साइकोलॉजिकल प्रैशर से नहीं, पॉजीटिविटी और हंसते-हंसाते हारेगा कोरोना

Edited By pooja verma,Updated: 01 May, 2020 11:57 AM

not psychological pressure positivity and laughing will beat corona

कोरोना को हराने के लिए एक्सरसाइज, हंसी-मजाक और पॉजीटिविटी जरूरी है।

चंडीगढ़ (रवि पाल) : कोरोना को हराने के लिए एक्सरसाइज, हंसी-मजाक और पॉजीटिविटी जरूरी है। साइकोलॉजिकल प्रैशर समस्या और बढ़ा सकता है। यह कहना है पी.जी. आई. के साइकैट्रिक डिपार्टमेंट के कई एक्सपर्ट्स का । उनका कहना है कि फियर फैक्टर कोरोना मरीजों में तो है ही, साथ ही लोगों में भी है। मरीज बढ़ रहे हैं, मगर रिकवर भी तो हो रहे हैं। इस बात को लोगों तक 5 का जरूरी है। 

 

हमारे पास जब पेशैंट पहुंच रहे हैं, तो कुछ दिन बाद वह इस कदर गुस्से से भर जाते हैं कि वह अपने आपको कोसने लगते हैं कि मुझे ही कोरोना क्यों हुआ ? गुस्सा और बेचैनी इतनी है कि कई मरीज कोविड टैस्ट को ही गलत कहने लगते हैं। पी.जी. आई. में कोरोना पॉजीटिव मरीजों को मैंटली स्ट्रांग बनाने के लिए साइकैट्रिक डिपार्टमैंट के कई एक्सपर्ट की मदद ली जा रही है। सीनियर कंसल्टैंट डॉ. स्वप्न जीत साहू इसे एक सोलो जर्नी कहते हैं।

 

शुरुआत में थोड़ी दिकत लाजिमी
डॉ. साहू का कहना है कि मैं सभी पेशैंट्स को कहता हूं। आप ऐसे सोचो कि आप कुछ दिन किसी सोलो ट्रिप पर हो। परिवार से मिल नहीं सकते, लेकिन रैगुलर लैवल पर उनसे बात कर सकते हैं। सभी को फोन अलाउड हैं। कॉल करिए। वीडियो कॉल के जरिए फैमिली से जुडि़ए। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत आना लाजमी है, लेकिन कुछ दिन बाद वह सैटल हो जाते हैं। 

 

जैसे आप घर में रहते हैं। यहां भी वैसे रहिए। बस फर्क इतना है कि आप किसी से मिल नहीं सकते। सोशल एप्प के जरिए, सबसे जुड़े रहिए। जोकि आजकल सबके पास है। 80 प्रतिशत मरीज़ हमारे पास ए सिम्पटोमैटिक हैं। उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है। काउंसलिंग के दौरान उन्हें बताते हैं कि उन्हें सिर्फ इसलिए आइसोलेशन में रखा है ताकि वह किसी और को इन्फेक्शन  न दें।

 

बच्चों के लिए मोटू-पतलू और ड्राइंग
बड़ों को किसी न किसी तरह से मैंटली स्ट्रॉन्ग किया जा सकता है। कई जल्द संभल जाते हैं। कुछ को थोड़ा वक़्त लग जाता है। बच्चों की बात करें तो उनके लिए ड्राइंग के टास्क दिए जाते हैं। मोटू-पतलू और दूसरे कई कार्टून कर लिंक उन्हें दिए जाते हैं। मकसद है कि उन्हें बिज़ी रखा जाए। उन्हें महसूस न हो कि वे हॉस्पिटल में हैं। अपने घर से दूर। रिकवरी के लिए ये चीजें बहुत जरूरी हैं।

 

स्टिगमा वाली सोच को बदलने की जरूरत
शुरुआती दौर में जब कोई नया मरीज़ पी.जी.आई. आता है तो वह हमसे बात भी नहीं करना चाहता। आज भी साइकैट्रिक की हैल्प लेने वाले को दिमागी तौर पर बीमार समझा जाता है। बीमारी को एक स्टिगमा की तरह देखा जा रहा है, जिसे बदलने की जरूरत है।

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