क्या कांग्रेस तब जागेगी जब अस्तबल से ‘घोड़े’ कूद जाएंगे

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2020 02:49 AM

will congress wake up when  horses  jump from stables

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने 12 जुलाई को एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी के लिए ङ्क्षचता वाली बात है। क्या हम तब जागेंगे, जब हमारे अस्तबल से घोड़े बाहर को कूद जाएंगे..

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने 12 जुलाई को एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी के लिए ङ्क्षचता वाली बात है। क्या हम तब जागेंगे, जब हमारे अस्तबल से घोड़े बाहर को कूद जाएंगे।’’ सिब्बल का यह ट्वीट कांग्रेस की मनोदशा को दर्शाता है। असल में यह एक ऐसा सवाल है जिसके बारे में कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पूछना चाहते हैं क्योंकि वह राजस्थान में न खत्म होने वाला ड्रामा असहाय होकर देख रहे हैं। 

ऐसा प्रतीत होता है कि यदि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मौजूदा संकट को बचाने में कामयाब हो गए मगर कांग्रेस के लिए उसके बचे रहने का सवाल फिर भी खड़ा रहेगा। एक ऐसे टूटे हुए बहुमत से गहलोत के लिए पूरे झुंड को एक साथ रखना आसान कार्य नहीं होगा, यदि वह ट्रस्ट वोट जीत भी जाएं तो। कांग्रेस पार्टी को सचिन के झटके को पहले ही भांप लेना चाहिए था जब कांग्रेस ने अपने करिश्माई नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को खो दिया था तथा मध्य प्रदेश को भाजपा के हाथों में दे दिया था। मगर कांग्रेस को ऐसा अंदेशा नहीं था। 

वास्तविकता यह है कि पार्टी ने जीत के बाद भी राज्य को खो दिया क्योंकि पार्टी के भीतर अंदरूनी सत्ता संघर्ष चल रहा था, जो पुराने दिग्गजों तथा युवा तुर्कों के बीच चल रहा था। पैसे के बल पर लुभाने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस भाजपा के खिलाफ संघर्ष में अन्य विपक्षी दलों से समर्थन प्राप्त करने में नाकाम रही। इसमें कोई दो राय नहीं कि यथास्थिति कोई सहायता करने वाली नहीं क्योंकि पार्टी पहले से ही पिछले 6 माह के दौरान जागरूक रहने वाली बातों को नकार चुकी है। इसने 2014 तथा 2019 लोकसभा के चुनाव खो दिए। इसके साथ-साथ कुछ कांग्रेस शासित प्रदेश जैसे कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश भी हाथों से निकल गए। ऐसा खतरा था कि छत्तीसगढ़ भी मध्य प्रदेश की राह पर चल देगा। 

एक बड़ी पार्टी जिसने पूर्व में कई राज्यों पर शासन किया, को वर्तमान संकट से सबक सीख लेना चाहिए था कि आखिर कहां गलती है? पहली बात यह है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में शून्य स्थान बन चुका है। अगस्त 2019 से लेकर सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं तथा इससे पूर्व उन्होंने कई संकटों को झेला है। मगर आज वह अपने आपको तथा राहुल गांधी को पढऩे में नाकाम हैं। 

राहुल ने हालांकि अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था मगर फिर भी ज्यादातर निर्णय वह ले रहे हैं, फिर चाहे नियुक्तियां हों, तबादले हों या फिर नीति निर्णय हो। पुराने दिग्गजों जोकि सोनिया के वफादार हैं तथा राहुल टीम के युवा तुर्कों के बीच प्रत्येक मुद्दे पर लगभग विचारों को लेकर मतभेद हैं। ये हालात किसी भी कैम्प के लिए अच्छे नहीं हैं। हालांकि वर्तमान संकट में सुर्जेवाला जैसे राहुल की टीम के सदस्य जयपुर में डेरा जमाए हुए हैं। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व को अपने घर पर ही सब कुछ ठीक करना होगा। यहां पर गुटबाजी, अनुशासनहीनता व भाई-भतीजावाद मौजूद है। कांग्रेसी कार्यकत्र्ता असमंजस तथा डर में हैं कि वर्तमान रणनीति कोई रणनीति ही नहीं है। पार्टी इस समय दिशाहीन दिखाई दे रही है। 

कोई एक सोनिया से पूछ सकता है कि उन्होंने कैसे इस विघटना पर अपनी पकड़ बनाई थी, जब उन्होंने 1998 में राजनीति में प्रवेश किया था, उन्होंने न केवल नेतृत्व उपलब्ध करवाया बल्कि पार्टी को सत्ता भी दिलवाई। ऐसा उन्होंने एक बार ही नहीं बल्कि 2004 तथा 2009 में भी किया। मगर एक दशक से ज्यादा समय के बाद चीजें बदल गई हैं। वह अपने बेटे को कांग्रेस के शीर्ष पद पर लेकर आईं मगर मां-बेटे दोनों ही पार्टी के निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करने में असफल रहे। इसमें कोई शंका वाली बात नहीं कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में 2018 में जीत हासिल की, मगर पार्टी इन राज्यों पर अपनी पकड़ न बना सकी। इसका नतीजा यह हुआ कि इसने मध्य प्रदेश को पहले ही खो दिया और अब राजस्थान को हाथ से निकलने देने की प्रक्रिया जारी है। यह सब कुछ पार्टी में अनुशासनहीनता तथा अंदरूनी सत्ता संघर्ष के कारण हुआ है। 

सत्ता संघर्ष पंजाब, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र में भी चल रहा है
तीसरी बात यह है कि सोनिया गांधी पुराने दिग्गजों तथा युवा तुर्कों के बीच सत्ता संघर्ष का कोई समाधान नहीं निकाल पाईं। वास्तव में राहुल ने 25 मई, 2019 को खुद ही यह बात कही थी। उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कहा था कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी.एम. मोदी के खिलाफ मुहिम में उनका समर्थन नहीं कर रहे। सत्ता संघर्ष पंजाब, छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र में भी चल रहा है। यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो छत्तीसगढ़ जैसे राज्य मध्य प्रदेश तथा राजस्थान का अनुसरण करेंगे। 

चौथी बात यह कि राहुल पार्टी प्रमुख के तौर पर वापसी करना चाहते हैं। यदि वह युवा नेताओं तथा पुराने दिग्गजों की महत्वाकांक्षाओं को समझने में असफल होते हैं तो पार्टी की हालत और भी नाजुक हो जाएगी। कांग्रेस पार्टी आत्म मंथन करे कि वह क्यों नहीं विपक्ष को एकजुट करने में सफल हुई। वर्तमान संकट पर कोई भी विपक्षी दल कांग्रेस के समर्थन में खड़ा नहीं हुआ। यदि संकट से सबक सीख लिए गए तो कांग्रेस नेतृत्व के लिए उम्मीद अभी भी बाकी है।-कल्याणी शंकर

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