1965 के ‘भारत-पाक युद्ध’ की अति रोचक और रहस्यमयी जानकारी

Edited By ,Updated: 13 Sep, 2020 04:24 AM

very interesting and mysterious information of 1965 indo pak war

1965 के भारत-पाक युद्ध की अति रोचक, रहस्यमयी और हैरतअंगेज जानकारी मुझे तब मिली जब 2005 में पाकिस्तान से एक शिष्टमंडल गौहर अयूब खां के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा की कमेटियों के अधिकारों और कार्यप्रणाली की जानकारी हासिल करने के लिए चंडीगढ़ आया।

1965 के भारत-पाक युद्ध की अति रोचक, रहस्यमयी और हैरतअंगेज जानकारी मुझे तब मिली जब 2005 में पाकिस्तान से एक शिष्टमंडल गौहर अयूब खां के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा की कमेटियों के अधिकारों और कार्यप्रणाली की जानकारी हासिल करने के लिए चंडीगढ़ आया। पंजाब सरकार की आेर से शिष्टमंडल का नेतृत्व करने का मुझे मौका नसीब हुआ। 

मीटिंग के बाद मैं गौहर को बड़े सम्मान के साथ बाजू वाले अपने दफ्तर में ले गया। जहां बैठकर हम दोनों ने भारत-पाक के संबंधों पर बड़े विस्तारपूर्वक चर्चा की कि अगर अमरीका और कनाडा शांति से रह सकते हैं, फ्रांस और इंगलैंड 100 साल की लड़ाई के बाद मित्र बन सकते हैं, सीमा विवाद के बावजूद रूस और चीन मिलकर चल सकते हैं, तो भारत और पाकिस्तान क्यों नहीं? आखिर पाकिस्तान भारत की ही जमीन को काटकर अलग देश बनाया गया है। 

इसके साथ ही मैंने 1965 में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के बारे में और पूरी लड़ाई की जानकारी लेने के लिए गौहर से कुछ प्रश्न पूछे? जिनका उत्तर उन्होंने बड़ी हिचकिचाहट और गुंझलदार कूटनीतिक शब्दों में दिया। वार्तालाप का लबोलबाब यंू है कि उस समय विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो एक अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने राष्ट्रपति अयूब खां को यह विश्वास दिलवाया कि कश्मीर पर लड़ाई अति सीमित होगी। भारत खराब स्थिति के कारण कोई दूसरा मोर्चा नहीं खोलेगा और पाकिस्तान आसानी से कश्मीर भारत से छीन लेगा। परंतु जब भारत की सेना बड़ी तूफानी गति से आक्रमण करते हुए इच्छोगिल नहर को पार करके बाटापुर पहुंच गई, जहां से लाहौर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कुछ मीलों पर था, तो समूचा पाकिस्तान थर्रा गया। 

पाकिस्तान ने यू.एन.आे. से गुहार लगाई कि उन्हें लाहौर खाली करने के लिए मौका दिया जाए। लेकिन जल्दी ही हालात बदल गए पर अयूब खां इस पर बहुत पछताया। उन्होंने कहा कि कश्मीर लेते-लेते लाहौर भी हमारे हाथों से जाता नजर आ रहा है। भुट्टो का मशविरा बड़ा महंगा पड़ रहा है। पाकिस्तान की अप्रैल 1965 में रण ऑफ कच्छ में भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई। इसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैरोल्ड विल्सन ने मध्यस्थता कर लड़ाई तो खत्म करा दी, लेकिन ट्रिब्यूनल ने पाकिस्तान को 910 किलोमीटर इलाका दे दिया। इससे पाकिस्तान के हौसले में इजाफा हुआ। उस समय भारत के कई प्रदेशों में राजनीतिक आंदोलन चल रहे थे। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए ऑप्रेशन जिब्रॉल्टर शुरू किया। 5 अगस्त 1965 को 33 हजार पाकिस्तानी फौजियों को कश्मीरी लिबास में घाटी में प्रवेश करवा दिया और 15 अगस्त को भारत ने लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करके हमला कर दिया। 

भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान के 8 किलोमीटर अंदर हाजीपीर दर्रा पर कब्जा कर लिया। यहीं से पाकिस्तान घुसपैठियों को प्रवेश करवाता था। भारत ने कारगिल पर कब्जा कर लिया।  15 दिन के अंदर पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्रॉल्टर बुरी तरह असफल हो गया और उनके कश्मीर जीतने की आशाआें पर पानी फिर गया। एक सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने आप्रेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया। अयूब खां का यह कहना था कि भारतीय आधुनिक हथियारों, टैंकों और गोला बारूद का मुकाबला नहीं कर सकेंगे और पाकिस्तान अखनूर पर कब्जा करने में सफल हो जाएगा। पाकिस्तान द्वारा अखनूर पर जोरदार हमले ने भारत सरकार को भी आश्चर्य में डाल दिया। भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एयर मार्शल अर्जुन सिंह को अपने घर बुलाया और पूछा कि हम कितने समय में पाकिस्तान पर हवाई हमला कर सकते हैं। अर्जुन सिंह ने तुरंत उत्तर दिया कि 15 मिनट के अंदर अंदर। उसी समय छम्ब में जोरदार हवाई हमले शुरू कर दिए गए जिससे आगे बढ़ते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को रोक लिया गया। 

परंतु दूसरी तरफ 6 सितंबर 1965 को भारत ने पंजाब और राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करके जोरदार हमला किया। भारत की फौज मेजर जनरल निरंजन प्रसाद के नेतृत्व में इच्छोगिल नहर तक जा पहुंची। पाकिस्तान यह सोच भी नहीं सकता था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय सीमा से आक्रमण कर देगा। लाहौर को खतरे में देखते हुए पाकिस्तान ने अपनी फौज का बहुत सारा हिस्सा पंजाब की तरफ लगा दिया। इससे उनका कश्मीर में दबाव कम होने लगा। भारत के उच्च पदों पर आसीन अफसरों को भारतीय सेना द्वारा बाटापुर, बर्की के कब्जे की पूरी जानकारी नहीं थी और उन्हें आगे बढऩे की बजाय वापस बुला लिया गया। यह सबके लिए हैरानीजनक भी था और अफसोसनाक भी। क्योंकि 9 सितंबर को फौज को यह हुक्म दे दिया गया कि बाटापुर और डोगराई से पीछे हटकर गौशल दयाल आ जाए। इसके साथ ही सियालकोट पर भी भारत ने जोरदार आक्रमण किया और पाकिस्तान के काफी अंदर तक जाकर कब्जा कर लिया। 

दूसरी तरफ स्थिति अचानक बदल गई। पाकिस्तान की फौज ने आगे बढ़कर खेमकरण पर कब्जा कर लिया। उनकी योजना ब्यास और हरि के पत्तन के पुल पर कब्जा करके अमृतसर के पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण करने थी। भारत के लिए यह बड़ी ही नाजुक, खतरनाक और चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई। जनरल जे.एन. चौधरी ने पंजाब के पश्चिमी कमांड के हैड सरदार हरबख्श सिंह को अमृतसर खाली करने के लिए कह दिया। जनरल हरबख्श सिंह के साथ उस समय कैप्टन अमरेन्द्र सिंह (मुख्यमंत्री पंजाब) को राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अपनी सैनिक जिम्मेदारी निभाने का मौका मिला। 

जनरल हरबख्श सिंह अमृतसर को खाली करने के लिए किसी कीमत पर तैयार नहीं थे। उसी रात को भारत की आसल उत्ताड़ पर  पाकिस्तान के साथ घमासान जंग हुई और उनके 100 टैंक तबाह कर दिए गए और टैंकों को तबाह करने वाले अब्दुल हमीद ने यहीं पर शहादत पाई थी। अमृतसर को बचाने का श्रेय जनरल हरबख्श सिंह को जाता है जिन्होंने अपनी कार्यकुशलता से अपनी जिम्मेदारी को सरअंजाम दिया। इस तरह भारत ने पाकिस्तान के 1920 किलोमीटर (जिसमें सियालकोट, लाहौर और कश्मीर क्षेत्र) के हिस्से पर कब्जा कर लिया। जबकि पाकिस्तान भारत के छम्ब और सिंध से लगते रेगिस्तान पर 550 किलोमीटर पर कब्जा करने में कामयाब हो गया। 

भारत पाकिस्तान में युद्ध बंद हो गया और रूस के प्रधानमंत्री ने मध्यस्थ बनकर दोनों को ताशकंद बुलाया। 10 जनवरी 1966 को भारत-पाकिस्तान में समझौता करवाया गया। भारत ने सारे जीते हुए इलाके वापस कर दिए। इस पर भारतीयों को बड़ा आक्रोश था। 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की दिल का दौरा पडऩे से अचानक मृत्यु हो गई और क्रोध सहानुभूति की लहर बन गई। भारत ने अपना एेसा लाल खो दिया जिसके एक इशारे पर बच्चे से लेकर बूढ़े तक ने सोमवार की रात को अनाज की समस्या से निजात पाने के लिए उपवास रखना शुरू कर दिया था।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 

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