यह वैक्सीन 5 महीने से ऊपर के बच्चों को दी जाएगी। इसकी कुल 4 डोज बच्चों को दी जाएंगी और अब तक इसकी लगभग 23 लाख डोज अफ्रीका के 3 देशों में लगाई जा चुकी हैं। मलेरिया वैसे तो दुनिया भर में बच्चों को प्रभावित करता है, लेकिन अफ्रीकी देशों में इसका प्रकोप कहीं ज्यादा रहता है। हर साल करीब 2.60 लाख अफ्रीकी बच्चे मलेरिया की वजह से अपनी जान गंवाते हैं। 34 साल पहले 1987 में इसे पहली बार लगाना शुरू किया गया और 6 साल पहले इसका प्रभाव देखा गया। भारत भी ऐसे देशों में शामिल है, जहां मलेरिया के संक्रमण से मौतें भी होती हैं। 23 लाख लोगों पर इसके परीक्षण के बाद पाया गया कि यह वैक्सीन पूरी तरह से प्रभावी है। 6 साल पहले भी यह काफी प्रभावी साबित हुई थी लेकिन अब एफीकेसी ज्यादा होने के कारण डब्ल्यू.एच.ओ. ने इसे मान्यता प्रदान कर दी है। मलेरिया प्रभावित देशों में वैक्सीन एक बड़ी उम्मीद लेकर आई है। 

दरअसल अभी यह वैक्सीन सबसे ज्यादा अफ्रीकी देशों में लगेगी। उसके बाद इसका अन्य देशों में प्रसार किया जाएगा। मलेरिया एक परजीवी है जो रक्त कोशिकाओं पर हमला करके उन्हें खत्म कर देता है और अपनी संख्या बढ़ाता है। मलेरिया के हमले से बचने के उपायों में मच्छरदानी लगा कर सोना, पेस्टिसाइड्स का प्रयोग आदि शामिल हैं। डब्ल्यू.एच.ओ. के आंकड़ों के अनुसार 2019 में मलेरिया के कारण 4 लाख से ज्यादा मौतें हुईं। इनमें 6 ऐसे देश हैं जो सब-सहारा हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मौतें हुईं। 70 प्रतिशत से ज्यादा मौतें 5 साल से कम उम्र के बच्चों की हुई हैं। भारत में साल 2019 में मलेरिया के सवा 3 लाख से ज्यादा केस आए थे और 77 लोगों की मौत हो गई थी। 

सब-सहारा देश केन्या, घाना, मालावी और नाइजीरिया में मलेरिया की आर.टी.एस.-एस. वैक्सीन सबसे पहले लगाई गई, जिसके बाद अब यह नतीजा निकाला गया है कि यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित है। इस वैक्सीन से 30 प्रतिशत तक गंभीर मामले रोके जा सकते हैं। डब्ल्यू.एच.ओ. की मानें तो मलेरिया के 10 में से 4 मामलों में यह वैक्सीन पूरी तरह कारगर होगी और गंभीर मामलों में 10 में से 3 लोगों को बचाया जा सकता है। भारत में मलेरिया का सबसे ज्यादा हमला छोटे बच्चों पर होता है। इसके सामान्य लक्षणों में बुखार आना, गले में दर्द, खराश होना, सिर दर्द की समस्या के अलावा पेट खराब होना आदि हैं। मच्छरों से भारत में कई बीमारियां फैलती हैं, जैसे डेंगू एक बड़ी बीमारी है, जिससे हम अभी भी जूझ रहे हैं। इसी तरह मलेरिया भी एक बड़ी बीमारी में शुमार है और यह बहुत खतरनाक है। 

अब सवाल यह उठता है कि कोविड-19 की वैक्सीन इतनी जल्दी बना ली गई, जबकि मलेरिया की वैक्सीन बनाने में 100 साल से भी ज्यादा का समय क्यों लग गया? दरअसल मलेरिया एक परजीवी के कारण होता है। यह वायरस से ज्यादा घातक और जटिल होता है। मलेरिया परजीवी हमारे इम्युन सिस्टम पर हमला करके खुद को लगातार बदलता रहता है। ऐसे में मलेरिया को लेकर लगातार सतर्क रहने और निगरानी की जरूरत होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो मलेरिया की वैक्सीन बनाना अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। मौजूदा आर.टी.एस.-एस. वैक्सीन केवल मलेरिया परजीवी की स्पोरोजोइट फॉर्म को निशाना बनाने में ही सक्षम है। स्पोरोजोइट फॉर्म मच्छर के काटने और परजीवी के लिवर तक पहुंचने के बीच का वक्त होता है। 
इसलिए यह टीका फिलहाल 40 फीसदी ही प्रभावी है। 

इसके बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक ऐतिहासिक सफलता है क्योंकि यह प्रभावी वैक्सीन के बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। वैसे यह वैक्सीन मलेरिया से जान बचाने की दिशा में एक शुरूआत भर है क्योंकि अभी इस वैक्सीन के कई और संस्करण आने बाकी हैं क्योंकि जैसे-जैसे शरीर में मलेरिया का स्वरूप बदलेगा, वैसे-वैसे वैक्सीन का रूप भी बदलना होगा।-रंजना मिश्रा
 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!