गारंटी के खेल में कौन होगा आगे?

Edited By ,Updated: 18 Mar, 2024 05:36 AM

who will be ahead in the guarantee game

यों तो चुनावी माहौल ऐसा बना दिया गया है जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाला एन.डी.ए. एकजुट दिख रहा है और दूसरी तरफ विरोधी दलों का गठबंधन 7 महीने की मशक्कत के बाद भी एकजुट नहीं दिख पा रहा है

यों तो चुनावी माहौल ऐसा बना दिया गया है जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाला एन.डी.ए. एकजुट दिख रहा है और दूसरी तरफ विरोधी दलों का गठबंधन 7 महीने की मशक्कत के बाद भी एकजुट नहीं दिख पा रहा है । या यूं कहें कि उसको नीतीश कुमार, जयंत चौधरी आदि से बड़े झटके मिले हैं। और तो और ममता बनर्जी ने भी ठीक-ठाक झटका दिया है। इन सबके बावजूद लड़ाई तो होनी ही है और यह सवाल बड़े स्तर पर आने वाले दिनों में उभरेगा  कि क्या मोदी की गारंटी के आगे कांग्रेस की न्याय की गारंटी की गठरी किस रूप में सामने आएगी? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी गारंटी को युवाओं के विकास, महिलाओं के सशक्तिकरण, दशकों से वंचित समाज के तबकों की प्रगति से जोड़ते हैं। किसान सम्मान निधि से शुरू हुई यह गारंटी अब बड़ा रूप ले चुकी है । भारतीय जनता पार्टी ने महिलाओं के वोट को सशक्त करने की पूरी कोशिश की है और साथ ही लाभार्थी का एक बड़ा वोट बैंक बनाया है। अस्मिता, राष्ट्रवाद, आर्थिक विकास और राम मंदिर समेत ऐसे कई मुद्दे हैं जो  भाजपा की सभाओं में जमकर गूंजेंगे। 

दूसरी ओर कांग्रेस अभी तक  गारंटी की 25 घोषणाएं कर चुकी है। इनमें से 10 तो वे हैं जिन्हें आजमा कर हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में जीत दर्ज की गई। इनके साथ ही 5 नई न्याय गारंटी और जोड़ी गई हैं। ये युवाओं, महिलाओं और किसानों के लिए हैं। इसके अलावा 10 अन्य गारंटियों की घोषणा शनिवार को की गई। हालांकि इनमें से अधिकतर के बारे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी मणिपुर से मुम्बई तक की गई ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान ही बता दिया था। नारी न्याय के अंतर्गत मल्लिकार्जुन खरगे 5 बड़ी गारंटियों की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। 

कांग्रेस और उसके सहयोगी बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे को भी अपने प्रचार अभियान में जोर-शोर से उठा रहे हैं। वे सी.ए.ए. को खत्म करने और अनुच्छेद 370 की बात भी उठा रहे हैं। वे चुनावी बांड का सत्ता के लिए दुरुपयोग और किसानों के मुद्दे को प्रमुखता दे रहे हैं तथा एम.एस.पी. की गारंटी की बात कर रहे हैं। आई.एन.डी.आई.ए . नई-नई गारंटी के साथ सामने आ रहा है और दूसरी तरफ एन.डी.ए. इन पर सवाल उठा रहा है कि जहां उनकी घोषणा पहले राज्यों में की गई थी, वहां इन्हें लागू क्यों नहीं किया गया? साथ ही भाजपा इन गारंटियों को लेकर कटाक्ष भी करती रही है कि इसका पैसा कहां से आएगा? किसानों का एम.एस.पी. को लेकर ऐसा ही तर्क रहा है। 

दूसरी तरफ अपनी गारंटियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता यह कहते हैं कि हमने 5 साल से ज्यादा पहले किसान सम्मान निधि की घोषणा की और उसे पूरी तरह से लागू भी कर दिया। जनता ने भी उस पर पूरी तरह विश्वास किया जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी की 72000 रुपए की (12 गुना ज्यादा) किसान सम्मान निधि  वाले वायदे को नकार दिया। जनता ने डिलीवरी पर ज्यादा भरोसा किया, वादों पर नहीं। वायदों और गारंटियों के इस खेल के बावजूद कई सवाल उठ रहे हैं। एन.डी.ए . के लिए यह सवाल दक्षिण में पर्याप्त विजय पाने को लेकर है। प्रधानमंत्री मोदी का भी फोकस वही है। जबकि आई. एन. डी. आई. के लिए यह सवाल हिंदी पट्टी को लेकर है जहां पिछले 10 सालों से उसकी जमीन बंजर बनी हुई है। 

उस पर वोटों की खेती होने की संभावना पर सवाल उठते रहे हैं। वैसे भी उसकी काफी जमीन पर क्षेत्रीय दलों ने कब्जा कर लिया है और वह उसे वापस करने को राजी नहीं है। आई. एन. डी. आई. ए. में सीटों का बंटवारा बड़े हद तक न हो पाने की वजह कांग्रेस की कोशिश अपनी जमीन को वापस लेने की है । क्षेत्रीय दल कांग्रेस को कोई रिबेट देना ही नहीं चाहते। 2019 में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में सिर्फ एक-एक सीट मिली। इन तीनों राज्यों में कुल 149 सीटें हैं। इसके अलावा वह राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तो खाता भी नहीं खोल सकी।  उसने छत्तीसगढ़ में 2 सीटें जीती थीं। 

इस तरह 10 राज्यों की कुल 225 सीटों में ङ्क्षहदी पट्टी में कांग्रेस ने सिर्फ 6 सीटें जीतीं। राम मंदिर के उफान के पहले ही भाजपा ने 2014 में यू.पी. में 71 सीटों पर जीत और 2019 में 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वर्ष 2019 में  सपा, बसपा और आर.एल.डी. ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार बसपा अकेले चुनाव लड़ रही है। आर.एल.डी. भाजपा के साथ है। इस बार यू.पी. में राम मंदिर मुद्दे के अलावा काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला भी उसके पक्ष में है। योगी की कानून व्यवस्था ने तमाम मुद्दों को पीछे कर दिया है और मोदी के साथ योगी-योगी के नारे भी लग रहे हैं। बिहार में नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ हैं। पिछली बार भाजपा ने 40 में से 39 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार हां-न-हां करते-करते चिराग पासवान भी भाजपा के साथ आ गए हैं। हालांकि बिहार में युवा तेजस्वी यादव अपनी रैलियों में व्यापक भीड़ खींच रहे हैं। 

पश्चिम बंगाल और असम में सी.ए.ए. के मुद्दे को लेकर खेल करने की कोशिश होगी। पिछली बार भाजपा ने बंगाल में 18 सीटें जीती थीं, वहां तृणमूल केवल 22 सीटें जीत पाई थी। सी.ए.ए. की वजह से उसे बंगलादेशी शरणाॢथयों के वोट मिलने का भरोसा है। पश्चिम बंगाल में मथुवा समुदाय  इस घोषणा से गदगद है। असम की 14 सीटों में से पिछली बार भाजपा ने 9 सीटें जीती थीं। असम और पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक वोटों से विपक्ष को काफी उम्मीदें हैं। 

इस बार आंध्र प्रदेश में भाजपा ने चंद्र बाबू नायडू की पार्टी तेलगु देशम और पवन कल्याण की पार्टी जनसेना पार्टी से समझौता किया है। अभी तक केंद्र की सरकार के कंधा से कंधा मिलाकर चलने वाले जगनमोहन रेड्डी अकेले पड़ गए हैं  और भाजपा अपने कभी पुराने सहयोगी रहे चंद्रबाबू नायडू के साथ आंध्र प्रदेश में अपना खाता खोलने की कोशिश में है। वायदों और गारंटियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ताओं में उत्साह तो भर रहा है लेकिन अभी से उसकी एक चिंता इन्हीं कार्यकत्र्ताओं को लेकर है कि कहीं वह अति उत्साह में मतदान के दिन सुस्ती में न बैठ जाएं और अपने वोटरों को मतदान केंद्रों तक ले जाने में उनके सहारे ही छोड़ दें। कुछ भी कहें गारंटियों का यह युद्ध रोचक होने वाला है।-अकु श्रीवास्तव
 

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