फिर प्रकट हो रहा है ‘धूमकेतु’

Edited By Updated: 16 Jul, 2020 04:23 AM

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धूमकेतु को देखने का एक सुनहरा मौका हम सबके सामने है। 14 जुलाई से लेकर 4 अगस्त 2020 तक सूर्यास्त के बाद 20 मिनट तक यह आसमान में उत्तर पश्चिम दिशा की ओर दिखाई देगा। वैसे तो भारत में यह नंगी आंखों से भी दिखाई देगा पर दूरबीन की मदद से बहुत साफ दिखेगा।...

धूमकेतु को देखने का एक सुनहरा मौका हम सबके सामने है। 14 जुलाई से लेकर 4 अगस्त 2020 तक सूर्यास्त के बाद 20 मिनट तक यह आसमान में उत्तर पश्चिम दिशा की ओर दिखाई देगा। वैसे तो भारत में यह नंगी आंखों से भी दिखाई देगा पर दूरबीन की मदद से बहुत साफ दिखेगा। भुवनेश्वर के पठानी सामंत तारामंडल के उपनिदेशक डा. ए.पटनायक के अनुसार इस धूमकेतु का नाम नियोवयस अथवा सी 2020 एफ. 3 है। अपनी 6800 वर्ष की यात्रा में इसे पृथ्वी से एक बार ही देखा जा सकता है। इससे पहले दिसंबर 2013 में आइजान धूमकेतु दिखा था ।

प्राचीन काल में जब विज्ञान ने प्रकृति और अंतरिक्ष के रहस्यों पर से पर्दा नहीं उठाया था, तब इन धूमकेतुओं के आकाश में अचानक दिखने पर लोग इसे अपशकुन मानकर भयभीत हो जाते थे। उसी दौरान दुनिया में कहीं कोई युद्ध, आपदा, महामारी या सत्ता परिवर्तन जैसी घटना हो गई तो इस धूमकेतु को ही उसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता था। सन 1066 में इंगलैंड की नार्मन से ऐतिहासिक पराजय के समय हेली धूमकेतु दिखा था जिसे इस परिवर्तन का कारण बताया गया था। 

सौरमंडल में धूमकेतुओं को प्राचीन काल से जाना जाता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि चीनी सभ्यता में हेली धूमकेतु को 240 ईसा पूर्व देखा गया था। प्राचीन काल में जब कभी कोई नया चमकीला पिंड रात के आसमान में नजर आता  जिसकी एक बहुत लम्बी धुंधली पूंछ होती जो धीरे-धीरे और धुंधली होती जाती थी तो लोग डर जाते थे। वह एक धुंधला तारे जैसा होता था और उससे चमकीले बाल बौछार जैसे बाहर निकलते थे। प्राचीन यूनानियों ने उसे एस्टर कामेट कहा था। उनकी भाषा में इसका अर्थ था बालों वाला तारा। बाद में आसमान में इस असाधारण चमकीली वस्तु को सिर्फ कामेट या धूमकेतु कहा गया। धूमकेतु के केंद्र में कभी-कभी तारे जैसा एक चमकीला बिन्दू होता है जिसे न्यूइक्लयस या नाभि कहते हैं। नाभि के चारों ओर धुंधली रोशनी को कोमा कहते हैं और धुंधले प्रकाश की लम्बी पूंछ को टेल कहते हैं। प्राचीन खगोलशास्त्री धूमकेतु कब प्रकट होंगे इसकी भविष्यवाणी नहीं कर पाते थे। न ही उन्हें उसके पथ के बारे में कुछ पता था। उन्हें यह भी नहीं पता था कि धूमकेतु कब ओझल होगा। 

ई.पू. 44 में जब आसमान में एक धूमकेतु प्रकट हुआ। यह वही साल था जब रोमन सम्राट जूलियस सीजर की निर्मम हत्या की गई। उसके बाद एक धूमकेतु सन् 1066 में दिखा। यह वह साल था जब नौरमैन्डी के विलियम ने इंगलैंड पर हमला बोलकर उस पर कब्जा किया । यह अंग्रेजों के लिए तो बहुत बड़ी आपदा थी परन्तु विलियम के लिए  बहुत शुभ था। जो लोग आसमान में हो रही घटनाओं के पीछे का विज्ञान नहीं समझते हैं वे आज भी धूमकेतु के आने से घबराते हैं। उन्हें लगता है कि धूमकेतु कोई विपदा लाएगा जिससे दुनिया का कहीं अंत ही न हो जाए। दरअसल धूमकेतु आसमान में अन्य आकाशीय पिंडों जैसे ही होते हैं। पृथ्वी पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जब तक लोग धूमकेतुओं के बारे में ज्ञान हासिल नहीं करते-वे कहां से आते हैं और कहां जाते हैं और वे आसमान में आखिर क्यों प्रकट होते हैं, तब तक लोग उनसे भयभीत रहेंगे। खगोलशास्त्रियों ने धीरे-धीरे करके धूमकेतुओं सम्बंधी तमाम प्रश्नों के उत्तर खोजे। इसके कारण शिक्षित लोगों को अब धूमकेतुओं से कोई डर नहीं लगता है। 

2000 साल पहले यूनानी दार्शनिक अरिल्लू धूमकेतुओं का गंभीरता से अध्ययन करने वाले पहले व्यक्ति थे। ई.पू .350 उनका मत था कि क्योंकि आसमान में सभी पिंड कुछ नियम-कानून के अनुसार घूमते थे और क्योंकि धूमकेतु बिल्कुल अनियमित रूप से आते-जाते थे इसलिए वह आकाशीय पिंड नहीं हो सकते थे। उन्हें लगा कि असल में धूमकेतु हवा के बंडल थे जिनमें आग लग गई थी। एसे बंडल आसमान में धीमी गति से यात्रा कर अंत में नष्ट हो जाते थे और जब वह नष्ट होते तो फिर धूमकेतु लुप्त हो जाते थे। अरस्तु प्राचीन काल के सबसे दिग्गज और बुद्धिमान ङ्क्षचतक थे । उनके विचारों को गंभीरता से लिया जाता था। जानकारी के अनुसार इनमें से 184 धूमकेतुओं का परिक्रमा काल 200 वर्षों से कम है। पृथ्वी की तरह धूमकेतु सूरज के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इस तरह के कई धूमकेतु हैं पर सबसे प्रसिद्ध है हैली धूमकेतु । कई लोग कहते हैं कि बेथलहम का तारा हैली धूमकेतु था। हैली धूमकेतु का परिक्रमण काल 76 वर्ष है, यह अंतिम बार 1986 में दिखाई दिया था। अगली बार यह 2062 में दिखाई देगा।-निरंकार सिंह
 

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