चुनाव से पहले मोटी रकम भेज रहे हैं विदेश में बसे भारतीय

Edited By Isha,Updated: 30 Jan, 2019 02:20 PM

indians are abroad sending big money before elections

विदेश में रहने वाले भारतीयों ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव से पहले अपनी तिजोरियां खोल दी हैं। विदेश में रहने वाले भारतीयों की ओर से अपने रिश्तेदारों को स्वदेश में रेमिटेंस जुलाई-सितंबर क्वॉर्टर के तौर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। उदारीकरण

मुम्बई: विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों (एन.आई.ई) ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव से पहले अपनी तिजोरियां खोल दी हैं। विदेश में रहने वाले भारतीयों की ओर से अपने रिश्तेदारों को स्वदेश में भेजा हुआ धन जुलाई-सितंबर क्वॉर्टर के तौर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। उदारीकरण शुरू होने के बाद से कम से कम 6 चुनावों में ऐसा ट्रैंड (रुझान)देखा गया है। 1991 से डाटा के एनालिसिस से पता चलता है कि करंट अकाऊंट में 20.86 अरब डॉलर का प्राइवेट ट्रांसफर किसी भी क्वॉर्टर में अब तक का सबसे अधिक है। वल्र्ड बैंक के अनुमान के अनुसार विदेश में बसे देश के लोगों से भारत को दुनिया में सबसे अधिक रेमिटेंस मिलता है।
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2018 में भारत को विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों से लगभग 69 अरब डॉलर मिलने का अनुमान है। इस रेमिटेंस का एक बड़ा हिस्सा देश में बसे रिश्तेदारों के खर्च और रखरखाव के लिए होता है। हालांकि इसके जरिए एन.आर.आई. डिपॉजिट में भी निवेश किया जाता है। 25 वर्षों के लांग-टर्म डाटा के एनालिसिस से पता चलता है कि चुनाव के वर्षों में रेमिटेंस में बढ़ौतरी होती है और बाद के वर्षों में यह घट जाता है। इक्नॉमिस्ट्स रेमिटेंस में वृद्धि और आगामी चुनाव के बीच कोई संबंध नहीं मानते लेकिन उनका कहना है कि इसका एक कारण पिछले कुछ वर्षों में भारतीय नेताओं की विदेश में बसे देश के लोगों तक पहुंचने की कोशिशें बढऩा और इन लोगों की देश की राजनीति में अधिक दिलचस्पी हो सकता है। एक अन्य ट्रैंड चुनाव से पहले डॉलर इनफ्लो में बढ़ौतरी का है। इससे सितंबर-अक्तूबर में लोकल करंसी में तेजी आई थी।
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एक विदेशी बैंक के इकनॉमिस्ट ने बताया कि जब भी रुपए के मुकाबले डॉलर में मजबूती आती है तो विदेश में रहने वाले भारतीयों के लिए अधिक डॉलर भेजना फायदेमंद होता है क्योंकि उनके रिश्तेदारों को लोकल करंसी में पहले से ज्यादा रकम मिलती है। हालांकि ऐसे समय में स्थानीय धार्मिक और परोपकारी संस्थानों को दान में भी बढ़ौतरी हो सकती है और इसके जरिए चुनाव की फंडिंग होने की भी संभावना रहती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डाटा के अनुसार 2016-17 में एक तिमाही में इस तरह के दान का औसत 37 करोड़ डॉलर था, जो 2018-19 की एक तिमाही में बढ़कर 44.5 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया।
 

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