बताएं कितने कमरों का फ्लैट होगा कितने समय में बन जाएंगे : हाईकोर्ट

Edited By Priyanka rana,Updated: 16 Nov, 2018 09:16 AM

high court

चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा यू.टी. कर्मचारियों के लिए शुरू की गई ‘सैल्फ फाइनैंसिंग हाऊसिंग स्कीम’ में लंबे समय से अधर में लटके प्रोजैक्ट पर हाईकोर्ट ने वीरवार को सुनवाई के दौरान चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड द्वारा पेश एफीडैविट को देखने के बाद इसे ताजा एफीडैविट...

चंडीगढ़(बृजेन्द्र) : चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा यू.टी. कर्मचारियों के लिए शुरू की गई ‘सैल्फ फाइनैंसिंग हाऊसिंग स्कीम’ में लंबे समय से अधर में लटके प्रोजैक्ट पर हाईकोर्ट ने वीरवार को सुनवाई के दौरान चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड द्वारा पेश एफीडैविट को देखने के बाद इसे ताजा एफीडैविट पेश करने के आदेश दिए हैं। दरअसल हाऊसिंग बोर्ड ने पेश एफीडैविट में बताया कि वह संबंधित प्रोजैक्ट को लेकर 4 वर्षों में 1000 यूनिट्स पूरे कर लेगा। 

इस पर हाईकोर्ट ने इसे ताजा एफीडैविट पेश कर यह बताने को कहा है कि फ्लैट में कितने कमरे होंगे, किस प्रकार का ढांचा होगा और तय टाइम फ्रेम बताएं। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार को भी मामले में उनके द्वारा पेश मौखिक जवाब पर एफीडैविट पेश करने को कहा है। दरअसल केंद्र ने बताया कि उन्होंने अपना प्रस्ताव कैबिनेट सैक्रिटेरिएट को आगे विचार के लिए भेज दिया है। इस संबंध में एफीडैविट में किसी त्रुटि के चलते वह एफीडैविट पेश नहीं कर पाए। मामले में अगली सुनवाई 17 नवम्बर को होगी। 

इससे पूर्व सुनवाई पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि या तो केस की अगली सुनवाई पर चंडीगढ़ हाऊसिंग बोर्ड के चेयरमैन खुद पेश होकर प्रोजैक्ट की जानकारी दें या फिर अगली सुनवाई पर एफीडैविट पेश कर बताएं कि कितने समय में प्रोजैक्ट पूरा हो जाएगा।

यह है मामला :
फरवरी, 2008 में हाऊसिंग बोर्ड ने यू.टी. के कर्मचारियों के लिए हाऊसिंग स्कीम जारी की थी। 3930 सफल आवेदक रहे थे। मकानों के लिए मोटी फीस वसूली गई थी। सी कैटेगिरी के तहत आवेदन करने वालों से 70 हजार रुपए फीस ली गई। स्कीम के तहत 8 हजार से अधिक आवेदन आए थे। 4 नवम्बर, 2010 को ड्रा निकाला गया था हालांकि अभी तक किसी को मकान अलॉट नहीं हुआ। 

मकान जारी किए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में कर्मचारियों ने केस दायर किया था। सिर्फ आवेदनों के रूप में भरी गई रकम से हाऊसिंग बोर्ड के पास 56 करोड़ रुपए जमा हो गए थे। कर्मचारियों के मकानों के लिए जमीन हासिल करने के लिए 25 फीसदी रकम अदा करनी थी। यह रकम न दिए जाने के चलते प्रशासन की तरफ से बोर्ड को जमीन ट्रांसफर नहीं की गई थी। 

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