मैनपुरी में ‘शराब विधवाओं’ का गांव

Edited By ,Updated: 19 Feb, 2019 05:17 AM

village of  wine widows  in mainpuri

यू.पी. के मैनपुरी जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां शराब पीकर मरने वाले पुरुषों की त्रासदी इतनी ज्यादा व्याप्त है कि गांव को ही ‘विधवाओं का गांव’ कहा जाने लगा है। इस गांव में जहरीली शराब के कारण लोगों की मौत इतनी आम बात है कि अब यहां ऐसी घटना से कोई...

यू.पी. के मैनपुरी जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां शराब पीकर मरने वाले पुरुषों की त्रासदी इतनी ज्यादा व्याप्त है कि गांव को ही ‘विधवाओं का गांव’ कहा जाने लगा है। इस गांव में जहरीली शराब के कारण लोगों की मौत इतनी आम बात है कि अब यहां ऐसी घटना से कोई फर्क नहीं पड़ता। ईशान नदी के तट पर बसे पुसैना गांव में 300 परिवारों में कुल 4008 लोग रहते हैं। इनमें से करीब 150 परिवारों में 25 से 65 साल की उम्र के बीच की विधवा महिलाएं रहती हैं जिनके पति पिछले 15 वर्षों में जहरीली शराब पीकर मर चुके हैं। कई परिवारों के एक से ज्यादा पुरुषों की जान इस अभिशाप ने ली है। 

तस्करों का डर : इन महिलाओं के लिए घर चलाना मुश्किल होता है लेकिन अवैध शराब का धंधा चला रहे तस्करों के डर से वे कुछ नहीं कहतीं। गांव में रह रही 45 साल की नेकसी देवी कहती हैं कि किसी से इस बारे में बात करने पर उसके नतीजे भुगतने पड़ते हैं। यहां तक कि कई विधवाओं को नौकरी का लालच देकर उसी धंधे में शामिल होने के लिए कहा जाता है जिसने उनकी जिंदगियां तबाह कर दीं। नेकसी देवी अपने पति के अलावा 18 से 24 साल के बीच के अपने चार बच्चे भी गंवा चुकी हैं। 

सुनीता देवी नामक 35 वर्षीय एक अन्य विधवा की 12 से 19 वर्ष की 4 बेटियां हैं। उसने बताया कि उसका पति राजेन्द्र कृषि मजदूर के तौर पर काम करता था जो 40 वर्ष की आयु में इसी अभिशाप के कारण मर गया था। वह अपनी युवा बेटियों को काम पर भी नहीं भेज सकती। गांव के प्रधान राजेश कुमार का कहना है कि गांव में जहरीली शराब का धंधा पिछले कुछ सालों में कम हुआ है लेकिन खत्म नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि उन्होंने कई मौतें होने पर इसे बंद कराने की कोशिश की लेकिन माफिया से धमकी मिलने पर वह आगे कुछ नहीं कर सके। कुमार ने बताया कि छोटे-छोटे बच्चे पहले इस धंधे में काम करते हैं और फिर खुद भी शराब पीने लगते हैं। उन्होंने बताया कि अवैध शराब का 10 रुपए का एक पाऊच कुछ लोगों के लिए बच्चों तथा वयस्कों को वेतन के बदले देने का माध्यम बन गया है। 

गांव में ही बनती है शराब : स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां हर रोज 10,000 से 12,000 लीटर शराब बनती है और बिकती है, जबकि पुलिस का कहना है कि वह धंधे को बंद करा रही है। अकेले पुसनिया में ही हर रोज 600 से 700 लीटर शराब बनती है। गांव में 60 से 80 लीटर शराब पी जाती है जबकि बाकी दूसरे गांवों और जिलों में भेजी जाती है। इस शराब में नशा बढ़ाने के लिए गुड़ और यीस्ट में यूरिया मिलाया जाता है। 

धंधा खत्म करने के प्रयास : मैनपुरी के एस.पी. अजय शंकर राय का कहना है कि जिले से इस धंधे को खत्म करने के लिए कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि करीब 11 करोड़ की सम्पत्ति शराब माफिया से जब्त की गई है। उन्होंने जानकारी दी कि कई बार छापेमारी कर रही टीमें अवैध शराब बना रही इकाइयों को नष्ट कर देती हैं लेकिन माफिया उन्हें फिर से खड़ा कर लेते हैं। मैनपुरी की बाल कल्याण समिति की सदस्य एवं सामाजिक कार्यकत्र्ता आराधना गुप्ता का कहना है कि शराब का धंधा खत्म करने के लिए गांव में एक पुनर्वास कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए। महिलाओं को सरकारी योजनाओं के लाभ उपलब्ध करवाए जाने चाहिएं लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।-ए. जायसवाल

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