बदहाल ‘तकनीकी शिक्षा’ को मजाक बनने से रोकें

Edited By Updated: 14 Jul, 2019 02:58 AM

stop the  technical education  from being a joke

हाल ही में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (ए.आई.सी.टी.ई.) की एक समिति ने वर्ष 2020 से नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने पर रोक लगाने तथा पुराने कॉलेजों में इंजीनियरिंग की और सीटें न बढ़ाने का सुझाव दिया है। इस समिति ने उद्योग-अकादमिक सम्पर्क का व्यवस्थित...

हाल ही में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (ए.आई.सी.टी.ई.) की एक समिति ने वर्ष 2020 से नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने पर रोक लगाने तथा पुराने कॉलेजों में इंजीनियरिंग की और सीटें न बढ़ाने का सुझाव दिया है। इस समिति ने उद्योग-अकादमिक सम्पर्क का व्यवस्थित ईकोसिस्टम तैयार करने की भी सलाह दी। 

ए.आई.सी.टी.ई. की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों में 2017-18 में कुल मंजूर सीटें 16,62,470 थीं। इस शिक्षा सत्र में इनमें से सिर्फ 8,18,787 सीटें ही भर सकीं और इनमें से मात्र 3,45,215 बच्चों का प्लेसमैंट हुआ। समिति ने सुझाव दिया कि छात्रों में व्यावहारिक पहल को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा उन्हें वास्तविक जीवन से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से भी अवगत कराया जाना चाहिए। दरअसल आज हमारे देश में तकनीकी शिक्षा विभिन्न विसंगतियों के चलते दयनीय स्थिति में है। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पिछले 3-4 वर्षों से इंजीनियरिंग तथा मैनेजमैंट कॉलेजों की सीटें नहीं भर रही हैं। ऐसे में यह विचार करना जरूरी है कि इंजीनियरिंग तथा मैनेजमैंट की डिग्रियों से छात्रों का मोहभंग क्यों हुआ है? अगर कम्पीटीशन के माध्यम से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने की बात छोड़ देें तो सन् 2000 तक छात्र दक्षिण के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में इंजीनियरिंग पढऩे जाते थे। उस समय इंजीनियरिंग में प्रवेश कराने वाले दलालों ने भारी मुनाफा कमाया। 1997 में दक्षिण की तर्ज पर ही देश के विभिन्न राज्यों में निजी इंजीनियरिंग कॉलेज खुलने शुरू हुए। 

हालांकि उस समय इनकी संख्या अधिक नहीं थी। सन् 2001 के आस-पास निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढऩे लगी। 2006 से 2010 तक देश में कुकुरमुत्तों की तरह निजी इंजीनियरिंग तथा मैनेजमैंट कॉलेज खुले। ये कॉलेज कब शिक्षा की दुकान बन गए, पता ही नहीं चला। पहले से ही यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि अगर इन निजी कॉलेजों का पनपना इसी तरह जारी रहा तो भविष्य में इन कालेजों को छात्र मिलने मुश्किल हो जाएंगे। यह आशंका सही साबित हुई। आज इन कॉलेजों को अपनी सीटें भरने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। छात्र न मिलने के कारण अनेक कॉलेज बन्द होने के कगार पर हैं। 

डिग्रियों से मोहभंग
इन कॉलेजों को छात्र न मिलने का एक बड़ा कारण जरूरत से ज्यादा कॉलेजों का पनपना तो है ही, साथ ही कुछ अन्य कारण भी हैं जिस वजह से छात्रों का इन डिग्रियों से मोहभंग हुआ है। अच्छी जगह से डिग्री लेने की चाहत और कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आज अभिभावक और छात्रों को इंजीनियरिंग और मैनेजमैंट की डिग्री एक मजाक लगने लगी है। अधिकतर निजी कॉलेजों से ये डिग्रियां लेने के बाद छात्रों को नौकरी प्राप्त करने के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। 

किसी तरह नौकरी मिल भी जाती है तो वहां भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी जब छात्रों को डिग्री के अनुसार वेतन नहीं मिलता तो वे अपने आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं। आज अभिभावक यह हकीकत अच्छी तरह समझ गए हैं कि डिग्री पर मोटी रकम खर्च करने के बाद भी उनके बच्चों के भविष्य की कोई दिशा निर्धारित नहीं है। यही कारण है कि आज अभिभावकों और छात्रों का इन डिग्रियों से मोहभंग हुआ है और वे दूसरी डिग्रियों की तरफ रुख करने लगे हैं। 

दरअसल निजी कॉलेजों के मालिकों को अपने संसाधनों के माध्यम से कॉलेजों का खर्चा चलाना पड़ता है। जब वे अपना पैसा लगाकर कालेज खोलते हैं तो जाहिर है कि वे उससे मुनाफा भी कमाना चाहेंगे। ऐसे कॉलेजों को सरकार की तरफ से भी कोई अनुदान नहीं मिलता है। इस मामले में सरकार सारा दोष कॉलेजों के मालिकों पर डाल देती है जो किसी भी तरह से उचित नहीं है। क्या कारण है कि सरकार लगातार अपनी जिम्मेदारियों से बचती रहती है? अगर कॉलेजों को छात्र नहीं मिलेंगे तो वे किस प्रकार अपने संसाधन जुटा पाएंगे? सरकार अगर कॉलेज खोलने की अनुमति देती है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कॉलेजों को छात्र भी मिलें। हालांकि जब इन कॉलेजों के मालिक केवल मुनाफा कमाने पर ध्यान देने लगते हैं तो ये कॉलेज सिर्फ शिक्षा की दुकान बनकर रह जाते हैं। इस दौर में पूरे देश में शिक्षा की ये दुकानें पनप रही हैं। 

शिक्षा प्रक्रिया व्यवसाय बनी
दरअसल इस दौर में शिक्षा प्रदान करने की यह प्रक्रिया पूरी तरह से एक व्यवसाय में तबदील हो चुकी है। इस व्यवसाय में सरकार, संबंधित विश्वविद्यालय और ए.आई.सी.टी.ई. सभी शामिल हैं। ऐसी स्थिति में अभिभावकों और छात्रों की अपनी मजबूरियां हैं तो कॉलेजों के मालिकों की भी अपनी अलग मजबूरियां हैं। दरअसल इन कॉलेजों को मान्यता आल इंडिया कौंसिल फॉर टैक्नीकल एजुकेशन यानी ए.आई.सी.टी.ई. नामक संस्था देती है। साथ ही ये संबंधित प्राविधिक विश्वविद्यालयों से सम्बद्धता प्राप्त करते हैं। पिछले दिनों ए.आई.सी.टी.ई. के अंदर भ्रष्टाचार की खबरें प्रकाश में आई थीं।

जब ए.आई.सी.टी.ई. से जुड़े कुछ लोग स्वयं ही भ्रष्टाचार में लिप्त हों तो यह आशा कैसे की जा सकती है कि यह संस्था इंजीनियरिंग कॉलेजों का सही तरह से मूल्यांकन कर पाएगी। विडम्बना यह है कि कई बार ए.आई.सी.टी.ई. से जुड़े कुछ लोग निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के हितों के अनुरूप कार्य करते हैं तो कई बार इन कॉलेजों से पैसे उगाहने के लिए जानबूझ कर कॉलेजों में कमियां निकाल दी जाती हैं। 

अधिकतर राज्यों में यही हाल
ऐसा नहीं है कि यह सब किसी एक प्रदेश में ही हो रहा है। हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और मध्य प्रदेश समेत देश के अधिकतर राज्यों में यही हाल है। शिक्षा के निजीकरण ने सरकारी मशीनरी को खाने-कमाने की मशीन बना दिया है। इस मुद्दे पर सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि कॉलेजों के मालिकों को तो सभी दोष दे देते हैं लेकिन सरकारी मशीनरी को कोई दोष नहीं देता है। इस दौर में सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार प्राविधिक विश्वविद्यालय और ए.आई.सी.टी.ई. छात्रों को केवल डिग्रियां बांटना चाहती है या फिर उन्हें एक सफल इंजीनियर एवं प्रबंधक बनाना चाहती है? इन तीनों संस्थाओं के मौजूदा रवैए से तो यही लगता है कि हम डिग्रीधारी युवकों की एक फौज खड़ी करना चाहते हैं। नहीं तो क्या कारण है कि कुछ समय पहले तक भी निजी इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन कॉलेजों को धड़ाधड़ मान्यता दी जा रही थी। 

शिक्षा के मंदिरों का बंद होना न तो शुभ होता है और न ही समाज में सकारात्मक संदेश देता है। इसलिए हमें पहले ही ऐसी कोशिश करनी होगी जिससे कि ये कॉलेज बंद होने की स्थिति में न आएं। साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि ये कॉलेज शिक्षा की दुकान न बनने पाएं। अब समय आ गया है कि सरकार और हम सब मिलकर तकनीकी शिक्षा को मजाक बनने से रोकें। इसी में हम सबका भला है।-रोहित कौशिक
 

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!