भाजपा और शिवसेना में से किसका होगा ‘मुख्यमंत्री’

Edited By ,Updated: 30 Sep, 2019 01:00 AM

who among bjp and shiv sena will be  chief minister

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने पिता स्व. बाल ठाकरे से किए गए अपने उस वायदे को याद कर रहे हैं जिसमें उन्होंने एक शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी, जबकि भाजपा वर्तमान मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर...

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने पिता स्व. बाल ठाकरे से किए गए अपने उस वायदे को याद कर रहे हैं जिसमें उन्होंने एक शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी, जबकि भाजपा वर्तमान मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजैक्ट कर रही है। विधानसभा चुनाव में एन.डी.ए. की सत्ता में वापसी की स्थिति में शिवसेना उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजैक्ट कर रही है। 

सीट शेयरिंग को लेकर इन दोनों दलों में बातचीत जारी है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आने के बाद देवेन्द्र फडऩवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे। इन चुनावों में भाजपा 122 जबकि शिवसेना 63 सीटें जीती थी। भाजपा और शिवसेना ने 1995 से 1999 तक महाराष्ट्र पर राज किया है और 2014 के चुनाव बाद गठबंधन के तहत वह एकसाथ आए थे। गत अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 25 में से 23 तथा शिवसेना ने 23 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा अपने लिए शिवसेना से 165 सीटों की मांग कर रही है और सीट शेयरिंग पर शीघ्र ही कोई घोषणा हो सकती है। इस बीच भाजपा नेताओं के अनुसार सीट गंवाने वाले भाजपा उम्मीदवारों को दिक्कत होगी लेकिन शिवसेना नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया है कि उनकी पार्टी के किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाए। 

समाजवादी पार्टी और परिवार फिर होगा एकजुट
समाजवादी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं के लिए यह अच्छी खबर है कि उत्तर प्रदेश में सपा के सभी गुट शीघ्र ही एकजुट होंगे और अखिलेश यादव तथा उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच मतभेद भी जल्दी ही समाप्त हो जाएंगे। यह मतभेद करीब अढ़ाई वर्ष पहले पिछले विधानसभा चुनावों से पहले शुरू हुए थे जिसके परिणामस्वरूप चुनाव से पहले पार्टी में दरार आ गई थी। शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) नामक अपना अलग दल बना लिया था।

लोकसभा चुनाव के बाद मायावती ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया है और उसके बाद सपा के बहुत से एम.एल.सी. और राज्यसभा सदस्य अखिलेश को छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। अखिलेश यादव के लिए अपने विधायकों, एम.एल.सीज को अपने साथ रखना मुश्किल हो रहा है क्योंकि भाजपा उत्तर प्रदेश विधान परिषद में अपना बहुमत चाहती है। लेकिन भाजपा सरकार द्वारा आजम खान के खिलाफ बहुत से केस दर्ज करवाने के बाद मुलायम सिंह यादव खुले तौर पर अपने पुराने साथी के पक्ष में आ गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप आजम खान के समर्थन में अखिलेश यादव रामपुर गए हैं। 

अखिलेश यादव अब खासतौर पर स्वामी चिन्मयानंद के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ मैदान में उतर आए हैं। अब उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार तथा केन्द्र सरकार के खिलाफ लड़ाई लडऩे के लिए पूरा अखिलेश परिवार और सपा नेता तथा कार्यकत्र्ता एकजुट होकर सड़कों पर उतर आए हैं। इसका परिणाम यह होगा कि सपा के बैनर तले यादव और मुस्लिम मतदाता एकजुट हो जाएंगे। 

नितिन गडकरी के सितारे नहीं दे रहे साथ
ऐसा लगता है कि परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के सितारे इन दिनों ठीक नहीं हैं जैसे कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में थे। यह बात मोटर वाहन अधिनियम 2019 लागू होने के बाद और सतर्क रूप से सामने आई जिसमें ट्रैफिक नियम के उल्लंघन पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। गुजरात सहित कई भाजपा शासित राज्यों ने भी इन जुर्मानों की दर कम कर दी। इससे यह संदेश दिया गया कि लोग सत्ता के साथ चलते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार से भी गडकरी को दूर रखा गया है। वह मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस की राज्य की यात्रा के समापन समारोह से भी गैर हाजिर रहे, जो नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। वह मुम्बई में हुई अमित शाह की रैली में भी शामिल नहीं थे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें आधारभूत ढांचे पर बनी मुख्य कैबिनेट समिति में शामिल नहीं किया गया है।-राहिल नोरा चोपड़ा
               

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