देश से लेकर परदेस तक अपनों की चिंता

Edited By ,Updated: 12 May, 2021 05:07 AM

worries of loved ones from the country to the rest of the country

दिल्ली मुंबई ही नहीं सुदूर गांवों तक कोरोना महामारी के संकट से हाहाकार है। मेरे परिजनों मित्रों के संदेश देश के दूर-दराज हिस्सों के साथ ब्रिटेन, जर्मनी, अमरीका से भी दिन-रात आ रहे हैं। विदेश

दिल्ली मुंबई ही नहीं सुदूर गांवों तक कोरोना महामारी के संकट से हाहाकार है। मेरे परिजनों मित्रों के संदेश देश के दूर-दराज हिस्सों के साथ ब्रिटेन, जर्मनी, अमरीका से भी दिन-रात आ रहे हैं। विदेश में बैठे परिजन तो और अधिक विचलित हैं, क्योंकि उन्हें केवल भयानक सूचनाएं, खबरें मिल रही हैं, कोई बचाव स्पष्टीकरण नहीं सुना जा सकता, यह महायुद्ध सरकार के साथ स पूर्ण भारतीय समाज के लिए है।

हफ्तों से घर में बंद होने से पुरानी बातें भी याद आती हैं, बहुत छोटे से गांव में जन्म हुआ, फिर शिक्षक पिता जिन गांवों में रहे, वहां अस्पताल, डॉक्टर तो दूर सड़क, तक नहीं थी। इसलिए छह-सात साल तक कोई टीका नहीं लगा। ङ्क्षचतामन जवासिया (उज्जैन) स्कूल के नाम पर जो डेढ़ कमरे थे, रात को उसी में खाट लगाकर सोते रहे। न शौचालय था न स्नान गृह। 

लाल दवाई डले कुएं का पानी पीकर बाल्टी लोटे से नहाना हुआ। शिक्षक रहते हुए भी आर.एम.पी. ( रजिस्टर्ड मैडीकल प्रैक्टिशनर ) की परीक्षा-प्रशिक्षण लेकर पिता जी छोटी-मोटी बीमारी, बुखार आदि की दवाइयां इंजैक्शन जरूरत पडऩे पर उस या आसपास के गांवों के लोगों को दे देते थे। आठ वर्ष की आयु के बाद उससे बड़े गांव उन्हेल में रहे और बारह वर्ष की आयु में कस्बा शहर उज्जैन आना हो पाया।

साठ साल में वे गांव तो बदल गए हैं, लेकिन मुझे अपनी यात्राओं से पता है अब भी देश के अनेक गांवों की हालत कमोबेश वैसी है। इसलिए मुझे लगता है कि इस संकटकाल में उन सैंकड़ों गांवों के लिए बचाव को भी प्राथमिकता से अलग अभियान चलना जरूरी है। क्षमा करेंगें इस बार मुझे कुछ निजी बातों की चर्चा कर समस्याओं पर लिखना पड़ रहा है। सरकारों की कमियों, गड़बडिय़ों, राजनेताओं की बयानबाजी, आरोपों-प्रत्यारोपों से हम ही नहीं सामान्य जनता बहुत दुखी होती है।

कोरोना के परीक्षण और टीकों को लेकर भी घमासान छिड़ गया। भारत जैसे विशाल देश में डेढ़ सौ करोड़ लोगों को क्या तीन महीने में टीके लगाए जा सकते हैं? प्रतिपक्ष के प्रमुख नेता राहुल गांधी लगातार पत्र लिखें, सरकार की व्यवस्था की कमियों पर आवाज उठाएं। इस पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती है लेकिन उनके पत्रों और बयानों में जब यह लिखा-कहा जाता है कि भारत और भारतीयों से अब दुनिया भर में वायरस और फैल जाएगा। ऐसी भयावह निराशाजनक बात तो पड़ोसी पाकिस्तान, वायरस का उत्पादक चीन या अमरीका, यूरोप अथवा विश्व स्वास्थ्य संगठन भी नहीं कर रहा।

इस चिट्ठी और भारत में केवल बर्बादी दिखाने वाले पश्चिमी मीडिया की रिपोर्ट्स देखकर लंदन से बेटी, कुछ अन्य मित्र और अमरीका से भी रिश्तेदारों के ङ्क्षचतनीय फोन आए। उनका सवाल था कि वैसे भी दो साल से भारत नहीं आ पाए और न ही आप आ सके, सरकारें महामारी वाला देश बताकर कड़े प्रतिबंध वर्षों तक लगा देंगी तो क्या हम कभी मिल सकेंगे? सचमुच सोचकर डर लगता है। मैंने उन्हें और अपने मन को समझाया-नहीं ऐसा कभी नहीं होगा। यह तो पूरी दुनिया का संकट है। 

राहुल जी अकेले नहीं हैं, हमारे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो हर दिन स्वयं ऑक्सीजन खत्म होने का इतना प्रचार किया कि हर आदमी को सांस फूलने की आशंका होने लगी। केंद्र से उनकी लड़ाई अपनी जगह है, लेकिन मुंबई के मित्रों, अधिकारियों से राजनीतिक विमर्श के साथ महामारी में लोगों की रक्षा के लिए सलाह ले लेते तो समय रहते कई इंतजाम क्या नहीं हो सकते थे? मतभेद, विरोध राजस्थान, केरल, तमिलनाडु के मु यमंत्रियों का भी है, लेकिन क्या उन्होंने देश-विदेश में इस तरह का प्रचार करवाया? पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार और परिणामों के बाद प्रतिपक्ष को अपना पलड़ा भारी दिख रहा है, लेकिन क्या केंद्र में परिवर्तन के लिए इस महामारी के बीच वे मध्यावधि चुनाव करवा सकते हैं? जनता नाराज और दुखी है और रहेगी तो स्वयं वोट से सत्ता बदलेगी। 

यदि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री या भाजपा शासित राज्यों के मु यमंत्रियों की तरह क्या कांग्रेस अथवा अन्य दलों के मुख्यमंत्री चुनावी प्रचार के लिए बंगाल, असम, केरल जाते-आते नहीं रहे? गलती सबको स्वीकारनी होगी। हां यदि पूर्वानुमान था तो गैर-भाजपा राजनीतिक पाॢटयां चुनाव में हिस्सा न लेने का फैसला कर लेतीं तो भाजपा या उसके छोटे-मोटे सहयोगी अकेले चुनाव लड़कर जीत का प्रमाण पत्र लेकर आ जाते? चुनाव आयोग क्या खुद एकतरफा चुनाव करवा देता। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सभी राज्यों के मु यमंत्रियों से निरंतर बात कर रहे हैं, वे भी कई दलों के हैं। अनुभवी हैं, आग्रह कर उसी वर्चुअल मीटिंग में पाॢटयों के नेताओं को भी जोड़ लें। यदि मोदी जी पुतिन, बाइडेन, बोरिस जॉनसन से बात कर सकते हैं, तो शरद पवार, अखिलेश यादव, सोनिया गांधी, सुखबीर बादल, सीताराम येचुरी से बात करने से इंकार कर देंगें? अदालतों ने भी केंद्र और दिल्ली की सरकारों पर बहुत तीखी टिप्पणियां कीं, नया टास्क फोर्स बना दिया।

लोकतंत्र में यही तो सत्ता संतुलन है  लेकिन अदालत के आदेशों का पालन तो सरकारी मशीनरी से होगा। चिंता महानगरों से अधिक पर्वतीय और आदिवासी गांवों की अधिक होनी चाहिए। मैं किसी को दोष नहीं दे रहा, लेकिन संकट में सबके साथ मिलकर चलने और हम जैसे लाखों लोगों को केवल भय आतंक से मानसिक पीड़ा न देने का अनुरोध ही कर रहा हूं।-आलोक मेहता
 

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