स्थिति दुरुस्त करने के लिए न्यायपालिका को कार्यपालिका से मुक्त किया जाए

Edited By Pardeep,Updated: 30 Jun, 2018 02:03 AM

to correct the situation the judiciary should be freed from the executive

न्यायमूर्ति जस्ती चेलामेश्वर, जो गत शुक्रवार (22 जून, 2018) की मध्य रात्रि को सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो गए थे, को एक वास्तविकतापूर्ण, चरित्रवान तथा मर्यादापूर्ण सूझवान व्यक्ति के तौर पर लम्बे समय तक याद रखा जाएगा, जिनका न्यायपालिका की...

न्यायमूर्ति जस्ती चेलामेश्वर, जो गत शुक्रवार (22 जून, 2018) की मध्य रात्रि को सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो गए थे, को एक वास्तविकतापूर्ण, चरित्रवान तथा मर्यादापूर्ण सूझवान व्यक्ति के तौर पर लम्बे समय तक याद रखा जाएगा, जिनका न्यायपालिका की स्वतंत्रता तथा हमारे जैसे बहुमुखी समाज में लोकतंत्र के अस्तित्व में दृढ़ विश्वास था। 

ये सम्मानीय जज के लिए शब्दाडम्बर नहीं हैं बल्कि उनके न्यायिक धर्म के विश्वास पर एक लेख है। शीर्ष अदालत के सर्वाधिक वरिष्ठ जज के तौर पर कालेजियम के अन्य तीन सदस्यों के साथ 12 जनवरी को उनके द्वारा की गई अप्रत्याशित एवं विवादपूर्ण प्रैस कांफ्रैंस का विचार उनके मन में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा नीत न्यायप्रणाली के कुछ पहलुओं को देश के सामने लाने के इरादे से आया। 

राष्ट्रीय महत्व के केसों को जूनियर जजों के नेतृत्व वाली ‘चुङ्क्षनदा पीठों’ को भेजने को लेकर न्यायमूर्ति चेलामेश्वर तथा भारत के प्रधान न्यायाधीश, जो ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ हैं, के बीच तनातनी को आंतरिक तौर पर सुलझाया जा सकता था। सम्भवत: न्यायप्रणाली के भीतर ‘संचार के अभाव’ के कारण स्थितियां पेचीदा हो गईं। मैं शीर्ष अदालत की कार्यप्रणाली की बाध्यताओं बारे चर्चा नहीं करना चाहता, जिसके न केवल कार्य में पारदर्शी होने की जरूरत है बल्कि इसे पारदर्शी दिखना भी चाहिए। 

पारदर्शिता न्यायिक कार्यप्रणाली के सर्वोच्च पद की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में मदद करती है। अवश्य वांछित प्रतिक्रिया का अभाव तथा न्यायमूर्ति एम.के. जोसफ की सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तावित पदोन्नति में विलंब प्रधान न्यायाधीश तथा कालेजियम के वरिष्ठतम जजों के बीच ‘गलतफहमी’ का कारण बने। चाहे न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने ‘चिंगारी को हवा दी’ और इस प्रक्रिया में ‘अपनी उंगलियां जला लीं’ मगर यह मीडिया तथा संस्था द्वारा राय का मुद्दा हो सकता है। यद्यपि अपनी सेवानिवृत्ति के तीन दिन बाद न्यायमूर्ति चेलामेश्वर द्वारा मीडिया में अपनी ‘विवादास्पद’ तथा ‘असंगत’ टिप्पणियों के लिए बार काऊंसिल ऑफ इंडिया ने उनकी आलोचना की है। 

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि जब उन्होंने प्रैस कांफ्रैंस की तो उनका मानना था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरा है और वे समझते थे कि यह देश तक यह सूचना पहुंचाने का एक तरीका था। यह जानते हुए कि सिस्टम में भारतीय कार्यपालिका किस तरह कार्य करती है, मैं न्यायमूॢत चेलामेश्वर की राय को ‘बेतुकी’ बताकर खारिज नहीं कर सकता। हम एक परिवार हैं जिसमें हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली पर आपातकाल की काली छाया पड़ी और उसके राजनीतिक परिणाम भी सामने आए। 

सेवानिवृत्त न्यायाधीश के शब्दों में  ‘(न्यायपालिका में बैठे लोगों पर) बहुत सारे आरोप हैं। मैं समझता हूं कि जरूरी नहीं कि प्रत्येक आरोप सच हो, मगर जब गम्भीर आरोप लगाए जाते हैं तो उनकी किसी अधिकारी द्वारा जांच की जरूरत होती है ताकि मामले की सच्चाई का पता लगाया जा सके।’ मैं न्यायमूर्ति चेलामेश्वर से सहमत हूं। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर तथा उनके तीन वरिष्ठ सहयोगियों की 12 जनवरी को की गई प्रैस कांफ्रैंस से कुछ संकेत  स्पष्ट हैं कि सर्वोच्च स्तर पर भी न्यायिक पदों पर नियुक्तियों तथा उनकी पुष्टि के मामले में भी कार्यपालिका अपना खेल खेलती है। यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता में बैठे लोग न्यायपालिका में अपनी पैठ बनाते हैं। 

दरअसल संविधान लिखे जाने के बाद स्थितियां ऐसी हो गईं कि लोगों ने राजनीतिक रूप से निष्ठावान जजों के बारे में बात करना शुरू कर दिया। किसी ने भी खुलकर इस प्रवृत्ति की आलोचना नहीं की क्योंकि संविधान ने कार्यपालिका को कुछ ठोस शक्तियां प्रदान की थीं। इसलिए न्यायपालिका के लोगों को दोष नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें चुपचाप संविधान के अनुसार कार्य करना  होता है। पीछे देखें तो याद आएगा 1993 में ‘सैकेंड जजेस’ मामले में न्यायिक नियुुक्तियां की प्रक्रिया को लेकर न्यायमूर्ति रतनावेह पांडियन के निर्भीक तर्क जो उन्होंने बार में अपने लगभग 20 वर्षों के अनुभव के आधार पर सामने रखे थे।

उन्होंने कहा था कि ‘मैंने गौर किया है कि कुछ अवसरों पर उम्मीदवारों की जजों के तौर पर नियुक्ति की प्रक्रिया क्षेत्रीय अथवा जाति अथवा साम्प्रदायिक आधार पर शुरू की जाती है या फिर बाहरी बाध्यताओं के आधार पर। इस बारे शिकायतें हैं जिन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता, जैसे कि कुछ सुझाव भाई-भतीजावाद अथवा पक्षपात से दागी हैं। यहां तक कि आज भी इस तरह की शिकायतें हैं कि एक ही परिवार अथवा जाति या समुदाय या फिर धर्म से व्यक्तियों की पीढिय़ों को जजों की नियुक्ति के तौर पर स्पांसर किया जा रहा है, जिससे न्यायिक संबंधों का एक ‘सिद्धांत’ रचा जा रहा है।’ 

इस बात का श्रेय अवश्य न्यायमूर्ति चेलामेश्वर को दिया जाना चाहिए कि उन्होंने राजनीतिक तथा अन्य बाध्यताओं के कारण ‘निष्ठावान जजों’ की एक अदृश्य कहानी की उसी पुरानी समस्या को ध्यान में लाने के लिए हिम्मत दिखाई। यदि स्थितियों को ठीक करना है तो पहली तथा एकमात्र जरूरत न्यायपालिका को कार्यपालिका से मुक्त करके आत्मनिर्भर बनाया जाए। यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि शीर्ष अदालत अपने घर को व्यवस्थित करने के लिए कुछ कड़े कदम उठाए। दुर्भाग्य से यह निचली अदालतों की कार्यप्रणाली को लेकर इतनी चिंतित नहीं है, जहां सामान्य लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह सुप्रीम कोर्ट के लिए कोई बड़ा काम नहीं है। ये सभी मुद्दे तथा न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की राय महज दिखावटी प्रेम नहीं है, जैसा कि हम सैमीनारों अथवा कांफ्रैंसों में सुनते हैं। अफसोस, इन मुद्दों को किसी कार्रवाई में बदलने के लिए कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया गया।-हरि जयसिंह

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!